Thursday, February 9, 2012

लालच अहा लप-लप...


इंसानी जज्बातों की दो किस्में होती हैं, एक में प्रेम,करुणा, परोपकार, सहानुभूति, खुशी आदि आते हैं तो दूसरी में क्रोध, ईष्र्या, घृणा, भय, लालच जैसी नकारात्मक भावनाएं. इनमें लालच एक ऐसी भावना है, जो समस्त नकारात्मक भावनाओं की वजह बनने में सक्षम होती है. आखिर हमारी संस्कृति में सदियों से लालच को ‘बुरी बला’ माना जाता रहा है, तो यह अकारण नहीं है. न सिर्फ हमारी, बल्कि पाश्चात्य संस्कृति भी ‘ग्रीड’ को ‘ सीड आफ आल एविल्स ’ मानती है. लेकिन, विज्ञापनों की दुनिया में ‘ग्रीड’ कोई बुरा शब्द नहीं है. बल्कि सम्पूर्ण कारोबारी मनोविज्ञान का बीज मंत्र है.

यही ग्रीड है, जो किसी मगरमच्छ को एक केंडी के पीछे-पीछे किसी के घर तक ले आता है, वानर मदारी को बालीवुड में अपने कनेक्शंस की धौंस दिखा रही नाराज नचनिया को जाने से रोक देता है. प्रमोशन के लालच में एक दंपत्ति को नया कुकर खरीदकर लाने और उसमें खाना पकाकर ‘ अफसर’ को खुश करने के लिए प्रेरित करता है. रिसाव रोकने वाले एक पेस्ट के विज्ञापन में लालच की इस भावना का बेहद खूबसूरत इस्तेमाल किया गया है. इसमें मृत्यु शैया पर लेटे एक वृद्ध को घेरे खड़े उसके रिश्तेदार एक चेक पर उससे एक के बाद लगातार शून्य पर शून्य लगवाए जा रहे हैं. इसी बीच वृद्ध की मौत के साथ ही छत से पानी की एक बूंद टपकती है और पहले अंक पर गिरकर चेक की रकम को सिर्फ चंद शून्यों में बदलकर रख देती है...


ये तो वो विज्ञापन हैं, जो लालच को एक विषय की तरह इस्तेमाल करके बनाए गए हैं. लेकिन, अगर देखा जाए तो नब्बे फीसदी विज्ञापन लालच के इस विशाल वटवृक्ष को लगातार खाद-पानी देते नजर आएंगे. सैद्धांतिक दृष्टि से विज्ञापनों को ‘कृत्रिम आवश्यकताओं का सृजन करने वाली विधा’ के रूप में पारिभाषित किया जाता है, लेकिन असल में तो ये ‘वास्तविक लालच का सृजन ’ करते हैं. किसी परफ्यूम का विज्ञापन आपको आधा दर्जन गर्लफ्रेंड्स पाने का लालच देता है तो कोई अंडरवियर आपको ‘सब कुछ बड़े आराम से’ पा लेने का. कोई विज्ञापन आपके मन में एक डिटर्जेंट के इस्तेमाल से कामयाबी   हासिल कर लेने का लालच देता है तो कोई एक उत्पाद की खरीदारी के साथ सोना बटोरने या लखपति बन जाने का.

'नीड' और 'ग्रीड' के बीच एक बहुत बारीक सी रेखा होती है. विज्ञापनों ने इसे पूरी तरह धुंधला कर दिया है. पहले हम अपनी नीड्स को पूरा करने के मकसद के साथ जीते थे, फिर विज्ञापनों ने हमारी इच्छाओं को हमारी जरूरत में बदल दिया और अब लालच को. ग्रीड के नीड में बदल जाने के इस सफर में विज्ञापन लगातार हमारे हमसफर रहे हैं. लेकिन, एक ऐसा हमसफर जो लगातार आपकी जेब पर नजर गड़ाए हुए है. जाहिर है, आपका ग्रीड, इन विज्ञापनों की नीड है.

हाँ, अगर आपको इस स्थिति से कोई आपत्ति या आशंका है तो इस लेख के दूसरे पैराग्राफ में उदाहरणार्थ दिए गए चैथे विज्ञापन को एक बार फिर से याद कर लीजिए, जो आपको याद दिलाता है कि लालच वाकई एक बुरी बला है.

-संदीप अग्रवाल