Wednesday, January 27, 2021

बातें-मुलाकातेंः 41 (कमलेश्वर)

विख्यात साहित्यकार कमलेश्वर को हम बहुत सारी किताबों, धारावाहिकों, किताबों पर बनी फिल्मों के चलते जानते हैं. वे जिस क्षेत्र से जुड़े, कुछ न कुछ ऐसा दे गए, जिसने उनसे ज्यादा उस क्षेत्र को समृद्ध किया. साहित्य में उनका अंतिम उपन्यास दूसरा पाकिस्तान, टीवी पर उनका लिखा चंद्रकांता, संपादन की बात करें तो सारिका, फिल्म लेखन में मौसम और आँधी जैसी फिल्में... वह ऐसे पारस थे, जिनका स्पर्श पाकर हर चीज सोना बन जाती थी.



मैं उन दिनों कॉलेज में था, जब नए शुरू होने जा रहे अखबार में पत्रकारिता में कैरियर बनाने के इच्छुक युवाओं के लिए उनका आह्वान पत्र एक विज्ञापन की शक्ल में छपा. लोगों को सीधे-सीधे जुड़ने के लिए किसी संपादक को ब्रान्ड बनाकर पेश करने का संभवतः यह पहला मौका था. मेरा पत्र-पत्रिकओं में लिखना-छपना शुरू हो चुका था. मैंने उन्हें पत्र लिखा कि मैं आपके सान्निध्य में काम करना चाहता हूँ. और मेरी हैरानी की सीमा न रही, जब कुछ ही दिनों बाद मुझे इंटरव्यू के बुलावे का टेलीग्राम मिल गया. हालांकि तब तक कमलेश्वर उस अखबार से अलग हो चुके थे. यह अखबार था, सहारा समूह का दैनिक राष्ट्रीय सहारा. 

मैं इंटरव्यू के लिए गया. टेलीग्राफ विभाग की गलती से पता चला कि इंटरव्यू एक दिन पहले ही हो चुका था. मैंने शिकायत की कि इसमें मेरी क्या गलती है, तो मेरा अलग से इंटरव्यू कराया गया. पढ़ाई चल रही थी तो नौकरी करना मुश्किल था, इसलिए कुछ नियमित कॉलम लिखने का काम मिल गया. 

बात कमलेश्वर की चल रही थी. इसके बाद उनके और भी कई प्रकाशनों से जुड़ने-अलग होने की खबरें आती रहीं. कुछ साल बाद मैं विधिवत पत्रकारिता में आ गया. कमलेश्वर उन दिनों हरियाणा के सूरज कुंड में रहते थे. मेरे सहकर्मी और मित्र अतुल श्रीवास्तव, जो इन दिनों अमर उजाला में समाचार संपादक हैं, ने मुझसे एक दिन कहा कि कमलेश्वर से मिलने चलोगे. उनके आपस में अच्छे संबंध थे. मैंने तुरंत हामी भर दी और हम एक दिन उनके घर जा धमके. 

वहाँ बहुत सारी बाते हुईं. उन्होंने हमें बताया कि दुनिया में इतने विषय हैं कि आप लिखते-लिखते थक जाएंगे, लेकिन विषयों का टोटा नहीं पड़ेगा. एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि क्या आपको मालूम है कि जूस की दुकानों पर जो फल बच जाते हैं, या खराब हो जाते हैं, वे कहाँ जाते हैं. मैंने कहा कि उन्हें गाय-बकरी वगैरह को चरने के लिए दे दिया जाता है. उन्होंने कहा कि आपकी जानकारी गलत है. इन्हें भी बेचा जाता है और इनसे फिर फ्रूट जैम बनाया जाता है. यह जानकारी सही थी या गलत, पता नहीं लेकिन सुनकर उस वक्त  हमारी आँखें हैरानी से उन्हें ही देख् रही थीं. 

इसी बातचीत के दौरान मुझे चेक लेखक लाजार लागिन का लिखा बीसवीं सदी का जिन्न उपन्यास याद आया, जिसका अनुवाद कमलेश्वर ने ही किया था. मैंने उनसे कहा कि आपने चेक में लिखी कितनी किताबों का अनुवाद किया है. इस पर वे बोले मैंने कभी अनुवाद नहीं किया. मैंने उन्हें इस किताब की याद दिलाई तो वे एकदम बात बदल कर बोले कि अरे हैं कहाँ वो किताब, मैंने तो आज तक उसकी शक्ल तक नहीं देखी. मैंने कहा कि मैं आपको भेज दूँगा. मेरे होमटाउन में उसकी दो कापियाँ थीं. मैंने एक कूरियर से उन्हें भिजवा दी. लेकिन कुछ दिनों बाद वह वापस लौट आई, क्योंकि सूरजकुंड में उस कंपनी की कूरियर सर्विस नहीं थी. इस बार मैंने दूसरी कूरियर कंपनी की मदद ली. एक हफ्ते बाद मैंने उन्हें फोन किया कि क्या उन्हें किताब मिल गई है. उन्होंने कहा कि अभी तक तो नहीं मिली है. मैं शिकायत लेकर कूरियर कंपनी के पास पहुँचा तो उन्होंने अपने मुख्यालय फोन करके पता किया. किताब दो दिन पहले ही उन्हें डिलीवर हो चुकी थी. 

उन दिनों मैं बेरोजगार था और एक किताब या कूरियर का खर्च उठाना बहुत भारी पड़ता था. इस किताब के लिए तो मैंने दो-दो बार पैसा खर्च किया था. उस पर मुझे शुक्रिया अदा करना तो दूर, उन्होंने प्राप्ति तक से इंकार कर दिया था. इसके लिए मैं लंबे समय तक कमलेश्वर जी से नाराज रहा. हालांकि यह भी हो सकता है कि किताब की डिलीवरी किसी और ने ली हो और उन तक जानकारी न पहुँची हो, या ये भी हो सकता था उन्हें मिलने वाली तमाम डाक या कूरियर के बीच उन्हें ध्यान न रहा हो कि उनमें मेरी किताब भी हो सकती है. लेकिन, उस वक्त मेरी समझ में यही आया कि मैंने खामख्वाह ही अपना पैसा बर्बाद किया. 

खैर आज उनकी पुण्यतिथि है. इस अवसर पर उन्हें भावभीनी श्रंद्धांजलि


Sunday, January 24, 2021

बातें-मुलाकातें: 40 (रेखा सूर्या)

बेगम अख्तर और गिरिजा देवी सरीखी शास्त्रीय गायिकाओं और प्रतिष्ठित सारंगी वादक उस्ताद वशीर खान जैसे इंडियन क्लासिकल म्यूजिक दिग्गजों की शिष्या रही रेखा सूर्या स्वयं एक शास्त्रीय व गजल गायिका हैं, जो श्रीलंका में हुए एशियन म्यूजिक फेस्टिवल और तजाखिस्तान में हुए इंटरनेशनल म्यूजिक फेस्टिवल में भारत का प्रतिनिधित्व करने के अलावा देश-विदेश में अनेक प्रस्तुतियां दे चुकी हैं. रेखा जी की अपनी एक विशिष्ट शैली है, जिसमें सूफी गायकी और दादरा, कजरी, झूला, होरी, चैती आदि का अद्भुत समावेश है.




जाहिर है, उनसे भी मेरी मुलाकात एक इंटरव्यू के सिलसिले में ही हुई थी. होटल जनपथ में, प्रसिद्ध चित्रकार मंजीत बाबा की उपस्थिति में हुए इस यादगार साक्षात्कार के बारे में विस्तार से मैं 29 दिसंबर की अपनी पोस्ट (इस लिंक पर क्लिक करें: http://mayaabazar.blogspot.com/2020/12/37.html ) में लिख चुका हूँ, इसलिए उसे फिर से न दोहराते हुए रेखा जी के जन्मदिन पर उन्हें ढेर सारी शुभकामनाएं...

Interview


Tuesday, January 5, 2021

बातें-मुलाकातें: 39 (ओम पुरी)

दूर के ढोल सुहावने होते हैं. लेकिन अभी जिस ढोल की मैं बात करने जा रहा हूँ, उसमें मुझे पोल ज्यादा नजर आई.



जी हाँ, यह मामला भारत के महान अभिनेता दिवंगत ओम पुरी से जुड़ा है. इसमें कोई शक नहीं कि एक अभिनेता के तौर पर उन्होंने जो मानक स्थापित किए, उन्हें छू पाना लगभग हर अभिनेता के लिए असंभवप्रायः ही है. अमिताभ जी के बाद ओम पहले ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने बिना खूबसूरत चेहरे के, सिर्फ अपनी प्रतिभा के बूते सितारा हैसियत हासिल की.
अपनी भूमिका में घुल जाने में उन्हें जैसे महारत हासिल थी, चाहे वह कॉमेडी हो, खलनायकी हो, चरित्र भूमिका हो या विद्रोही नायक, ओम हर भूमिका के साथ इस तरह आत्मसात हो जाते थे कि वे ओम से ज्यादा किरदार नजर आते थे. लेकिन, एक अच्छे इंसान के तौर पर उनके बारे में मेंरी राय खराब तो नहीं, लेकिन बहुत अच्छी भी नहीं है.
उन दिनों मैं कुछ अर्सा के लिए मुंबई घूमने गया था. नवभारत टाइम्स में मेरा कॉलम उन दिनों शबाब पर था. मुंबई पहुँचा तो लगा कि अब तो समुंदर करीब है, बहुत सारे कलाकारों से बात करने का मौका मिलेगा. लेकिन, यह गलतफहमी जल्दी ही दूर भी हो गई. उल्टे दिल्ली में सितारों को थामना बहुत आसान था. खैर, बात ओम पुरी की हो रही थी. मैंने टेलीफोन डायरेक्टरी में उनका नंबर ढूंढकर कॉल लगाया. हैलो सुनते ही समझ में आ गया कि फोन उन्होंने ही उठाया था. मैंने अपना परिचय दिया और कहा कि मैं दिल्ली से आया हुआ हूँ, फिल्म जर्नलिस्ट हूँ और आपका एक छोटा सा इंटरव्यू करना चाहता हूँ.
उन्होंने कहा कि कल सुबह 11 बजे नटराज स्टुडियो आ जाइए. निहलानी की फिल्म का मुहूर्त है, वहीं बात कर लेंगे. मेरे यह पूछने पर कि नटराज स्टुडियो कहा हैं, उन्होंने उलाहना दिया कि कैसे फिल्म जर्नलिस्ट हैं आप, नटराज स्टुडियो भी नहीं मालूम. मैंने कहा कि मैं दिल्ली में रहता हूँ तो उन्हें याद आ गया और बोले कि अरे हाँ, आप तो दिल्ली में रहते हैं. ऐसा कीजिए कि आप अंधेरी ईस्ट में उतर जाइएगा. वहीं से ऑटो पकड़ लीजिएगा. वह साढ़े तीन रूपए लेगा ओर आपको नटराज स्टुडियो छोड़ देगा.
अगले दिन ठीक पौन ग्यारह बजे मैं अपने एक स्थानीय मित्र के साथ नटराज स्टुडियो पहुँच गया. गोविंद निहलानी की इस मूवी का नाम था तक्षक. मुहूर्त के लिए कलाकारों का आना शुरू हो चुका था. अमरीश पुरी, अजय देवगन, तब्बू, राहुल बोस, ए.के.हंगल, डैनी, पंकज कपूर जैसे कई सितारे वहाँ आए हुए थे. लेकिन मेरी आँखें तो ओम पुरी को तलाश रही थीं. जब तक वह आए, तब तक आशीष विद्यार्थी, मीता वशिष्ठ जैसे पुराने वाकिफकारों के साथ फिर से मुलाकात कर ली.
मुहूर्त सम्पन्न हुआ. जैसे ही ओम पुरी नजर आए, मैं उनके पास पहुँचा और अपना परिचय देते हुए उनसे इंटरव्यू के बारे में पूछा. वह बिना कोई जवाब दिए आगे बढ़ गए. मुझे लगा कि शायद वह भूल गए होंगे, फिर से उनके पा जाकर उन्हें याद दिलाया कि आपने ही मुझे यहाँ इंटरव्यू के लिए बुलाया था.उन्होंने मुझे देखा, लेकिन शायद उन्हें शक्ल से मैं पत्रकार नहीं लगा और वे बिना कोई जवाब दिए फिर से दूसरी ओर बढ़ गए.
इसी दौरान मैंने एक चीज नोटिस की कि अंग्रेजी की एक सेलेब्रिटी और सोशलाइट राइटर उनके इर्दगिर्द मंडरा रही थी. वह कभी उनकी पीठ सहलाती, कभ सिर पर धौल जमा देती... मैं समझ नहीं पा रहा था कि वह मुझसे भाग रहे हैं, या उस लेखिका से. ईमानदारी की बात तो यही है कि ओम पुरी ने अपने व्यवहार से उस दिन मुझे बहुत निराश किया और मेरे नाकाम वेंचर्स में एक नाम ओम पुरी का भी जुड़ गया.
हमारे समाज में किसी के मरने के बाद उसकी निंदा न करने का चलन है, लेकिन 2017 में ओम पुरी की संदेहास्पद मृत्यु के बाद उनके कारनामों के बारे में जिस तरह से कई दिनों तक पढ़ने को मिलता रहा, उससे यही पता चला कि वे वाकई बहुत पहुँची हुई चीज थे.
बहरहाल, आज ओम की पुण्यतिथि है. इस मौके पर उनकी अच्छाईयों और ईमानदार स्वीकरोक्तियों के याद करते हुए उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि. एक अभिनेता के तौर पर वह भारतीय सिनेमा की एक ऐसी धरोहर थे, जिसे खोने का सिर्फ अफसोस ही किया जा सकता है.

Saturday, January 2, 2021

बातें—मुलाकातें:38 (शेफाली तलवार)

 

 फैशन मॉडल और टीवी एंकर शेफाली तलवार के नाम से बेशक आज बहुत ज्यादा लोग परिचित हों, लेकिन एक वक्त उनका नाम दिल्ली की टॉप फीमेल मॉडल्स में लिया जाता था. उस समय फैशन, मॉडलिंग, हाई सोसायटी जैसी चीजों की कवरेज पर अंग्रेजी अखबारों के एकाधिकार को तोड़ते हुए नवभारत टाइम्स ने भी पेज 3 शैली की चीजें प्रमुखता से छापनी शुरू कर दी थीं.



 इसी सिलसिले में शेफाली का इंटरव्यू लेना तय हुआ. मैंने उन्हें फोन मिलाया और अपना उद्देश्य बताया. उन्होंने मुझे अपने घर बुला लिया. शेफाली से मेरी मुलाकात दक्षिण दिल्ली स्थित उनके घर पर हुई थी. जिस वक्त मैं वहाँ पहुँचा तो उन्हें देखता ही रह गया. खूबसूरत तो वे थी हीं, लेकिन उनकी ड्रेस तो और भी गजब. हाफ पैंट और आकर्षक टॉप पहने शेफाली बहुत हॉट लग रही थीं. शायद उन्हें लगा होगा कि इंटरव्यू के लिए मेरे साथ फोटोग्राफर भी आएगा, इसलिए ऐसी कैज्युअल ड्रेस पहनी होगी. 

खैर, इस पर ज्यादा तवज्जो देते हुए मैंने इंटरव्यू शुरू किया. उन्होंने काफी इंटरेस्ट लेते हुए सवालों के अच्छेअच्छे और ईमानदारी से जवाब दिए. इंटरव्यू के बाद मैंने उनसे विदा ली और जब वह छप गया तो उन्हें फोन करके बताया. उन्होंने अनुरोध किया कि मैं इंटरव्यू की कॉपी उन तक पहुँचा दूँ. उस वक्त वे किसी फैशन शो की रिहर्सल के लिए उधर ही एक जगह पर जाने वाली थीं, जहाँ मैं रहा करता था. मैंने सोचा कि चलो, मैं ही कॉपी लेकर चला जाता हूँ. इस बहाने उनसे फिर से मुलाकात हो जाएगी. मैंने वहाँ जाकर उन्हें जब कॉपी दी तो वह उसे देखकर बहुत खुश हुईं और मेरा शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि वे रात को इसे अच्छे से पढ़ेंगी, फिर मुझे बताएंगी. तभी वहाँ राहुल देव भी पहुँचे. रिहर्सल के लिए वे भी वहाँ आए थे. शेफाली ने उनसे मेरा परिचय कराया तो राहुल ने कहा कि हम पहले से एकदूसरे को जानते हैं. इसके बाद वह वहाँ से निकलने लगे तो पूछा कि आपको कहाँ जाना है, मैं छोड़ देता हूँ. लेकिन, रास्ते में एक जगह होकर जाना है. मैंने कहा कि कोई बात नहीं. फिर वह मुझे लेकर कबीर कौशिक के घर गए, जिनके धारावाहिक के वे हीरो थे और मैं स्क्रिप्ट राइटर. कबीर हमें एक साथ देखकर बहुत हैरान हुए, लेकिन कोई सवाल नहीं पूछा.

 खैर, अगले दिन शेफाली का फोन आया. वह बहुत खुश थीं और कह रही थीं कि आपने बहुत ही अच्छा लिखा है. मैंने कहा कि आपने अच्छा बोला, इसलिए अच्छा लिखा गया. इसके बाद भी कई बार मैंने उनसे अलगअलग टॉपिक पर छोटेछोटे इंटरव्यू लिए. जब तक मैं दिल्ली में था, हम लोग लगातार सम्पर्क में बने रहे. खासकर 2 जनवरी को उनके जन्मदिन पर मैं दोनों को फोन करना नहीं भूलता था. आज फिर 2 जनवरी है, शेफाली को उनके जन्मदिन पर ढेर सारी शुभकामनाएं.