Sunday, January 20, 2013

सुगंध से आती सड़ांध


सुगंध और इंसान का रिश्ता बहुत पुराना है. इंसान ही क्यों, अनेक जीव-जंतुओं के जीवन में भी सुगंध एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. खासकर जब अपोजिट सेक्स के बीच के आकर्षण की बात चलती है तो यह सुगंध किसी दूत की तरह भावनाओं का सम्प्रेषण करने से भी पीछे नहीं हटती. दूसरे शब्दों में कहें तो खुशबू कुदरत की वह देन है, जो इंसान और अनगिनत प्राणियों के जीवन को तरह-तरह से महकाती है-कभी खाने की खुशबू , कभी फूलों की खुशबू, कभी पूजा की खुशबू तो कभी प्यार की खुशबू. 


ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि जब सुगंध बाजार में उतरती है, तो अपनी सारी गरिमा को तजकर एकदम बाजारू क्यों हो जाती है? क्या बिकने के लिए बाजारू होना जरूरी है? अगर नहीं तो क्यों सारी परफ्यूम्स और डियोज के विज्ञापन इसकी भूमिका को सिर्फ महिलाओं को आकर्षित करने तक सीमित करने वाले सिंगल ट्रैक पर चलते नजर आते हैं? किसी विज्ञापन में चाकलेट से बने एक पुरुष के विभिन्न अंगों को महिलाएं नोच-नोचकर खाती हैं, किसी में पुरुष नायक एक परफ्यूम इस्तेमाल करता है और उसे परियां अथवा पराग्रही नारियां आकर घेर लेती हैं. एक और विज्ञापन में युवा नायक द्वारा इस्तेमाल डियो की खुशबू एक नवविवाहिता स्त्री के मन को डगमगा रही है, तो किसी में अपने पति की बेवफाई से खफा महिला उसकी परफ्यूम की शीशी को घर के बाहर बैठे एक भिखारी की ओर फेंक देती है और अगले फ्रेम में पति की प्रेमिका उस भिखारी की ओर बढती दिखाई देती है. 

ये और इन जैसे अनेक विज्ञापन दो ऐसे मिथक स्थापित करने का असफल प्रयास करते हैं, जिन पर शायद ही कोई यकीन करे. एक, सुगंध सिर्फ महिलाओं को आकर्षित करने के लिए अस्तित्व में है और दूसरा यह कि महिलाओं को आकर्षित करने के लिए सिर्फ एक ब्रांडेड परफ्यूम ही काफी है. जबकि वास्तविकता यह है सुगंध नर और मादा के मन में प्रेम व कामभावना उत्पन्न करने में समान भूमिका निभाती है (भले ही इस प्रोसेस की टाइमिंग और टाइप अलग-अलग हों)  और कोई भी महिला सिर्फ परफ्यूम के आधार पर किसी भिखारी से संबंध नहीं बनाएगी.

इस तरह ये विज्ञापन दोधारी तलवार की तरह, दोनों प्रकार से स्त्री की गरिमा को धूमिल करते हैं. ये न सिर्फ उसके विवेक को उसकी कामुकता के सामने खारिज करते हैं, बल्कि उसकी उपलब्धता को एक परफ्यूम की शीशी जितना सस्ता साबित करने की धृष्टता से भी बाज नहीं आते. अनेक सांस्कृतिक और नारीवादी संगठनों/व्यक्तियों द्वारा समय-समय पर ऐसे विज्ञापनों के खिलाफ आपत्तियां भी दर्ज कराई गई हैं, और इनके प्रसारणों पर रोक लगाने के आश्वासन भी दिए गए हैं. लेकिन, नतीजा ढाक के ढाई पात जैसा ही है और इनका प्रसारण बदस्तूर जारी है.

ऐसे विज्ञापनों की भरमार का एक और निराशाजनक पहलू यह है कि इनकी भीड़ में शालीन किस्म के परफ्यूम एड नेपथ्य में चले जाते हैं. शायद उनका हश्र अनेक बहुत सारे सुगंध उत्पादों के निर्माताओं को सेफ जोन में रहते हुए चलने के लिए बाध्य करता है और वे भी अपने प्रतिद्वंद्वी को पछाड़ने के लिए उससे भी ज्यादा बोल्डनेस अपनाने को तरजीह देते हैं. इसका अर्थ यह नहीं कि गंदगी की इस बाढ़ को रोका नहीं जा सकता. बस जरूरत थोड़ी सख्ती और साहसिक कदम उठाने की है. रचनात्मकता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बिना पर किसी को भी पूरी संस्कृति को प्रदूषित करने की आजादी तो नहीं ही दी जा सकती.

यह सही है कि वैज्ञानिक शोध भी इस बात की पुष्टि करते आ रहे हैं कि प्रेम, आकर्षण और यौन संबंधों में सुगंध की भूमिका को हल्के में नहीं लिया जा सकता. लेकिन, ऐसी खुशबू शायद ही अभी तक अस्तित्व में आई हो, जो इस काम को सेकेंडों में अंजाम दे सके. खुशबू तो जितनी तेजी से फैलती है, उतनी ही तेजी से वायुमंडल में विलुप्त भी हो जाती है. लेकिन, पे्रम आगे बढ़ने में अपना समय लेता है. जाहिर है कि अगर सिर्फ परफ्यूम के सहारे दुनिया ( आधी दुनिया) को फतह करने के मिशन पर चलेंगे तो कोई नहीं जानता कि कितना परफ्यूम हवा में रहेगा, कितना बॉडी पे और खुशबू कब तक चलेगी. 

चलते-चलते

क्यों न खुशबू की भूमिका के बारे में कुछ और वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित बातें जान ली जाएं!
1. निर्विवाद रूप से सुगंध नर और मादा के बीच अंतरंगता और प्रेम को प्रोत्साहित करती है.
2. पुरुष महिलाओं की देहगंध को माह के उस समय ज्यादा पसंद करते हैं, जब वे अधिक फर्टाइल होती हैं. 
3. महिलाएं ऐसे पुरुषों की गंध को पसंद करती हैं, जिनकी जेनेटिक्स उनके खुद के समान हो, लेकिन बहुत ज्यादा समानता विपरीत प्रभाव छोड़ जाती है.
4. ऑव्यूलेटिंग महिलाओं को डोमिनेंट पुरुषों की गंध ज्यादा  भाती है.
5. अंगूर की सुगंध की मौजूदगी में पुरुषों  को महिलाओं के फोटोग्राफ्स देखते हुए वे अपनी वास्तविक उम्र से औसतन छह साल छोटी नजर आती हैं.
6. परीक्षण किए हुए सभी 26 एरोमा, सबसे ज्यादा लवेंडर की खुशबू, पुरुषों की यौनेत्तजना को बढ़ाते हैं, जबकि महिलाएं मुलैठी की कैंडी, बेबी ऑयल जैसे कुछ एरोमा से उत्तेजित होती हैं, वहीं मेल कोलोन, भुने मांस और चेरी जैसे एरोमा बैकफायर करते हुए उन्हें टर्न ऑफ कर देते हैं.


संदीप अग्रवाल 
नागपुर