Monday, July 6, 2015

एक ब्रैन्ड की मौत

वर्षों से इंडिया के लगभग हर मिडिल क्लास और इससे ऊपर के स्तर वाले घर में किसी फेमिली मेंबर की तरह मौजूद रहने वाला मैगी ब्रैन्ड आज अचानक ही ऐसे विलेन में तब्दील हो गया है, जो आस्तीन के साँप की तरह, धीरे-धीरे हमारे शरीर में अपना विष फेला रहा था. इसे अनिश्चितकाल के लिए न सिर्फ भारत, बल्कि दूसरे कई देशों से अचानक ही निर्वासित कर दिया गया है.

किसी ब्रैन्ड के कालकवलित होने का यह पहला मामला नहीं है. बाजार के इस विशाल आकाश में सितारों की तरह जगमगाते अनेक ब्रैन्ड आपको अक्सर उन्हीं की तरह टूटकर गिरते नजर आ जाएंगे. जब तक उनका वक्त और तकदीर बुलंद होती है, वे जगमगाते हैं और फिर धीरे-धीरे उनकी चमक मंद पड़ने लगती हैं और एक दिन वे चुपचाप टूटकर गिर जाते हैं. कुछ अर्सा बाद उनका नाम भी यादों से मिट जाता है.



एक मोटे-मोटे अनुमान के हिसाब से एक एवरेज इंडियन, सुबह उठकर किसी खास ब्रांड का टूथपेस्ट और टूथब्रश इस्तेमाल करने से लेकर रात को एक और पाॅपुलर ब्रांड की मच्छरों को दूर करने वाले मशीन या अगरबत्ती जलाकर सोने तक, रोजाना चार-पाँच दर्जन ब्रैन्डों को तो इस्तेमाल कर ही लेता है. विकसित देशों में यह संख्या दो से तीन गुनी हो सकती है. 

आम-तौर पर किसी भी ब्रैन्ड की उम्र उसके प्रति यूजर की निष्ठा पर निर्भर करती है. लेकिन, यह निष्ठा उसे अमरत्व की गारंटी नहीं देती. कई बार बाजार की ताकतें भी ब्रैन्ड के टिके रहने में सशक्त भूमिका का निर्वहन करती हैं. देखते ही देखते 21 वीं सदी में अचानक ब्रैन्डों की संख्या कई गुना बढ़ गई है और आश्चर्यजनक रूप से इनमें दर्जनों ऐसे ब्रैन्ड मौजूद नहीं हैं, जिनकी 80’ज और 90’ज में तूती बोलती थी. 

वनस्पति घी का पर्याय माना जाने वाला डालडा, वाशिंग पाउडर का दूसरा नाम समझा जाने वाला निरमा, सनलाइट सोप, ओके नहाने का साबुन, लौंग के तेल के सहारे बिकने वाला टूथपेस्ट प्राॅमिस और सिर्फ झाग बनाकर पाॅपुलरटी पाने वाला टूथपेस्ट फोरहंस अब कहाँ हैं? अमिताभ बच्चन जैसे सुपरस्टार को लेकर बेस्ट में यकीन दिलाने वाला बीपीएल टीवी में से कब लोगों का यकीन खत्म हो गया पता ही नहीं चला, इट्स वाचिंग यू का नारा बुलंद करने वाला बुश टीवी, खुद ही नजर आना बंद हो गया. मर्फी रेडियो की आवाज खामोश हो गई, नेशनल के टू-इन की कैसेट अटक गई, कछुआ छाप अगरबत्ती बीच में ही बुझ गई.... ऐसे दर्जनों, सैंकड़ो ब्रैंड जो एक समय हमारे अवचेतन में गहरे तक पैठ बनाए हुए थे, आज उनका जिक्र तक नहीं होता. 

ब्रैन्ड को लंबी उम्र प्रदान करने वाले तत्वों में विज्ञापनों की निरंतरता भी एक प्रमुख तत्व है. तीन दशक पहले तक की स्थिति को देखें तो सिलाई के धागों से लेकर खुजली के मरहम तक, अनेक साधारण सी चीजों तक के विज्ञापन रेडियो-टीवी पर देखने-सुनने को मिल जाते थे. लेकिन, अब प्रचार में एमएनसी की आक्रामक घुसपैठ ने ज्यादातर देसी ब्रैन्ड्स को पटखनी दे दी.  और अब वे टीवी या अखबारों में नहीं, सिर्फ आर्काइव्ज में ही नजर आते हैं. 

और अब जो दौर है, वह किसी भी ब्रैन्ड से लाॅयल्टी प्रदर्शित करने से ज्यादा नए-नए आॅप्शन चुनने में यकीन रखने वाले कन्ज्यूमर्स का है. अपने चहेते किसी भी ब्रैन्ड को हम मिस तो करते हैं, लेकिन जब वह एक बार हाशिए से बाहर हो जाता है तो उसकी जगह दूसरे आॅप्शन को चुनने में हम बहुत ज्यादा वक्त नहीं लगाते. अपने चहेते किसी भी ब्रैन्ड को हम मिस तो करते हैं, लेकिन जब वह एक बार हाशिए से बाहर हो जाता है तो उसकी जगह दूसरे आॅप्शन को चुनने में हम बहुत ज्यादा वक्त नहीं लगाते.

लेकिन मैगी जैसे ब्रैन्ड का, जो कि एक मिडिल क्लास कल्चर को सिम्ब्लाॅइज करता था, का जाना दूसरे ब्रैन्ड्स के बाजार से निर्वासित होने जैसा नहीं है.अगर  ब्रैन्ड स्वाभाविक मौत मरते हैं,  तो  मैगी एक्सीडेंटल डेथ  है, जिस पर शायद ही कोई अफसोस करने वाला मिले.