Sunday, September 27, 2020

बातें—मुलाकातें : 20 (राहुल देव)

अपने  समय के टॉप इंडियन मेल मॉडल रहे राहुल देव ने अपने फिल्मी कैरियर का आगाज सनी देओल अभिनीत फिल्म चैंपियन के साथ किया था, जिसमें उन्होंने एक खूंखार खलनायक की भूमिका की थी. इसके बाद से वे बहुत सारी हिंदी और दक्षिण भारतीय फिल्मों में नायक—सहनायक—खलनायक की भूमिका में नजर आए हैं और उनका कामयाबी का सफर बदस्तूर जारी है.


प्रोफेशनल लाइफ में आपका संपर्क बहुत सारे लोगों से होता है. लेकिन उनमें ज्यादातर से आपके रिश्ते बहुत वक्ती होते हैं. ऐसे कुछ ही लोग होते हैं जिनसे आपके रिश्ते साल—दर—साल चलते जाते हैं. राहुल देव ऐसे ही लोगों में से एक हैं, जिनसे मेरे रिश्तों को वक्त की धूल ने कतई धुंधला नहीं होने दिया है. दो दशक से भी ज्यादा बीत चुके हैं, जब हम पहली बार मिले थे. विषय वही था, मेरा सपना.

राहुल को फोन किया तो पता चला कि वह तो हमारे घर के पास ही रहते थे. हम मालवीय नगर में रहते थे और वह साकेत में...करीब डेढ़—दो किलोमीटर की दूरी पर. मिलने का टाइम फिक्स हुआ और मैं घूमते—घूमते, ढूंढते—ढूंढते उनके घर पहुँच गया. वहाँ राहुल तो नहीं मिले, पर उनके पिता जी से सामना हो गया. उनकी उर्दू बड़ी नफीस थी. उन्होंने पूछा कि क्या आपका राहुल से मुलाकात का वक्त मुकर्रर हुआ था. मेरे हाँ कहने पर वे बोले कि फिर तो वह आता ही होगा. और कुछ ही देर में राहुल वहाँ पहुँच गए. इंटरव्यू हुआ, बड़ा अच्छा हुआ. मैंने कहा कि मैं पास ही रहता हूँ तो राहुल बोले कि फिर तो आप कभी भी आ—जा सकते हैं. और यह आना—जाना शुरू हो गया. कई बार अलग—अलग विषयों पर इंटरव्यू के लिए और कई बार यूं ही...


इसी दौरान मैं स्क्रिप्ट राइटर के तौर पर कबीर कौशिक (सहर, चमकू, हम तुम और घोस्ट, मैक्सिमम जैसी फिल्मों के निर्देशक) के संपर्क में आया जो उन दिनों दूरदर्शन के लिए खामोश नाम का एक टीवी सीरियल बना रहे थे. पता लगा कि उसमें राहुल लीड रोल में थे. तो हमारा एक रिश्ता और जुड़ गया.


इसके समांतर बहुत सारी बातें चलती रहीं. राहुल के परिवार के सभी लोग इतने मिलनसार थे कि मैं जब भी वहाँ जाता, मेरे साथ एक फेमिली मेंबर जैसा व्यवहार होता.
एक दिन राहुल ने कहा कि आपके लिए एक खुश—खबरी है. उन्होंने मुझे मिठाई खिलाई और कहा कि आपको भतीजा हुआ है. वहीं से वे लोग अस्पताल जा रहे थे, उन्होंने कहा कि आप भी साथ चलिए. रास्ते में मैंने उनके पापा से हुई पहली मुलाकात का जिक्र किया तो उनकी मम्मी ने हँसते हुए बताया कि हाँ, उनकी उर्दू वाकई बहुत अच्छी है. अदालत में तो एक बार जब वे किसी मामले में पैरवी कर रहे थे तो जज तक ने कहा था कि मि. देव, आपकी दलीलें कैसी भी हों, लेकिन आपकी उर्दू बहुत शानदार है. राहुल ने मुझे बच्चे के लिए कोई नाम सजेस्ट करने के लिए कहा, मैंने सिद्धार्थ और सिद्धांत नाम सुझाए. जो सभी को बहुत पसंद आए. मेरा सिद्धांत पर ज़्यादा जोर था पर सिद्धार्थ और राहुल, दोनों नाम एक—दूसरे के पर्यायवाची लगते थे इसलिए बहुमत सिद्धार्थ के पक्ष में रहा.
राहुल से अक्सर बातें और मुलाकातें होती रहीं और यह सिलसिला उनके मुंबई चले जाने तक चला. फिर इसमें से मुलाकातें गायब हो गईं, लेकिन बातें चलती रहीं. कई बार हम लोगों ने बहुत निजी मामलों पर भी चर्चा की है और मुझे यह एहसास काफी खुशी भी देता है कि राहुल मुझ पर इतना विश्वास करते हैं कि कुछ भी शेयर कर लेते हैं. राहुल से मैंने एक चीज सीखी है, वह है खुद को लगातार रिइन्वेंट करते रहना. उनके इस शानदार सफर और कामयाबी का शायद यही रहस्य है, जिसने उन्हें इतने सालों में कभी हाशिए पर नहीं जाने दिया है.
एक बार मैंने उनके एक पुराने इंटरव्यू, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी दिली इच्छा है कि वे फैंटम की गुफा में जाएं और फैंटम से मिलें, का जिक्र करते हुए पूछा कि क्या इतने सालों बाद आज भी उनकी यह लाइफ फेंटेसी है... तो उनका जवाब था कि 'बिल्कुल सौरभ, अभी भी है.' कबीर और राहुल, सिर्फ दो ही लोग हैं, जो आज भी मुझे मेरे पुराने पेन नेम 'सौरभ' से संबोधित करते हैं.
आज उनका जन्मदिन है, हमारी शुभकामना है कि वे यूं ही सक्रिय और ऊर्जावान बने रहें और एक दिन फैंटम की गुफा में जाकर फैंटम से जरूर मिलें, ताकि हम भी उनसे पूछ सकें कि फैंटम वास्तव में कैसा लगता है.

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