Tuesday, December 29, 2020

बातें—मुलाकातें: 37 (मंजीत बावा)

हुसैन, रजा, जे.स्वामीनाथन, जहांगीर सबावाला, तैयब मेहता, सूजा, अपर्णा कौर, विकास भट्टाचार्य जैसे आधुनिक भारतीय कला केपुरोधाओं में से एक मंजीत बावा की एक अलग ही पहचान और शैली थी. उन्होंने आर्ट की स्टडी भले ही लंदन में की थी, लेकिन जब चित्रकला की विधिवत शुरुआत की तो उन्होंने विशुद्ध भारतीय माइथोलॉजी और सूफी कविता को अपनाया. रंगों के मामले में भी उन्होंने पश्चिम के ग्रे और ब्राउन के दबदबे से बचते हुए भारतीयता को अपनाया. यही वजह है कि उनके रंगों में सुर्ख लालिमा है, चमकीली नीलिमा है, चटख हरीतिमा  है, पारंपरिक पीलापन है, खिलता बैंगनी है... उनकी पेंटिंगों में अगर कृष्ण गायों की बजाए श्वानों से घिरे नजर आते हैं तो रांझा की विरहवेदना अमूर्त होते हुए भी साफ देखी जा सकती है, काली और शिव आदि हिंदू देवीदेवता उनके चित्रों में प्रमुखता से उपस्थित रहते हैं.


 

बावा से मेरी मुलाकात बेहद अनियोजित और आकस्मिक थी. हुआ ये कि मुझे नवभारत टाइम्स के, ख्यात महिलाओं की जीवन यात्रा पर आधारित कॉलम, इनसे मिलिए के लिए शास्त्रीय गजल गायिका रेखा सूर्या का इंटरव्यू करना था. जब मैंने उन्हें इस बारे में फोन किया तो उन्होंने मुझे अगले दिन होटल जनपथ बुलाया. मैं निर्धारित समय पर वहाँ जा पहुँचा और रिसेप्शन पर जाकर उनके बारे में पूछा. उन्होंने अंदर फोन मिलाया और मुझे दो मिनट रुकने के लिए कहा. कुछ ही पल बीते थे कि किसी द्वार से एक लंबा सा, झक सफेद दाढ़ी वाला शख्स तेजी से चलता हुआ रिसेप्शन पर आ पहुँचा. मैं उन्हें देखते ही पहचान गया, वे मंजीत बावा थे. उन्होंने रिसेप्शनिस्ट से इशारों से कुछ पूछा तो उसने मेरी तरफ इशारा कर दिया. मैं समझ नहीं पाया कि मैं आया तो रेखा सूर्या से मिलने था, इन्हें मुझसे क्या काम हो सकता है.

‘आइए’, उन्होंने कहा और मैं बिना कोई सवाल किए उनके पीछे—पीछे होटल के भीतर चलते—चलते एक गुफा जैसे स्थान पर पहुँच गया, जहाँ उन्होंने अपना स्टुडियो बनाया हुआ था. रेखा जी वहीं मौजूद थीं. उनसे मेरा परिचय बावा ने ही कराया. रेखा जी को मुझे देखकर हैरानी हुई. वह बोलीं कि आप क्लासिकल सिंगिंग के बारे में क्या जानते हैं? मैंने साफगोई से काम लेते हुए बताया कि मैं कलाप्रेमी हूँ—कला पारखी नहीं. बावा मेरी इस बात पर मुरीद हो गए. बोले कि मुझे आपकी यह बात बहुत अच्छी लगी कि आप इतनी कम उम्र में भी प्रेम और परख के अंतर को न सिर्फ समझते हैं, बल्कि इसे स्वीकार भी करते हैं. 

रेखा जी अभी भी परेशान थीं. बोलीं कि फिर आप इंटरव्यू कैसे करेंगे. मैंने कहा कि यह इंटरव्यू क्लासिकल म्युजिक के बारे में नहीं है, बल्कि आपके जीवन के बारे में है. खैर, इंटरव्यू शुरू हुआ और कुछ ही देर में रेखा जी की आशंका दूर हो गई और वे समझ गईं कि मैं जितना अनुभवहीन दिखता था, उतना था नहीं और कुल मिलाकर इंटरव्यू काफी अच्छा रहा. मंजीत शांति से पूरी बातचीत सुनते रहे और हमारे सवाल—जवाबों को आनंद लेते रहे. 

इंटरव्यू खत्म होने के बाद मैंने बावा से कहा कि मुझे भी आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा और मौका मिला तो मैं आपका भी इंटरव्यू करना चाहूँगा. जरूर उन्होंने कहा और मैंने उन दोनों से विदा ली. 

कुछ ही दिनों बाद मौका मिला. मुझे नवभारत टाइम्स के लिए एक परिचर्चा 'मेरे ख्वाबों में जो लड़की है' के अंतर्गत प्रसिद्ध पुरुषों से 'उनके लिए आदर्श महिला की क्या परिभाषा है' थीम पर उनके विचार पूछने थे. शत्रुघ्न सिन्हा, राहुल देव जैसे मित्रों से बात करने के बाद मुझे मंजीत बावा की याद आई. मैंने होटल जनपथ में फोन लगाया और बावा से बात कराने के लिए कहा. उन्होंने बावा से बात कराई तो वे मेरा नाम सुनते ही पहचान गए. मैंने उन्हें अपने विषय के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि आप आना चाहते हैं या फोन पर ही करेंगे. मैंने कहा कि समय कम है, फोन पर ही कर लेते हैं. उन्होंने बताना शुरू किया कि वे कैसी महिला को आदर्श मानते हैं. इसी क्रम में उन्होंने यह बताया कि उन्हें लंबी और पतली महिलाएं पसंद हैं. उनकी बात खत्म होने के बाद मैंने उनसे कहा कि अगर वे अन्यथा लें तो एक बात पूछना चाहता हूँ. वह ये कि अगर उन्हें लंबी और पतलीमहिलाएं पसंद हैं तो उनकी पेंटिंग्स में ज्यादातर महिलाएंं मोटी और नाटी क्यों नजर आती हैं. उन्होंने समझाया कि यह हमेशा नहीं होता, बल्कि इस पर निर्भर करता है कि पेंटिंग की थीम क्या है. अगर थीम की रिक्वायरमेंट मोटी और नाटी महिला है तो वे उसे ऐसा ही चित्रित करते हैं. 

आज सालों बाद इस सिलसिले में व्यक्त उनके विचारों को दोबारा पढ़ते हुए मैं महूसस करता हूँ कि कम से कम हममें एक बात तो कॉॅमन रही है... वह बात क्या है, इसे आप इंटरव्यू का उत्तरार्द्ध पढ़कर जान जाएंगे. 

आज बावा की बारहवीं पुण्यतिथि है. इस अवसर पर पुण्य स्मरण के साथ उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि.