Thursday, October 8, 2020

बातें—मुलाकातें : 22 (उस्ताद अमजद अली खान)

ऐसे लोग बहुत कम होंगे, जिन्होंने सरोद का नाम सुना होगा. ऐसे लोग और भी कम होंगे, जिन्होंने सरोद सुना होगा, लेकिन ऐसे लोग यकीनन बहुत ही कम होंगे, जिन्होंने उस्ताद अमजद अली खान का नाम न सुना हो. सरोद और उस्ताद करीब छह दशकों से एक—दूसरे के पर्याय बने हुए हैं. मीडिया के कला—संस्कृति प्रेम वाले दौर में उस्ताद की भुवनमोहिनी मुस्कान अक्सर समाचार—पत्रों के पन्नों की शोभा बढ़ाती नजर आ जाती थी.



उस्ताद से मेरी मुलाकात नवभारत टाइम्स के लिए अपने कॉलम मेरा सपना के सिलसिले में ही ही हुई थी. फोन पर मुलाकात का वक्त मुकर्रर कर, उस्ताद के द. दिल्ली स्थित आलीशान बंगले पर पहुँचा. उस्ताद की विनम्रता और गर्मजोशी दिल को छू लेने वाली थी. मेहमाननवाजी की रिवायत को आगे बढ़ाते हुए शर्बत पेश हुआ. उस्ताद को मैंने बताया कि मैं किस तरह का इंटरव्यू करना चाहता हूँ. उन्हें विषय जानकर बहुत अच्छा लगा...
उन्हें अच्छा लगा, इसलिए इंटरव्यू भी बहुत अच्छा रहा. उन्होंने एक राग के बनने की प्रक्रिया को प्रसव जैसा बताया, जिसमें आह और वाह दोनों का अद्भुत समागम होता है. पूरी बातचीत बड़ी स्तरीय थी, जो बहुत कम इंटरव्यू में हो पाता है. मैं पूछता गया और उस्ताद मनोयोग से जवाब देते गए.
इंटरव्यू खत्म होने के बाद उन्होंने पूछा कि क्या हमने किसी और क्लासिकल म्युजिशियन का इंटरव्यू पब्लिश किया है. मैंने बताया कि कुछ अर्सा पहले पंडित रविशंकर जी की 75वीं वर्षगाँठ पर उनका इंटरव्यू छपा था, लेकिन वो मैंने नहीं किया था.
अचानक उन्होंने मुझसे पूछा ​कि मेरी उम्र कितनी है. पूछकर उन्होंने मेरी आँखों में झाँका.
मैंने कहा कि उनके चेहरे से तो उम्र काफी कम लगती है, लेकिन तजुर्बे को देखकर लगता है कि साठ साल होगी.
'अगले छह अक्टूबर को मैं पचास साल का हो रहा हूँ.' उन्होंने बताया.
उन्होंने कहा नहीं, लेकिन मैं समझ गया कि वह चाहते हैं कि उनके पचासवें जन्मदिन पर भी उनके बारे में कुछ छपे. अभी अक्टूबर में दस महीने का वक्त था, इसलिए मैंने बिना कोई वादा किए उनसे विदा ली.
अगले दिन उनका फोन आया, उन्होंने पूछा कि अभी मैंने इंटरव्यू पब्लिश करने के लिए तो नहीं दिया है. मुझे आशंका हुई कि कहीं वे इसे छापने से मना तो नहीं करने वाले. मैंने तब तक आधा इंटरव्यू ही लिखा था, इसलिए उन्हें बता दिया कि अभी लिख ही रहा हूँ. इस पर उस्ताद बोले कि आप मेरे सपनों के बारे में पूछ रहे थे ना. रात ही मैंने एक बहुत डरावना सपना देखा कि कुछ लोग ताजमहल पर चढकर उसे तोड़ रहे हैं. उन्होंने मुझसे इसरार किया कि अगर मुमकिन हो तो इस सपने को अपने राइटअप में एड कर दीजिए. मुझे इसमें क्या दिक्कत हो सकती थी, सिर्फ दो लाइने ही तो बढ़ानी थीं,बढ़ा दीं. इंटरव्यू छपा, ​मैंने उस्ताद को फोन करके बताया तो वो बोले कि मैं पेपर मँगा लेता हूँ. फिर पढ़कर आपको बताता हूँ. मुझे उम्मीद भी नहीं थी और उन्होंने बताया भी नहीं.
फिर मार्च में एक परिचर्चा के सिलसिले में उस्ताद को फोन किया और एक आदर्श महिला के बारे में उनसे उनके विचार पूछे. इस बार भी अनुभव काफी अच्छा रहा.
कुछ दिनों बाद इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में उस समय के मशहूर प्रोग्राम सुरभि की पार्टी थी. उसमें उस्ताद से मुलाकात हुई. मैंने उनकी ओर हाथ बढ़ाया तो उन्होंने हाथ तो मिलाया, लेकिन उसमें गर्मजोशी नदारद थी. मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने मुझे पहचाना. उन्होंने हाँ में इस तरह से गर्दन हिलाई, जैसे पहचाना तो नहीं था, लेकिन पीछा छुड़ाने के लिए हाँ बोला हो.
यह उस्ताद की भुवनमोहिनी छवि से मोहभंग का मेरा पहला मौका था. दूसरा मौका उनके जन्मदिन पर आया, जब मैंने उन्हें बधाई देने के लिए फोन किया.
अपना परिचय देते हुए मैंने उन्हें मुबारकबाद दी तो उन्होंने शुक्रिया कहा और फिर बोले कि ठीक है? यानी अगर विश कर दिया हो तो फोन रखूँ... यह उस्ताद से मेरी आखिरी बातचीत थी.

इन दो अनुभवों के बाद मेरा फिर कभी उन्हें संपर्क करने का साहस नहीं हुआ. अब सोचता हूँ तो लगता है कि किसी के बारे में इस तरह से एकतरफा राय पाल लेना कितना अहमकाना होता है. हमें समझना चाहिए कि रिच एन्ड फेमस लोगों के दिमाग मे एक ही समय हज़ारों तरह की बातें चल रही हो सकती हैं.

आज एक बार फिर उस्ताद की सालगिरह का मौका है तो मुझे वो बात याद आ रही है. लेकिन फिर भी उन्हें बहुत सारी शुभकामनाएं देने का मन कर रहा था तो मैंने फेसबुक पर उनके पेज पर इंटरव्यूज की कॉपी और शुभकामना संदेश भेज दिया. इस जवाब आ चुका है, 'बहुत—बहुत धन्यवाद संदीप जी.'
अलबत्ता आप दे​ख सकते हैं कि संयोग भी कैसे—कैसे रंग दिखाते हैं, पंडित रविशंकर जी की 75 वीं जयंती से प्रेरित होकर उस्ताद अमजद अली खान की 50 वीं जयंती पर कुछ विशेष लिखने की योजना, जो तब साकार नहीं हो पाई थी, आज उनकी खुद की 75 वीं जयंती पर पूरी हुई है.

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