Sunday, September 27, 2020

बातें-मुलाकातें: 21 ( देेबब्रत बिश्वास)

दादा के नाम से संबोधित किए जाने वाले देेबब्रत बिश्वास जी एक ऐसे राजनेता हैं, जिन्हें उनके अनुभव और कार्यों से ही नहीं बल्कि शुचिता, मूल्यों और सि़द्धांतों वाली राजनीति के लिए भी बड़े सम्मान के साथ देखा जाता है. दादा आॅल इंडिया फाॅरवर्ड ब्लाॅक के महासचिव और प.बंगाल से चार बार सांसद रह चुके हैं. 



यह एक संयोग ही है कि 23 अगस्त को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की रहस्यमय गुमशुदगी को 75 साल पूरे हुए हैं और आज 28 सितंबर को दादा का भी 75 वां जन्मदिन है. आप सोच रहे होंगे कि दोनों बातों में क्या संबंध है. दरअसल, यह दादा ही हैं, जिन्होंने लंबे समय तक नेता जी की गुमशुदगी या ताइपे की विमान दुर्घटना में तथाकथित मृत्यु का सच देश के सामने लाने के लिए लगातार सरकार पर दबाव बनाए रखा है और इसके लिए निजी स्तर पर भी काफी प्रयास किए हैं. 

मेरा दादा से संपर्क इसी सिलसिले में हुआ था... 2002 की बात है, मैं उन दिनों दैनिक भास्कर के पत्रिका विभाग में था. उस समय केंद्र में राजग की सरकार थी और उसके द्वारा गठित जस्टिस मुखर्जी आयोग नेता जी की मृत्यु से जुड़े तथ्यों और सत्यों की जाँच कर रहा था. मैंने सुझाव दिया कि इसपर एक अच्छी और विस्तृत स्टोरी की जा सकती है. 

उन दिनों इस मामले में देबब्रत जी और उनके फाॅरवर्ड ब्लाॅक का नाम काफी चर्चा में था. मुझे लगा कि उनसे मिला जाए तो काफी अच्छी जानकारियां मिल सकती हैं. उनसे समय लेकर मैं उनके घर पहुँच गया. उन्होंने मेरे लिए चाय मंगा ली और फिर हमारी नेता जी के मुद्दे पर बातचीत शुरू हो गई. मैंने इस बारे में पहले से कुछ स्टडी कर रखी थी तो यह बातचीत काफी अच्छी रही और कुछ हद तक लंबी भी. 

इसके बाद उन्हें पता नहीं क्या सूझा, वे उठे और एक बहुत मोटी फाइल लाकर मुझे थमा दी. यह उन सब बयानों और साक्ष्यों की प्रतियों की फाइल थी, जो मुखर्जी आयोग के सामने अब तक की सुनवाईयों में पेश किए गए थे. मुझे तो जैसे खजाना मिल गया. यह बिल्कुल वैसे ही था,जैसे आप जाएं एक रुपए के लिए और मिल जाएं सौ रुपए. 

उन्होंने मेरा उल्लास ताड़ लिया और बोले कि आज जब तक चाहें आराम से यहाँ बैठिए और इस फाइल से नोट्स तैयार कर लीजिए. उन्होंने बताया कि वह निकल रहे हैं, लेकिन उनका एक आदमी घर पर ही है, मुझे किसी भी चीज की जरूरत हो तो मैं उससे कह सकता हूँ.

उनका यह स्नेह और सहयोग भावना मुझे अभिभूत कर गई. मैं तीन-चार घंटे उनके घर पर रहकर नोट्स तैयार करता रहा और फिर एक ऐसी स्टोरी तैयार हुई, जिसे मैं अपने पत्रकारीय लेखन की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक मानता हूँ. 

रिपोर्ट पब्लिश होने के बाद मैंने दादा को उसकी सूचना दी और उनके सहयोग के लिए उनका आभार व्यक्त किया, जिसके बिना यह स्टोरी कभी मुमकिन न होती.

बाद में मुखर्जी आयोग के निष्कर्षों सामने आए, जिनमें आयोग ने उस दुर्घटना की वास्तविकता पर संदेह प्रकट किया था. लेकिन, तत्कालीन सरकार ने इन निष्कर्षों को मानने से इंकार कर दिया. हालांकि इस मामले में अब बहुत सारे दस्तावेज सार्वजनिक किए जा चुके हैं, लेकिन अभी भी यह सवाल अपनी जगह कायम है कि आखिर नेता जी के साथ क्या हुआ था.

आज दादा के जन्मदिन पर उन्हें हार्दिक बधाई. वे हमेशा स्वस्थ रहें, सक्रिय रहें यही शुभकामना है.



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