19 नवंबर को दो ऐसी नारियों का जन्म हुआ है, जिन पर भारतीय जितना मन चाहे गर्व का अनुभव कर सकते हैं, पहली हैं भूतपूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत श्रीमती इंदिर गाँधी और दूसरी देश के लिए पहला मिस यूनिवर्स टाइटल जीतकर लाने वाली सुष्मिता सेन.
Wednesday, November 18, 2020
बातें—मुलाकातें: 31 (सुष्मिता सेन)
Monday, November 9, 2020
बातें—मुलाकातें: 30 (टी.एन.शेषन)
आम तौर पर ब्यूरोक्रेट्स को लोग एक व्यक्ति नहीं,बल्कि एक सिस्टम के तौर पर ही देखते हैं. लेकिन इनके बीच कई बार ऐसे चेहरे सामने आ जाते हैं, जो सिस्टम में लोगों का विश्वास जमाते हैं, उसकी ताकत से परिचित कराते हैं.
ऐसा ही एक चेहरा था पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त दिवंगत टी.एन. शेषन का. उनके निर्वाचन आयोग की कमान संभालने से पहले लोगों को चुनाव आयोग के बारे में सिर्फ इतनी ही जानकारी थी कि यह एक ऐसी संस्था है जो चुनावों की तारीख और नतीजे घोषित करती है. लेकिन जब शेषन ने अपनी भूमिका निभाना शुरू किया तो पूरे देश को बताया कि असल में चुनाव आयोग कितना शक्तिशाली है. जब वह अपने पूरे फॉर्म में आए तो बड़े—बड़े खुर्राट राजनेता उनके सामने पनाह माँगते नजर आते थे. नेताओं के नट—बोल्ट कसे तो जनता के हीरो बन गए और 'गिव मी फाइव शेषन, आई विल गिव यू स्ट्रॉन्गेस्ट नेशन' एक मुहावरे के तौर पर इस्तेमाल होने लगा. इसके बार तो किरण बेदी, गोविंद खैरनार, हरजीत सिंह बाबा जैसे अनेक जननायक लोकतंत्र के शक्तिशाली पहरेदार की भूमिका में नजर आने लगे. लेकिन कुछ ही साल बाद यह पूरा माहौल एक गुबार की तरह ओझल हो गया और सब कुछ अपने पुराने ढर्रे पर लौट आया. जब किरण बेदी और टी.एन.शेषन खुद चुनाव मैदान में उतरे तो लोकप्रियता काम न आई और सराहना और समर्थन का फर्क साफ—साफ महसूस किया गया. यह बहुत लंबी चर्चा का विषय है, इसलिए वापस शेषन जी पर लौटते हैं, जिन्हें आज से ठीक एक साल पहले नियति के क्रूर हाथों ने हमसे छीन लिया था.
शेषन एक बेहद सनकी ब्यूरोक्रेट के रूप में पहचाने जाते थे, जो सरेआम
विज्ञापन में नेताओं को कच्चा चबाने की बात करते थे और पत्रकारों को आधी रात को फोन
करके धमकने का माद्दा रखते थे. मैं उन दिनों आईआईएमसी से पत्रकारिता का कोर्स कर रहा
था और अखबारों के लिए फ्रीलांस किया करता था. मुझे लगा कि अगर मैं टी.एन. शेषन का इंटरव्यू
करने में कामयाब हो गया तो मेरे लिए यह एक बहुत बड़ी अचीवमेंट हो सकती है. नई—नई शुरुआत
थी तो इंकार चुभता नहीं था.
जनाब शेषन साहब का नंबर तलाशा और उन्हें फोन लगा दिया. उम्मीद के
विपरीत उन्होंने खुद फोन उठाया. मैंने परिचय दिया कि कहा कि मैं आपका इंटरव्यू करना
चाहता हूँ. वह बोले कि संडे को आ जाइएगा, लेकिन आने से पहले कॉल कर लेना. उस समय तो
जैसे मेरे पाँव जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे, लग रहा था कि जैसे मैंने कोई बहुत बड़ी
जंग जीत ली हो. लेकिन, उस वक्त नहीं मालूम था कि यह जंग का अंजाम नहीं, बल्कि आगाज
है. असली जंग तो अब शुरू होनी थी.
शेषन साहब के आश्वासन से फूला न समाया मैं हवा में उड़ता हुआ नवभारत
टाइम्स पहुँचा. उस समय अच्युतानंद जी एनबीटी के सहसंपादक थे. जब मैंने उन्हें बताया
कि शेषन जी ने मुझे टाइम दे दिया है तो उन्हें यकीन न आया. फिर उन्होंने कहा कि यह
मामला एक बहुत बड़ी हस्ती का है. इसलिए हम चाहते हैं कि जब आप इंटरव्यू लेने जाएं तो
नवभारत टाइम्स से एक रिर्पोटर भी आपके साथ रहे. मुझे यह शर्त अटपटी तो लगी, लेकिन मैंने
इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और यही कहा कि वहाँ से कन्फर्मेशन मिलने के बाद मैं
आपको बता दूँगा.
संडे मैंने सुबह—सुबह शेषन साहब को फोन मिलाया और कहा कि मैंने
कन्फर्मेशन के लिए फोन किया था. उन्होंने कहा कि वो तो आउट आॅफ स्टेशन हैं, आप तीन—चार दिन के
बाद फोन कर लीजिएगा.
अगली बार फोन किया तो एक बेहद मधुर महिला स्वर सुनाई दिया कि वो
तो नहीं हैं, आप संडे को फोन कर लीजिएगा. उन्हीं
दिनों मैंने अखबार में पढ़ा था कि शेषन जी ने अपने फोन में एक ऐसी डिवाइस लगा रखी है,
जिसके माध्यम से बच्चे, बूढ़े, बीमार बूढ़े, महिला, लड़की वगैरह करीब आधा दर्जन तरह
से आवाज बदल कर बात की जा सकती है. मुझे लगा कि शायद इस बार भी ऐसा ही हो रहा है.
संडे फोन किया तो शेषन साहब की असली आवाज सुनने को मिली. मैंने कहा
कि मैंने आपको इंटरव्यू के लिए कॉल किया था.
असंभव ! महाभारत के द्रोणाचार्य के अंदाज में उन्होंने एक शब्द में
जवाब दिया और फोन रख दिया.
लेकिन मैं कहाँ हार मानने वाला था. कुछ दिनों बाद यह सोचकर कि अब
तो वह भूल गए होंगे, मैंने नए सिरे से इंटरव्यू के लिए उनका समय माँगा. उन्होंने एक
तारीख, ठीक से याद नहीं क्या तारीख थी, बता दी और कहा कि फोन करके आ जाइएगा. जब मैंने
उस तारीख को उन्हें कॉल किया तो उन्होंने जवाब दिया कि वो तो बाहर गए हुए हैं. इतनी
बार उनकी आवाज सुन चुका था कि धोखा होने का सवाल ही नहीं था. मैंने कहा कि उन्होंने
मुझे आज इंटरव्यू के लिए बुलाया था.
'तो क्या वे आपके लिए यहाँ रुकते? उन्होंने गुस्से में कहा, 'आप
कौन बोल रहे हो? हो कौन तुम?'
उनके गुस्से से मैं नर्वस हो गया, मैंने जल्दी से फोन रख दिया.
इसके बाद यह सिलसिला कई बार दोहराया गया. एक बार वह बड़े प्रेम से
बात करते, अगली बार दुर्वासा बन जाते. इस आँखमिचौली के खेल में मुझे भी बहुत मजा आने
लगा, इंटरव्यू लेना न लेना अब मेरी प्राथमिकता नहीं रही थी. बस उनसे बात होते रहना
ही काफी था. उनके जन्मदिन पर विश करना, अलग—अलग फेस्टिवल पर कॉल करके शुभकामनाएं देना सब जारी
था, बस जो नहीं हो पाया, वह था शेषन साहब का इंटरव्यू.
छह महीने तक यह सब चला. फिर पता नहीं क्यों, या तो उनका नंबर बदल
गया या फिर कोई और वजह रही होगी, उनका फोन उठना बंद हो गया. फिर एक दिन पता चला कि
कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में उनका भाषण है. यह सोचकर कि वहीं उनका इंटरव्यू कर लूँगा, मैं
वहाँ पहुँच गया. लेकिन भाषण के बाद सवाल—जवाब सत्र
में उन्होंने पत्रकारों की जिस तरह क्लास ली और खिल्ली उड़ाई, उसे देखते हुए मेरी हिम्मत न हुई कि उन्हें छेड़ूँ और मैंने उनका
इंटरव्यू करने का इरादा हमेशा के लिए छोड़ दिया.
आज उनकी पहली पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि.
न भूतो न भविष्यति वाली उनके जैसी शख्सियत की कमी हमेशा महसूस की जाती रहेगी.
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Friday, November 6, 2020
बातें—मुलाकातें:29 (कमल हासन)
पत्रकारिता करते हुए बहुत सारी चीजें होती हैं जो हमारे मन के मुताबिक नहीं होतीं. किसी सेलिब्रिटीज को इंटरव्यू के लिए अप्रोच करने पर उसका इंकार एक ऐसी ही स्थिति है, जो हम आसानी से स्वीकार नहीं कर पाते. राजेश खन्ना, नाना पाटेकर, राज बब्बर, करिश्मा कपूर, टीनू आनंद, कपिल देव, मेनका गाँधी जैसी बहुत सारी हस्तियाँ हैं, जिनसे मेरी इंटरव्यू के सिलसिले में बातचीत हुई, लेकिन उन्होंने अलग—अलग वजहों से इंटरव्यू देने से इंकार कर दिया. यह इंकार एक आम सी बात है, लेकिन कई बार इंकार, खासकर ऐसे शख्स का इंकार जिसके कि आप प्रशंसक भी हों, का तरीका इतना चुभने वाला होता है कि वह आपके मन में सामने वाले की पूरी छवि ही बदल देता है. . गुलजार से जुड़े अनुभव को मैंने कुछ महीने पहले इसी कॉलम में साझा किया था, ऐसा ही एक और एक्सपीरिएंस मुझे कमल हासन के साथ हुआ.
कमल की अभिनय प्रतिभा के बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं है. जिन्होंने उनकी पुष्पक, सदमा, नायकन, अप्पू राजा जैसी फिल्में देखी हैं, वे जानते होंगे कि एक समय उनकी टक्कर का अभिनेता दक्षिण तो क्या, पूरे देश में नहीं था. लेकिन, बतौर एक इंसान वे कैसे होंगे,इसका अंदाजा उनकी भूमिकाओं से नहीं लगाना चाहिए.
जहाँ तक मेरे निजी अनुभव का सवाल है, उनसे मेरी मुलाकात इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के दौरान ही हुई थी, जहाँ वे अक्सर इधर से उधर भागते दिख जाते थे. ऐसे ही भागते हुए कमल हासन को मैंने टोका और कहा कि मैं आपका इंटरव्यू करना चाहता हूँ. 'अब्बी' तो नहीं, उन्होंने कहा और खिसक गए. चूंकि मैं पुष्पक देखकर उनका 'जबरा फैन' बन चुका था, इसलिए बड़ा मन था कि उनका इंटरव्यू हो जाए. इसलिए मैं पीछे लगा रहा और कुछ देर बाद फिर से उन्हें थाम लिया. उन्होंने कहा कि थोड़ी देर में बात करेंगे. इसके बाद वे दिन में कई बार आते—जाते दिखे, हर बार उनके पीछे धारावाहिक हम लोग का एक मुख्य कलाकार पूँछ की तरह लटका दिखाई दे जाता था, जिसे पता नहीं कमल से क्या फायदा मिलने वाला था. उसने मुझे बार—बार कमल को टोकते देखा तो कमल से ज्यादा ऐतराज उसे हुआ और उसने मुझे धीरे से आगाह किया कि सर गुस्सा हो जाएंगे.
कुछ देर बाद मैंने कमल हासन को फिर से याद दिलाया कि क्या अब इंटरव्यू कर सकते हैं?
'लिसन, आई एम नॉट कम्फर्टेबल विद हिंदी' कमल ने अपना गुस्सा दबातेहुए जवाब दिया. और मुझे अवाक छोड़कर आगे बढ़ गए. कुछ देर बाद, कुछ दूरी पर वे टीवी चैनलों के पत्रकारों से घिरे उनके सवालों के जवाब देते नजर आए. मुझे उसी समय एहसास हो गया कि अब हम जैसे प्रिंट के पत्रकारों को टीवी चैनलों के पत्रकारों के मुकाबले कमतर समझे जाने का दौर शुरू हो चुका है.
उस वक्त से कमल हासन को लेकर मेरे मन में ऐसी खुन्नस पैदा हुई जो सालों तक दिल से नहीं मिटी. उनके बारे में जब भी कुछ बुरा छपता, जैसे कि अमेरिकी एयरपोर्ट पर हासन को हसन समझ लिए जाने के कारण उनकी जो फजीहत हुई उससे मुझे बड़ा दिली सुकून मिला, जो कि बहुत ही अहमकाना बात थी. जब अश्विनी भावे द्वारा उन पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाते हुए चाची 420 छोड़ने की खबर आई तो मुझे लगा कि वाकई एक इंसान के तौर पर उनके बारे में मेरी राय गलत नहीं है.
लेकिन, अजीब बात यह थी कि इतनी नाराजगी और चिढ़ के बावजूद मुझे उनकी फिल्में और उनका काम हमेशा बहुत अच्छा लगता था. इंडियन, चाची 420, अभय, मुंबई एक्सप्रेस, मेयर साहब, विश्वरूपम, दशावतार, हे राम जैसी फिल्में मैंने थिएटर में देखी थीं और उन्हें बहुत पसंद भी किया था.
फिर जैसे—जैसे समझदारी बढ़ती गई, ये नाराजगी कम होती गई. उनके किए अच्छे कामों पर ध्यान देना शुरू किया तो पता चला निजी जीवन में भी उन्होंने बहुत कुछ ऐसा किया है, जो सराहे जाने लायक है. खासकर कैंसर और एचआईवी से प्रभावित बच्चों की भलाई के लिए तो उन्होंने बहुत जबर्दस्त काम किया है. वे किसी भी ब्रॅन्ड एन्डोर्समेंट में शामिल न होने के लिए जाने जाते हैं. 2015 में उन्होंने पहली बार पोतिस नामक एक टेक्स्टाइल शो रूम को एन्डोर्स किया, साथ ही यह भी घोषणा की कि ऐसे किसी भी एन्डोर्समेंट से होने वाली आमदनी को वे एचआईवी से पीड़ित बच्चों के कल्याण के लिए डोनेट करेंगे. उन्होंने कई बार विभिन्न पुरस्कारों से प्राप्त राशि ऐसे बच्चों के लिए डोनेट की है. अपने साठवें जन्मदिन पर, 2014 में उन्होंने एक पर्यावरण संस्था के साथ मिलकर मदम्बक्कम लेक की सफाई का जिम्मा उठाया. उन्हें प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वच्छ भारत अभियान के लिए भी नॉमिनेट किया गया था. पद्मश्री, पद्मभूषण जैसे अवार्डो के अलावा फिल्मों के लिए तो उन्हें इतने सम्मान मिले हैं कि गिनते—गिनते थक जाएंगे.
आज कमल जी के जन्मदिन पर उन्हें ढेर सारी शुभकामनाएं.
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Wednesday, November 4, 2020
बातें—मुलाकातें: 28 (इरफान)
यह कहना गैरवाजिब नहीं होगा कि इरफान कार्टूनिस्टों की सबसे समृद्ध पीढ़ी, जिसमें काक, राजेन्द्र पुरी, राजेन्द्र धोड़पकर, सुधीर दर, सुधीर तैलंग, सुशील कालरा, अजित नैनन जैसे नामचीन कार्टूनिस्ट शुमार थे, की नुमाइंदगी करने वाले, वर्तमान में सबसे सक्रिय, कार्टूनिस्ट हैं, जो आज भी हर महीने सौ से ज्यादा कार्टून बनाते हैं. तो गलत न होगा. वैसे तो राजेन्द्र धोड़पकर जी और काक साहब से भी मेरे बहुत आत्मीय और अच्छे ताल्लुकात रहे, लेकिन जो अनौपचारिक रिश्ता इरफान के साथ था. वह किसी दूसरे कार्टूनिस्ट के साथ नहीं रहा.
इरफान को मैं जानता तो तब से था, जब धर्मयुग में ढब्बू जी की जगह उनके किरदार गप्पन ने ली. लेकिन पहचान दिल्ली आने के बाद हुई, जब मैं पत्रकारिता में पढ़ रहा था और मैंने कार्टून पत्रकारिता को अपने रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए चुना. इसमें मुझे नवभारत टाइम्स में छपने वाले इरफान और जनसत्ता में छपने वाले धोड़पकर जी के कार्टूनों का तुलनात्मक अध्ययन करना था. इरफान से मुलाकात हुई तो दोस्ती भी हो गई. जब मैं अपने असाइनमेंट्स देने नभाटा जाता तो फीचर वाले केबिन में देर तक उनके साथ गपशप चलती रहती.
उन दिनों वक्त की कोई कमी तो थी नहीं, तो कई बार हम दिल्ली की सड़कों पर खाक छानने निकल पड़ते थे. इसी घुमक्कड़ी में मुझे एक दिन पता चला कि इरफान को गाने का, खासकर मुकेश के गाए गानों का, भी शौक है. उन्होंने रोहिणी में घूमते हुए मुझे बहुत सारे गाने सुनाए, जिनमें अराउंड द वर्ल्ड का जोशे जवानी हाय रे हाय और रजनीगंधा का कई बार तुमको यूँ भी देखा है अभी तक याद है... मुकेश के गाने गाने का शौक मुझे इरफान से ही लगा था. इरफान म्यूजिक कैसेट्स का रिव्यू भी करते थे, वह भी कार्टून बनाने वाले अंदाज में... उफ ये मोहब्बत की कैसेट का रिव्यू करते हुए उन्होंने इसके दामन जला दिया गाने का जिक्र इस अंदाज में किया कि इसमें दामन जला दिया इतनी बार दोहराया गया है कि सुनने वाले का दिल जलने लगता है.
उनके ये पंच, उनके कार्टूनों में तो नियमित रूप से मिलते ही रहते थे. सेंसर बोर्ड पर बनाया उनका एक कार्टून मुझे अभी तक याद है, जिसमें उन्होंने सेंसर अधिकारी को अपने अधीनस्थ को निर्देश देते हुए दिखाया था कि 'इसमें पूं पूं जगह टूं टूं और पूं पूं की जगह चूं चूं डाल दो.
कहते हैं कि कभी—कभी इंसान की जुबान पर सरस्वती विराजती है. एक दिन मैं इरफान के घर गया. उन्होंने एक बात कही कि जो हमारे घर आता है, वह जीवन में इतना आगे बढ़ जाता है कि फिर कभी वह दोबारा हमारे घर नहीं आ पाता, तुम भी देखना काफी तरक्की करोगे.
उसके कुछ ही महीने बाद मुझे पत्रकारिता में हमारे मार्गदर्शक और संरक्षक अच्युतानंद मिश्र जी ने लोकमत समाचार में फीचर पेज संभालने के लिए नागपुर बुला लिया. बेशक बहुत ज्यादा तरक्की तो नहीं थी ये, पर इतनी जरूर थी कि फिर कभी इरफान के घर वापस जाने का मौका नहीं मिल पाया.
तीन—चार साल पहले इरफान अच्युता जी के साथ नागपुर आए थे तो सेंटर पॉइंट होटल में उनसे मुलाकात हुईं. पुराने यार मिले तो पुरानी यादें ताजा हुईं. इन्हीं में से एक बात यह भी थी. मैंने इरफान से कहा कि मुझे एक बार फिर तुम्हारे घर आना पड़ेगा, कृपा रुक गई है. शायद फिर से तरक्की की राह मिल जाए.
हालांकि
दिल्ली हर साल जाना होता है, लेकिन कभी इरफान के घर जाने का मौका नहीं मिल पाता. इस बार देखते हैं...
बहुत से कार्टूनिस्टों की लाइनों में धार होती है और बहुत सारे कार्टूनिस्टों के लफ्जों में... लेकिन इरफान उन खुशकिस्मत कार्टूनिस्टों में से एक हैं, जिन्हें कुदरत ने दोनो ही चीजों में तीखेपन की सौगात दी है. आज उनका जन्मदिन है, इस मौके पर हार्दिक बधाई और शुभकामना कि उनकी धार यूँ ही बरकरार रहे.
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