Friday, July 24, 2020

बातें-मुलाकातें: 5 ( इस बार भी नाम न पूछो )

जर्नलिज्म के एथिक्स की जब भी बात चलती है, मुझे एक प्रोड्यूसर से जुड़ा किस्सा याद आ जाता है. उस समय नए-नए पत्रकार बने थे अपुन, तो जोश और आदर्शवाद कूट-कूट कर भर चुका था. हमारी तरह ही एक नए-नए डायरेक्टर-प्रोड्यूसर बने थे श्रीमान एक्स ( नाम न ही पूछें तो बेहतर होगा, आजकल बहुत बड़ी तोप बन चुके हैं.)

फ़ोटो का कोई वर्णन उपलब्ध नहीं है.

श्रीमान एक्स प्रोड्यूसर जरूर नए थे, लेकिन एक लेखक के तौर पर काफी स्थापित हो चुके थे और फ्रांस में रहा करते थे. फिल्म फेस्टिवल में उनकी फिल्म, जिसकी तब तक थिएटर रिलीज नहीं हुई थी, अपने कुछ टाॅपलेस दृश्यों की वजह से बड़ी चर्चा में आ गई थी और साथ ही श्रीमान एक्स और उनकी हीरोइन वाई भी. हीरोइन से तो मुलाकात न हो सकी, लेकिन श्रीमान एक्स मिल गए. अपना परिचय देते हुए मैंने उनसे इंटरव्यू के लिए हीरोइन का नंबर माँगा, तो उन्होंने एक अनोखी जानकारी दी कि फ्रांस में किसी का नंबर दूसरे को देना अशिष्टता माना जाता है. लेकिन, उन्होंने कहा कि आप मेरा नंबर ले लीजिए. वाई अगले वीक दिल्ली आएंगी तो आप मुझे काॅल कर लीजिएगा. मैं अपने वसंत विहार स्थित आॅफिस में आपकी उनसे मुलाकात करवा दूँगा. मुझे इसमें क्या आपत्ति हो सकती थी. मैंने उनका नंबर लेकर रख लिया.
अगले हफ्ते मैंने उन्हें फोन किया तो उन्होंने आॅफिस का एड्रेस देते हुए कहा कि आप कल सेकेंड हाफ में आ जाइए. अगले दिन मैं उनके आॅफिस पहुँच गया. देखा तो हीरोइन का दूर-दूर तक कोई पता न था. मैंने उनसे पूछा कि वाई कहाँ है तो भाईसाहब बोले कि वो आज आने वाली थीं, लेकिन उनका प्रोग्राम कैंसिल हो गया. मुझे बड़ी निराशा हुई, लेकिन मन में ये ख्याल बिल्कुल भी नहीं आा कि वे झूठ भी बोल रहे हो सकते हैं.
तभी श्रीमान एक्स ने मुझे एक नायाब हल सुझाया. बोले कि मैं हर इंटरव्यू में वाई के साथ रहता हूँ. मुझे पता है कि वो किस सवाल का क्या जवाब देती है. आपको जो पूछना है, मुझसे पूछ लीजिए, मैं आपको बिल्कुल वैसे ही जवाब दूँगा. तुनकमिजाजी और नैतिकता ने उफान मारा मैंने बड़ी शांति से उन्हें समझाया कि मैं बहुत एथिकल जर्नलिज्म करता हूँ. इस तरह का इंटरव्यू मैंने न कभी किया है और न कभी करूँगा.
श्रीमान एक्स अवाक मेरा चेहरा देखते रह गए. जब मैं जाने लगा तो वे मेरे पीछे-पीछे आए और दरवाजे पर मुझे रोककर हाथ जोड़ते हुए खेद प्रकट किया और कहने लगे कि बुरा मत मानिएगा, मेरी फिल्म रिलीज होने वाली है, इसलिए मैंने आपसे ऐसा कहा जिससे फिल्म को पब्लिसिटी मिल जाए. वर्ना मैं आपसे ज्यादा एथिकल आदमी हूँ. मैंने कहा कि मैंने बुरा नहीं माना है, सिर्फ यह कहा है कि मैं इस तरह के फर्जी इंटरव्यू नहीं करता. अगर आप चाहें तो मैं अपने एडिटर से बात करके आपका इंटरव्यू कर लूँगा.
बाद में मैंने उनका भी इंटरव्यू किया और उनकी विद्वता में तो वैसे भी कोई शक नहीं था, इसलिए इंटरव्यू बहुत अच्छा हुआ. फिल्म निर्माण और निर्देशन से जुड़े बहुत से महत्वपूर्ण मुद्दों पर उनसे काफी लंबी और काम की बातें हुईं. उनकी निजता का प्रश्न न होता तो वह इंटरव्यू यहाँ जरूर पोस्ट करता. न कर पाने के लिए साॅरी...
( 6 अगस्त को भाजपा की वरिष्ठ नेत्री दिवंगत श्रीमती सुषमा स्वराज जी की पहली पुण्यतिथि है. उनसे जुड़ा संस्मरण अगले सप्ताह .)

Sunday, July 12, 2020

बातें-मुलाकातें: 4 (नाम न पूछो)

एक बड़े प्रसिद्ध गायक हैं. अपने दौर में वे और भी ज्यादा प्रसिद्ध थे. जैसे शिकारी शिकार ढूंढता फिरता है, वैसे ही हम फ्री-लांस जर्नलिस्ट की तरह सेलिब्रिटीज ढूंढते हैं. ऐसे ही ढूंढते-ढूंढते पता चला कि वह गायक एक स्टारनाइट के लिए दिल्ली आए हैं, जहाँ प्रोग्राम के बाद वह होटल रंजीत में ठहरने वाले थे. मैंने होटल में फोन लगाया और बताया कि मैं आपका इंटरव्यू करना चाहता हूँ. उन्होंने सुबह-सुबह आठ बजे बुला लिया. मैंने अपने सहपाठी और उस समय रूममेट रहे पं. उमेश चतुर्वेदी जी को इस बारे में बताया और तय हुआ कि साथ ही चला जाए.

फ़ोटो का कोई वर्णन उपलब्ध नहीं है.

जब हम होटल पहुँचे तो आठ बजने में थोड़ा सा वक्त था. वे गायक होटल की लाॅबी में ही मिल गए. हमें बड़ी खुशी हुई कि ये बंदा तो वक्त का बड़ा पाबंद है और हमारे स्वागत के लिए खड़ा है. हमने उनके पास जाकर अपना परिचय दिया. उन्होंने कहा कि मैं तो अभी इनके साथ एयरपोर्ट के लिए निकल रहा हूँ. किनके साथ? यह सवाल हमारे मन में आया तो हमने उनकी दृष्टि का अनुसरण किया. उनकी सहगायिका एक टैक्सी में बैठ रही थीं. हमें बहुत अजीब लगा कि जब इस बंदे को फ्लाइट पकड़नी थी तो हमें बुलाकर हमारा वक्त क्यों जाया किया.
जवाब तुरंत ही मिल गया. उन गायक महोदय ने अपनी जेब से अपनी एक रंगीन पोस्टकार्ड साइज फोटो हमें थमा दी और बोले कि आप अपनी मर्जी से जो भी चाहे छाप दीजिएगा. हमने जब इंकार किया तो उन्होंने हमारे सामने एक और विकल्प पेश किया. बोले कि ऊपर मेरी वाइफ रूम में हैं. उन्हें पता है कि मैं किस सवाल का क्या जवाब देता हूँ, आप उनसे मिलकर इंटरव्यू कर लीजिए. अब तक मेरा धैर्य जवाब दे चुका था. मैंने इससे साफ मना कर दिया और कहा कि मैं ऐसे काम नहीं करता. उन्हें एहसास हुआ कि कुछ गड़बड़ हो गई है. उन्होंने पंडित जी से उनका नाम पूछा. चतुर्वेदी शब्द सुनते ही उनका ब्राह्मणवाद जाग उठा और उन्होंने अपनी जन्मभूमि और वह सरनेम बताया, जो वह अपने नाम के साथ शायद ही कभी इस्तेमाल करते हों. उन्हें लगा कि ब्राह्मण कुलनाम बताकर वे हमें मना लेंगे. लेकिन पं. उमेश जी तो और भी उसूलों वाले आदमी ठहरे. उन्होंने भी ऐसा करने से मना कर दिया. तब तक उनकी साथी गायिका उन्हें आवाज देने लगी थी.
वह टैक्सी की ओर बढ़ गए और उनका फोटो लेकर हम टहलते-टहलते आईएनएस आ गए, जहाँ चाय के स्टाॅल पर गर्मागर्म चाय और मठरी खाकर नाश्ता किया और उस गायक को गालियाँ देते हुए अपना गुस्सा शांत किया.
वह फोटो अभी भी मेरे पास रखा है. कभी पुरानी फाइलें देखते हुए अचानक आँखों के सामने आ जाता है तो उस घटना की याद से अब गुस्सा नहीं आता, बल्कि हँसी आती है कि उस वक्त हम कितने तुनकमिजाज हुआ करते थे. तुनकमिजाजी का ऐसा ही एक और किस्सा अगली कड़ी में...

Sunday, July 5, 2020

बातें-मुलाकातें: 3 (एम.एस. सथ्यू)

साल 2002 की शुरुआत. दिल्ली की सर्दियां और मौका वही सीरीफोर्ट का इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल. एक दिन घूमते-घूमते एक लंबी, दुबली-पतली काया, सिर पर सफेद झक बाल और उतनी ही सफेद दाढ़ी. समांतर सिनेमा और फिल्म पत्रकारिता में गहरी रुचि होने के कारण, पहचानने में जरा भी देर नहीं लगी कि यह प्रसिद्ध कन्नड़ फिल्मकार मैसूर श्रीनिवास हैं. नहीं समझे ना, अरे वही जो एम.एस.सथ्यू के नाम से ज्यादा प्रसिद्ध हैं.

अगर आपने 2013 का गूगल रियूनियन वाला एड देखा है तो उसमें वह पाकिस्तानी वृद्ध युसूफ की भूमिका में नजर आए हैं. लेकिन वह इसके चालीस साल पहले ही 1973 में आई अपनी पहली ही हिंदी फिल्म गरम हवा के साथ समांतर सिनेमा के सशक्त हस्ताक्षरों में शुमार हो गए थे. उस समय दूरदर्शन पर, तकषी शंकर पिल्लै के उपन्यास पर आधारित, उनका धारावाहिक कयर ( जिसे गलती से कायर समझ लिया जाता था, इसके बारे में भी उन्होंने ही मुझे बताया था कि कयर का मतलब रस्सी होता है. )

मैं तब लोकमत समाचार के फिल्म वार्षिकांक का संयोजन कर रहा था. मुझे उन्हें देखते ही ख्याल आया कि कन्नड़ सिनेमा के बारे में उनसे बात करने का यह अच्छा अवसर है. मैं लपककर उनके पास पहुँच गया और अपना परिचय देते हुए बोला कि क्या मैं आपसे 10-15 मिनट बात कर सकता हूँ? उन्होंने मुझे गौर से देखा और पूछा कि इससे ज्यादा तो नहीं? मैंने कहा, बिल्कुल नहीं. तो मैंने कन्नड़ सिनेमा की स्थिति पर उनसे बातचीत की. थोड़ी बहुत जानकारी मुझे पहले से थी, इसलिए उन्हें कहीं भी ऐसा नहीं लगा कि वे एक अनाड़ी से बात कर रहे हैं. कुल मिलाकर बातचीत काफी अच्छी रही. लेकिन, कहानी खत्म नहीं होती.

वार्षिकी के लिए हम ‘भविष्य का सिनेमा और सिनेमा का भविष्य विषय‘ पर एक परिसंवाद भी आयोजित कर रहे थे. फेस्टिवल के अगले दिन सथ्यु जी जब मुझे दोबारा नजर आए तो मुझे लगा कि मौका चूकना नहीं चाहिए, सिनेमा के इस जीनियस से फिर पता नहीं कब बात हो या न हो. मैं फिर से उनके पास जा पहुँचा और बोला कि मुझे आपके दस-पंद्रह मिनट चाहिए. ‘आपने कल भी यही कहा था?’’ उन्होंने मुझे घूरते हुए कहा. ‘‘ मैं आज भी कल से ज्यादा समय नहीं लूँगा.’’ मैंने बेझिझक जवाब दिया और फिर से बात शुरू हो गई. आज उनका 90 वां जन्मदिन है, इस मौके पर हम उनके दीर्घायु होने की कामना करते हैं. दोनों बार की बातचीत यहाँ हाजिर है, चाहे तो आप भी पढ़ सकते हैं.

interview

       

Wednesday, July 1, 2020

बातें—मुलाकातें : 2 (पवन मल्होत्रा)

इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल एक ऐसा मौका होता है, जहाँ आठ-दस दिनों में बहुत सारी फिल्मी हस्तियां एक ही जगह पर मिल जाती हैं. गोवा जाने से पहले यह आयोजन हर तीसरे साल दिल्ली के सीरीफोर्ट के आॅडिटोरियम्स में हुआ करता था. तीनो आॅडिटोरियम के बीच इतना फासला था, जिसे तय करते हुए किसी न किसी से मुलाकात हो ही जाती थी. ऐसे ही एक मौके पर मुझे पवन मल्होत्रा मिल गए. ब्राउन कलर का चमकीला ब्लेजर और व्हाइट पैंट....उस समय उनका बाघ बहादुर और नुक्कड़ की वजह से काफी नाम था... और मेरा नवभारत टाइम्स में अपने काॅलम 'मेरा सपना'  की वजह से. मैंने उन्हें जाकर अपना परिचय दिया और कहा कि मैं आपका इंटरव्यू करना चाहता हूँ. 

Strong characters stay in one's memory: Pawan Malhotra - lucknow ...

पवन ने कहा कि आप कर सकते हैं, लेकिन मैं पहले ही आपको बता देता हूँ कि मुझसे आपको अच्छी काॅपी नहीं मिलने वाली. मैं उस समय काफी मुंहफट था, बोल दिया कि आपने हँस के नीर-क्षीर विवेक के बारे में तो सुना ही होगा, तो  आप सिर्फ मेरे सवालों के जवाब देते जाइए, जो काम की चीजें होंगी, मैं खुद छाँट लूँगा. उस वक्त वह चाय का कप हाथ में लिए हुए थे. उन्होंने मुझसे पूछा कि आप कुछ पीएंगे, चाय या काॅफी? मैंने विनम्रता से मना कर दिया. फिर वहीं खड़े-खड़े उनसे करीब 15 मिनट बात हुई. 

उनके डराने के बावजूद इंटरव्यू काफी अच्छा रहा. कई साल बाद जब उनका नंबर मिला तो मैंने उन्हें भी इस इंटरव्यू की काॅपी व्हाट्स एप्प पर भेजी, तो उन्हें बहुत अच्छा लगा. आज उनका जन्मदिन है, अच्छी बात यह है कि वे आज भी उसी पुरानी ऊर्जा के साथ लगातार सक्रिय हैं. यह सक्रियता और ऊर्जा लगातार बनी रहे, इसी शुभकामना के साथ यह इंटरव्यू यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ. आप भी पढ़िए और उनके साथ हवा में उड़ते हुए जमीन की हरियाली का दीदार कीजिए....

interview

चित्र में ये शामिल हो सकता है: एक या अधिक लोग