मैंने अपने पत्रकारीय जीवन में करीबन सत्तर—अस्सी सेलिब्रिटीज के इंटरव्यू किए होंगे, उनकी बड़ी—बड़ी डींगे सुनी हैं, लंबे—चौड़े आदर्शों की बातें सुनी हैं, लेकिन उनमें से बहुत कम ऐसे हैं, जिन्होंने वाकई मुझे प्रभावित किया है. आशीष विद्यार्थी उन्हीं में से एक हैं. एक अभिनेता के तौर भी और एक अच्छे इंसान के तौर पर भी मैं दिल से उनकी काफी कद्र करता हूँ. दिल्ली प्रवास के दौरान आशीष और उनके परिवार से मेरे बहुत निजी रिश्ते रहे, जिनकी शुरुआत बड़े नाटकीय अंदाज में हुई थी.
उन दिनों मैं उत्तराखंड के अखबार हिमालय दर्पण में एंटरटेनमेंट कॉरेस्पॉन्डेंट हुआ करता था. हुआ कुछ यूं कि एक शाम सू.प्र.मं. की प्रेस कॉन्फ्रेंस में गया हुआ था. वहाँ दिवंगत चेतन आनंद की अध्यक्षता वाली ज्यूरी ने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की घोषणा की. उनमें एक यह भी थी कि आशीष को उनकी पहली ही फिल्म द्रोहकाल के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया जाएगा. यह जानकर मुझे बहुत अच्छा लगा, क्योंकि इस फिल्म से पहले से ही जीटीवी के धारावाहिक कुरुक्षेत्र में हम उनकी प्रतिभा और विस्फोटक संभावनाओं से परिचित हो चुके थे.
मेरे पास दिल्ली के लक्ष्मीनगर स्थित उनके घर का फोन नंबर था, मैंने आॅफिस आकर तुरंत उनके घर कॉल किया. पहले उनकी माता जी ने फोन उठाया तो मैंने उन्हें यह खुशखबरी सुनाई. उन्हें न तो यकीन आया और न ही समझ में आया कि मैं क्या कहना चाहता हूँ तो उन्होंने फिर आशीष के पिताजी को कॉल दिया. इनाम की खबर पाकर उन्हें लगा कि मैं शायद मजाक कर रहा हूँ, तो उन्होंने पूछा कि यह खबर आपने कहाँ पढ़ी. तो मैंने बताया कि यह कल के अखबारों में छपेगी. फिर मैंने उन्हें अपना परिचय दिया तो वे कुछ आश्वस्त हुए और उन्होंने कहा कि वे आशीष को बता सकते हैं न. मैंने उन्हें यकीन दिलाया कि यह खबर सोलह आने सही है और वे किसीको भी बता सकते हैं.
कुछ दिनों बाद मैंने उनके घर पर फिर फोन किया तो फोन आशीष ने उठाया. मैंने जैसे ही अपना नाम बताया, उन्होंने बड़ी गर्मजोशी से कहा कि संदीप मैं आशीष बोल रहा हूँ. फिर इंटरव्यू का तय हुआ और एक—दो दिन बाद ही मैं उनका इंटरव्यू लेने पहुँच गया. इंटरव्यू हुआ,छपा भी. हिंदी में शायद यह उनका पहला इंटरव्यू था. इस इंटरव्यू से पता चला कि उनका अभिनय विद्या और समसामायिक मुद्दों पर कितना स्कॉलर अप्रोच है. यूं तो पूरा इंटरव्यू ही बहुत अच्छा रहा, लेकिन सबसे ज्यादा अच्छा मुझे उनकी एक बात से लगा, वह यह थी कि आप सीना फुलाकर राजा नहीं बन जाते, राजा तब बनते हैं जब दूसरे आपके सामने सिर झुकाएं. यह बात किस संदर्भ में कही गई थी, उसका यहाँ जिक्र करेंगे तो संस्मरण बहुत लंबा हो जाएगा.
दूसरी मजेदार बात मुझे यह याद है कि कई हफ्तों के अंतराल के बाद जब मैंने उन्हें फोन किया तो उन्होंने पूछा कि आप कौन बोल रहे हैं? मैंने कहा, पहचानिये तो उन्होंने कहा कि नाम तो नहीं जानता, पर आप जरूर कोई पत्रकार बोल रहे हैं.
नाम बताइए, मैं हँसकर बोला.
आप पाँच शब्द बोलिए तो मैं पहचान जाऊंगा.
मैंने सिर्फ पाँच शब्द बोले, ये लीजिए आपके पाँच शब्द और उन्होंने तुरंत पहचान लिया.
इस घटना के बाद हमारी कई बार बात हुई, एक—दो बार अनौपचारिक मुलाकात भी हुई. लेकिन, उनकी गर्मजोशी और मिलनसारिता में कभी कोई कमी मुझे महसूस नहीं हुई.
आज आशीष का जन्मदिन है, उन्हें हार्दिक बधाई व दीर्घ स्वस्थ—सक्रिय जीवन की शुभकामनाएं...
interview