Thursday, August 27, 2020

बातें-मुलाकातेंः 13 (मिनी मेनन)

यह वह दौर था, जब भारतीय युवतियाँ विश्व फलक पर अपने सौंदर्य के जलवे बिखरा रही थीं और हर अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में पहला, दूसरा या तीसरा स्थान हासिल कर रही थीं. संयोग से इनमें से कई दिल्ली या नोएडा की रहने वाली थीं, तो उन तक पहुँचना अपेक्षाकृत सुगम था, तो करीब आधा दर्जन विनर ब्यूटीज के इंटरव्यू मेरे खाते में दर्ज हो चुके थे. ऐसा ही एक अहम खिताब मिनी मेनन ने भी जीता था, फेमिना मिस इंडिया एशिया पैसेफिक का...

मिनी के बारे में मुझे एक हमपेशा मित्र से पता चला, जो कुछ दिन पहले उनका इंटरव्यू कर चुकी थी. हम एक-दूसरे से अपने एक्सपीरिएंस और रिफ्रेंस शेअर किया करते थे. उसने मिनी की बहुत तारीफ की कि वह एक बहुत ही स्वीट- सिंपल और डाउन टू अर्थ गर्ल है और बहुत सुलझी हुई भी. उसने मुझे सुझाव दिया कि मुझे मिनी का इंटरव्यू भी करना चाहिए. मुझे भी सरल हृदय व्यक्तियों से मिलकर बहुत अच्छा लगता था, तो मैंने उससे मिनी का टेलीफोन नंबर ले लिया और उन्हें फोन करके नवभारत टाइम्स में चल रहे अपने काॅलम मेरा सपना के बारे में बताया और कहा कि मैं इस काॅलम के लिए उनका इंटरव्यू करना चाहता हूँ. मिनी ने कहा कि इन दिनों उनके पापा की तबियत खराब है तो कुछ दिन बाद काॅल कर लीजिएगा हफ्ते भर बाद मैंने फिर फोन किया तो मिनी ने फिर वही विवशता जाहिर की. कुछ दिनों के अंतर से मैंने फिर दो-तीन बार उन्हें काॅल किया, लेकिन इसी तरह की परिस्थिति सामने आती रही. 

करीब एक-डेढ़ महीने के बाद मैंने मिनी को काॅल किया तो वह बोली कि आप कल आ सकते हैं क्या? मैंने अपनी सहमति दे दी और इंटरव्यू के लिए मिनी के नोएडा स्थित घर पहुँच गया. जैसा मेरी दोस्त ने बताया था, मिनी मुझे उससे भी कहीं ज्यादा स्वीट और सिंपल लगीं. हमने काफी देर बात-चीत की. मैं सवाल करता गया, वो जवाब देती गईं. और इंटरव्यू खत्म हुआ. इंटरव्यू के बाद चाय आ गई. चाय की चुस्की लेते हुए मैंने मिनी से उनके पापा की तबियत के बारे में पूछा. मिनी ने जवाब दिया कि वे कुछ ही दिन पहले एक्सपायर हो गए. बताते-बताते वह उदासी, उनकी आवाज और आँखों में छलक आई, जिसे अब तक उन्होंने बड़े सब्र से अपने भीतर सँभाले रखा था. 

मुझे बहुत दुःख महसूस हुआ और मैंने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि आप अगर बता देतीं तो मैं कुछ दिन बाद आ जाता. मिनी बोली कि कोई बात नहीं, आप इतने दिनों से मेरा इंटरव्यू करना चाहते थे तो मुझे आपको और होल्ड पर रखना ठीक नहीं लगा. मैंने मन ही मन मिनी के साहस की दाद दी और इस बात के लिए उनका शुक्रिया अदा किया कि अपने   दुःख के बावजूद उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि मुझे असुविधा न हो. 

अपने पैशन को प्रोफेशन में बदलना और उसमें कामयाबी व शोहरत हासिल करना बहुत भाग्यशाली लोगों को नसीब होता है. अच्छी बात यह है कि मिनी उनमें से एक हैं. इंटरव्यू के दौरान मिनी ने अपने बहुत सारे सपनों के बारे में बताया था, उनमें तीन थे आर्कियोलाॅजी में कैरियर बनाना, मीडिया में नाम कमाना और दुनिया की सैर करना. इत्तेफाक देखिए कि आज ये तीनों सपने लगभग हकीकत में तब्दील हो चुके हैं. मिनी बीते सालों में एक प्रतिष्ठित लेखक और पत्रकार बन चुकी हैं. उनके खाते में ब्लूमबर्ग टीवी इंडिया की इनसाइड इंडियाज बेस्ट नोन कंपनीज, द पिच और असाइनमेंट जैसे लोकप्रिय शोज, इन फोकस जैसी अवार्ड-विनिंग डाॅक्यूमेंट्रीज, भारत के सात अग्रणी उद्यमियों पर आधारित राइडिंग द वेव नाम की एक किताब दर्ज हैं. उन्हें इंडियन ब्राॅडकास्ट फेडरेशन द्वारा बेस्ट बिजनेस न्यूज एंकर अवार्ड, जीटीवी के अस्तित्व अवार्ड फाॅर जर्नलिज्म और  राजीव गाँधी अवार्ड फाॅर एक्सीलेंस एज ए यंग अचीवर जैसे प्रतिष्ठित सम्मान भी मिल चुके हैं. इम्पेक्ट मैगजीन द्वारा साल 2013 में मिनी को इंडियन मार्केटिंग, एडवर्टाइजिंग और मीडिया के क्षेत्र में दस सर्वाधिक प्रभावशाली महिलाओं में शुमार किया गया था.

और जहाँ तक इतिहास और पुरातत्व के प्रति उनके आकर्षण का सवाल है तो यह जानना एक सुखद अनुभव है कि वे इन दिनों लाइव हिस्ट्री इंडिया (https://www.livehistoryindia.com/)  की कोफाउंडर और एडिटर हैं और पूरी शिद्दत से भारतीय इतिहास और पुरातत्व के तमाम अनछुए पहलुओं और अनजाने पन्नों को दुनिया के सामने उजागर करने में लगी हैं.

आज मिनी का जन्मदिन है, उन्हें इस मौके पर और उनकी तमाम उपलब्धियों के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं कि वह यूँ ही सफलता के नित नए मकाम हासिल करती रहें.

interview


Wednesday, August 26, 2020

बातें-मुलाकातें: 12 (बासु भट्टाचार्य )

वैसे तो बासु भट्टाचार्य जी ने अनुभव, आविष्कार, गृहप्रवेश, पंचवटी और आस्था जैसी कई बेहद उम्दा फिल्में बनाई हैं, लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा जाना जाता है, तीसरी कसम के लिए. यह फिल्म भले ही कारोबारी लिहाज से कामयाब न रही हो, लेकिन हिंदी सिनेमा के इतिहास में एक मील के पत्थर के रूप में दर्ज है. इसे 1966 में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था.


बहरहाल, मौका था साहित्य अकादमी द्वारा साहित्य और सिनेमा पर आयोजित तीन दिवसीय सेमिनार का, जहाँ भट्टाचार्य फणीश्वर नाथ रेणु जी की कहानी ‘मारे गए गुलफाम’ पर आधारित अपनी फिल्म तीसरी कसम के बारे में चर्चा के लिए आए थे.

अपने व्याख्यान में उन्होंने इस फिल्म की निर्माण यात्रा के बारे में बहुत दुर्लभ जानकारियाँ साझा कीं. व्याख्यान के बाद जब वह इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के आॅडिटोरियम से बाहर आए तो मैंने उन्हें थाम लिया और अपना परिचय देने के बाद उनके व्याख्यान की तारीफ करते हुए उनसे कहा कि मैं उनका इंटरव्यू करना चाहता हूँ.

चलते-चलते उन्होंने पूछा कि आपने तीसरी कसम देखी है? मैंने नहीं देखी थी, इसलिए न में जवाब दिया. इस पर वह बोले कि फिर मैं आपसे बात नहीं करूंगा. मैंने कहा कि लेकिन मैंने आपकी अनुभव और आविष्कार देखी हैं. पहले उन्होंने मुझे घूरा और बोले कि ठीक है, पर ज्यादा वक्त मत लीजिएगा. मैंने कहा हद से हद पंद्रह मिनट.

और फिर हम वहीं लाॅन में पड़ी कुर्सियों पर बैठ गए. मैंने डिक्टाफोन शुरू कर दिया और फिर जो बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ, वह तकरीबन पौन घंटा चला.

बहुत सारे सवाल-जवाब हुए. एक सवाल उनकी आने वाली फिल्म आस्था के बारे में भी था, जिसमें ओमपुरी, रेखा और नवीन निश्चल मुख्य भूमिकाओं में थे.

मैंने उनके एक पुराने इंटरव्यू में पढ़ा था कि इस फिल्म की कहानी उन्होंने अमिताभ बच्चन व रेखा को ध्यान में रखकर लिखी थी. इंटरव्यू में उन्होंने साफ कहा था कि यह फिल्म कोई और नहीं कर सकता. अगर अमिताभ इस फिल्म को करने के लिए राजी नहीं होते तो मैं यह फिल्म कभी नहीं बनाऊंगा.

मैंने उन्हें यह बात याद दिलाई तो वह बिदक गए. उन्होंने कहा कि उन्होंने ऐसा कभी नहीं कहा. वह इंटरव्यू मेरी इकट्ठा की गई रिफ्रेंस क्लिपिंग्स में सुरक्षित था और आज भी मेरे पास रखा हुआ है, इसलिए मुझे उनके इस जवाब पर हैरानी हुई. और जिस पत्रकार ने वह इंटरव्यू लिया था, वह एक सीनियर और संजीदा फिल्म जर्नलिस्ट थी, इसलिए यह मनगढ़ंत होगा, ऐसी कल्पना नहीं की जा सकती थी. पर मुझे उस समय यही ठीक लगा कि इस बात को तूल न दिया जाए और इंटरव्यू को सुचारू रूप से चलने दिया जाए. और मैंने ज्यादा बहस करने की बजाए, बात को वहीं खत्म कर दिया. पत्रकारिता के दौरान यह पहला मौका था, जब मैंने सबूत होते हुए भी बहस की बजाए समर्पण का रास्ता चुना था.

शायद इसी का नतीजा था कि यह इंटरव्यू बहुत अच्छा रहा और यह मेरे किए गए सबसे गंभीर साक्षात्कारों में से एक है.

आज सिनेमा के इस दिग्गज की पुण्यतिथि है, इस अवसर पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि के साथ यह साक्षात्कार यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ. अगर आपको गंभीर किस्म के सिनेमा में रुचि रही है तो यह आपको पसंद आएगा.

Interview





Tuesday, August 18, 2020

बातें-मुलाकातें: 11 ( नंदना सेन)

जो सिर्फ परिचित होते हैं, उनके बारे में लिखना आसान होता है, क्योंकि उनसे जुड़ी डिटेल्स बहुत ज्यादा नहीं होतीं. लेकिन, जो आपके दिल के करीब होते हैं उनके बारे में संस्मरण लिखना बड़ी टेढ़ी खीर होता है, क्योंकि आपके पास साझा करने के लिए इतने सारे पल होते हैं कि आप तय नहीं कर पाते कि क्या लिखें क्या न लिखें. ऊपर से सामने वाले के रूठ जाने का डर कि पता नहीं कौन सी बात का खुलासा उसे नाराज कर दे.

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फिर भी मैं कोशिश करता हूँ कि कम से कम शब्दों में ज्यादा से ज्यादा अनुभव बाँट सकूँ. नंदना सेन का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है. वह इंटरनेशनल लेवल की अभिनेत्री हैं, जिन्होंने गौतम घोष की गुड़िया, बोक्षू द मिथ, फाॅरेस्ट, परफेक्ट मिसमैच, आॅटोग्राफ, सिड्यूसिंग मारिया, रंगरसिया  जैसी कई ऐसी फिल्मों में काम किया है, जो देश-विदेश के अनेक फिल्म फेस्टिवलों में सराही गई हैं. हिंदी फिल्मों के दर्शक उन्हें ब्लैक, मैरीगोल्ड, माइ वाइफ्स मर्डरर, स्ट्रेंजर्स, टैंगो चार्ली, प्रिंस जैसी फिल्मों के माध्यम से याद कर सकते हैं, जिनमें नंदना ने नायिका/ सहनायिका की भूमिकाएं निभाई हैं. 

नंदना को मैंने पहली बार सीरी फोर्ट सभागार में देखा थी, जहाँ इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल चल रहा था और वह अपनी फिल्म बोक्षू द मिथ की स्क्रीनिंग के सिलसिले में दिल्ली आई थीं.  फिल्म बहुत अच्छी थी और नंदना का काम भी. उस दिन फेस्टिवल का आखिरी दिन था, नंदना की एक प्रेस काॅन्फ्रेंस थी. आॅरेंज येलो साड़ी में वह गजब ढा रही थी. मैं उस दिन उनसे बात नहीं कर पाया. फेस्टिवल का आॅफिशियल होस्ट था, होटल अशोका. अगले दिन मैंने वहाँ फोन किया और नंदना से बात कराने के लिए कहा. जब फोन नंदना से कनेक्ट हुआ तो मैंने अपना परिचय देते हुए इंटरव्यू के लिए समय देने के लिए कहा. नंदना ने कहा कि आप अपने कुछ प्रीवियस पब्लिश्ड इंटरव्यू लेते आइएगा. मैं उन दिनों दिल्ली में रहना छोड़ चुका था, बस काम के हिसाब से आता-जाता रहता था. इसलिए उनकी यह फरमाइश पूरा कर पाना संभव नहीं था. मैंने अपनी विवशता जताई तो उन्होंने कहा कि फिर तो मुश्किल होगा. पर मैंने किसी तरह उन्हें राजी कर लिया और उन्होंने बताया कि वह होटल से चेकआउट कर रही हैं. उन्होंने मुझे अगले दिन सुबह-सुबह मयूर विहार स्थित अपनी बहन के घर बुला लिया. 

सर्दियों के दिन थे, यह नंदना कल की प्रेस काॅन्फ्रेंस वाली ग्लैमरस नंदना से एक दम अलग थी. पर उनका नैसर्गिक सौंदर्य भी कुछ कम प्रभावशाली नहीं था. वह घर की कैज्युअल ड्रेस पहने थी और सर्दी से बचने के लिए एक शाॅल लपेट रखा था. मैंने डिक्टाफोन आॅन कर दिया और फिर सवाल-जवाब का जो सिलसिला शुरू हुआ वह तकरीबन एक घंटा चला. बीच-बीच में उन्हें हिंदी बोलने में दिक्कत महसूस होती तो वे अंग्रेजी में जवाब देने लगतीं, जिससे हमारी बातचीत पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था. इंटरव्यू के दौरान पूरे समय उनका पैट डाॅगी भौंक-भौंक कर अपनी मौजूदगी का  एहसास कराता रहा गोया कह रहा हो कि भाई मेरा भी इंटरव्यू रिकाॅर्ड करते रहो. इंटरव्यू के बाद वह किचन में गईं और ब्रेकफास्ट के लिए स्प्राउट्स ले आईं. मैंने उनसे कहा कि मैं अब तक पचास से ज्यादा इंटरव्यू कर चुका हूँ, लेकिन यह पहली बार था, जब किसी ने प्रूफ लाने को कहा. नंदना ने हैरानी से कहा कि आप इतने इंटरव्यू कर चुके हैं. कितनी उम्र है आपकी? मैंने बताया तो वह बोलीं कि देखकर नहीं लगता. ऐसा लगता है कि जैसे काॅलेज से पासआउट करके आए हैं.

मैंने उन्हें टीज करते हुए पूछा  कि 'इज दिस ए कम्प्लीमेंट आॅर कम्प्लेंट?'

'दिस इज ए फैक्ट !' पहले मेरे सवाल से वह चौंकी, लेकिन जिस बिजली की तेजी से उन्होंने एक सेकेंड से भी कम में इतना शानदार जवाब भी सोच लिया, उसने मुझे उनकी हाजिर जवाबी का कायल कर दिया.

बातचीत के दौरान मैंने उन्हें अपनी लिखी, उनकी फिल्म सेड्यूसिंग मारिया की समीक्षा दिखाई. वह बोलीं कि क्या मैं इसे अपने पास रख सकती हूँ. मैंने कहा, बिल्कुल...यह मैं आप ही के लिए लाया था. उनके लिए मैं एक और चीज लेकर गया था, वह था जेड स्टोन का बना एक छोटा सा जालीदार हाथी, जिसके भीतर एक और छोटा हाथी बंद था.

यह  लीजिए, एक छोटा सा गिफ्ट. मैंने उन्हें वह हाथी देते हुए कहा. तो नंदना ने बताया कि उन्हें ऐसे आइटम बहुत अच्छे लगते हैं, जिनमें इस तरह एक के भीतर दूसरा आइटम होता है और वह इसे हमेशा अपने पास रखेंगी. 

मैंने उनसे पूछा कि उनका बर्थडे कब आता है. उन्होंने कहा कि 19 अगस्त को. मैंने कहा कि और एक दिन बाद होता तो राजीव गाँधी जी का और आपका जन्मदिन एक ही होता. वह बोलीं कि 19 अगस्त को बिल क्लिंटन का भी जन्मदिन है.

मैंने कहा कि ठीक है, क्लिंटन को तो मैं विश कर नहीं सकता, पर अगर आप अपना फोन नंबर देंगी तो आपको जरूर विश किया करूंगा. उन्होंने मेरे से डायरी ली और अपना नंबर, अमेरिका का पता और ई-मेल आईडी सब लिख दिया. कुछ देर और इधर-उधर की बातें हुईं और मैंने उनसे विदा ली. 

यह हमारी पहली और अब तक की आखिरी मुलाकात थी. लेकिन, इसके बाद से हमारी ऐसी दोस्ती शुरू हुई, जो आज भी बरकरार है. कई बार गिले-शिकवे और मान-मनव्वल के वाकये भी हुए हैं, सुख-दुःख की बातें एक-दूसरे के साथ शेयर की हैं. सच तो यह है कि यह नंदना की विनम्रता और अपनापन ही है, जो हमारी दोस्ती बदस्तूर जारी है.

बीतें सालों से उनसे नियमित रूप से मैसेज और ई-मेल के जरिए बात होती है. वह राइटिंग, फेमिली, सोशल काॅजेज में बिजी होने के बावजूद वक्त निकालकर हमेशा जवाब देती हैं. इतने सालों में हमारी मित्रता के अनुभव इतने ज्यादा हैं कि यहाँ साझा कर पाना ना तो मुमकिन है और न ही मुनासिब. लेकिन एक बात जरूर बताना चाहूँगा कि नंदना को मेरी कविताएं बहुत अच्छी लगती हैं.

एक बार उनकी तारीफ से उत्साहित होकर मैंने उनसे कहा कि अगर आपको मेरी कविताएं इतनी ही अच्छी लगती है तो मैं आपके हर बर्थडे पर एक कविता गिफ्ट कर दिया करूंगा तो उनका जवाब था कि यह अच्छी बात है, लेकिन इसके लिए बर्थडे तक इंतजार कराना जरूरी  है क्या? उनके इस जवाब ने मुझे लाजवाब कर दिया...

आज नंदना का बर्थडे है. उन्हें दिली मुबारकबाद और एक स्वस्थ, सक्रिय, खुशियों और उपलब्धियों भरे जीवन के लिए हार्दिक  शुभकामनाएं.


बातें- मुलाकातें: 10 (गुलजार)

हर व्यक्ति का मिजाज अलग होता है, सोच अलग होती है, प्राथमिकताएं अलग होती हैं. अगर हम किसी व्यक्ति को अपने अनुरूप नहीं पाते तो यह उसकी शख्सियत का नहीं, बल्कि हमारी तंगनजरी का कसूर होता है.

आज मैं बात कर रहा हूँ, गुलजार साहब की. वह एक जाने-माने गीतकार, लेखक, कवि, निर्देशक हैं और शब्दों के साथ प्रयोग करने में उन्होंने जो महारत हासिल की है, वह अपने आप में बेजोड़ है. मैं बचपन से उनकी कविताओं का जबर्दस्त प्रशंसक रहा हूँ, और कविता लिखते हुए शब्दों को पिघलाने की कोशिश करते हुए उन्हें ही याद करता हूँ और पाता हूँ कि उनकी इस विलक्षण प्रतिभा का एक प्रतिशत भी मैं अपनी कविता में डाल पाता हूँ तो खुद ही अपनी कविता का सैदाई बन जाता हूँ. 

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लेकिन, उनसे हुई दो-तीन मुलाकातों का मुझ पर ऐसा असर पड़ा कि कभी भी मैं एक अच्छे इंसान के रूप में उनका आदर नहीं कर पाया. उनके मगरूर व्यवहार की वजह से मैं उनसे एक लंबे समय तक खफा रहा हूँ. उनकी आलोचना सुनकर खुश हुआ हूँ, उनकी शिकस्त से सुकून महसूस किया है. यहाँ तक कि उनके नाम के साथ साहब सफिक्स के इस्तेमाल में भी मेरी जुबान और कलम दोनों को बड़ा संकोच होता रहा है.

मेरी उनसे मुलाकात साहित्य अकादमी के एक फेस्टिवल में हुई थी, जिसका विषय साहित्य और सिनेमा का संबंध था. तीन दिन चलने वाले इस फेस्टिवल के पहले ही दिन मेरी नजर गुलजार साहब पर पड़ी. मैं उनके पास जा पहुँचा और इंटरव्यू के बारे में बताते हुए उनसे टाइम माँगा. उन्होंने कहा कि कितना वक्त लगेगा. मैंने कहा कि पाँच से दस मिनट. इस पर उन्होंने बहुत कुटिलता से मुस्कराते हुए कहा कि पाँच मिनट तो बहुत ज्यादा हो जाएगा, और फिर किसी से बातों में मशगूल हो गए. इसके बाद इस समारोह के दौरान मेरा कई बार उनसे आमना-सामना हुआ और हर बार मैंने उन्हें किसी न किसी से गप लड़ाते हुए देखा. मैं यह नहीं समझ पाता था कि मुझे इंटरव्यू के लिए पाँच मिनट देना उन्हें बहुत ज्यादा लग रहा था. मेरा मन खट्टा हो गया, और इस बात से और ज्यादा कि मेरा सपना काॅलम के लिए उनका जो इंटरव्यू मैं करना चाहता था, वही इंटरव्यू उन्होंने किसी और को दिया, जो कि नभाटा में छपा भी. हालांकि यह मेरी गलती थी, उन्हें पूरा हक था इंकार करने का और यह तय करने का कि वे किसे समय दें, किसे नहीं. लेकिन, उस समय मैं इसे अपनी बेइज्जती मानकर उनसे रुष्ट हो गया और कई साल तक इस बात को दिल में पाले रहा. 

इसके कुछ दिन बाद एक और ऐसा वाकया हुआ, जिसने मुझे उनकी बेरुखी और मगरूरियत को लेकर अपनी राय पुख्ता करने की नई वजह दे दी. एक दिन सुबह-सुबह उनकी किताब पुखराज या शायद मेरा कुछ सामान की रिलीज थी. मैं इस कार्यक्रम में पहुँच गया. वहाँ गुलजार साहब भी थे. उन्होंने कुछ कविताओं का पाठ किया. उनकी धीर-गंभीर आवाज में कविताएं सुनना वाकई एक अविस्मरणीय अनुभव था, लेकिन मैं तो नाराज था तो इस बात को सराह कैसे सकता था. रही-सही कसर उनकी एक टिप्पणी ने पूरी कर दी. हुआ ये कि एक कविता सुनकर एक श्रोता ने पूछा कि क्या यह आपने राखी जी के लिए लिखी है. इस पर गुलजार साहब ऐसे बिगड़े, जैसे कि उसने उन्हें गाली दे दी हो. उन्होंने उसे कठोर स्वर में जो कहा, वह शब्दशः तो मुझे याद नहीं, लेकिन उसका मतलब यही था कि वह सिर्फ कविता सुने, बाल की खाल न निकाले. 

इस बात को सालों बीत गए, गुलजार साहब के बारे में मेरी राय जस का तस रही. एक दिन मैंने उनका इंटरव्यू पढ़ा, जिसमें उन्होंने कहा कि उनकी बेटी मेघना एक प्रोड्यूसर से मिलने गई तो उसने चार घंटे उससे रिसेप्शन पर इंतजार कराया. गुलजार साहब का यह भी कहना था कि जब मेरे जैसे व्यक्ति की बेटी के साथ यह व्यवहार होता है, तो नए लोगों के साथ किस तरह का व्यवहार होता होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है. मुझे इस वाकये को पढ़कर एक पैशाचिक किस्म की संतुष्टि महसूस हुई कि अब ऊंट पहाड़ के नीचे आया. जब खुद पर पड़ी तो नए लोगों की भावनाओं का ख्याल आया. खुद के पाँच मिनट भी बहुत कीमती लग रहे थे.

आज जब सोच में परिपक्वता और खुलापन आया है तो अपने इस दुराग्रह को लेकर शर्मिंदगी सी महसूस होती है. 

मेरी उनके बारे में राय चाहे जो रही हो, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि वे आज भी हिंदी सिनेमा की सबसे विलक्षण प्रतिभाओं में शामिल हैं, बल्कि ऐसी पूंजी हैं, जिस पर पूरी इंडस्ट्री को फख्र करना चाहिए.

आज उनका जन्मदिन है, दिली बधाई के साथ मैं कामना करता हूँ कि उनकी जादुई कलम हमेशा हमें यूंही शब्दों के तिलिस्मी संसार की सैर कराती रहे.


Monday, August 17, 2020

बातें- मुलाकातें: 9 (दलेर मेहंदी)

मुलाकातें, जिंदगी का एक अभिन्न अंग होती हैं. हर मुलाकात कोई न कोई याद देकर जाती है. कुछ यादें मीठी होती हैं, कुछ फीकी, कुछ कड़वी तो कुछ उबाऊ... आज जिस मुलाकात की बात करने जा रहा हूँ, यह आखिरी किस्म की थी.



दलेर मेहंदी... नाम तो सुना ही होगा. हो सकता है आज मीका, बादशाह, अरजित जैसे गायकों की लोकप्रियता के बीच इनका नाम याद करने में आपको थोड़ा दिमाग पर जोर डालना पड़े, लेकिन अगर आप बोलो तारा रा रा, हो जाएगी बल्ले-बल्ले दार जी रब-रब दार जी रे जैसे सुपरहिट साॅन्ग्स को याद करेंगे तो आपको यह भी याद आ जाएगा कि पंजाबी पाॅप को इंटरनेशनल लेवल पर ले जाने वाले सिंगर्स में दलेर का नाम टाॅप के तीन-चार में तो लिया ही जा सकता है. वह तो बुरा हो कबूतरबाजी का, जिसमें उनका नाम उछला तो उनके हरे-भरे कैरियर पर जैसे ग्रहण सा लग गया. वर्ना तो वह ऐसा वक्त था, जब गायकी के क्षेत्र में उनकी तूती बोलती थी. वह भी ऐसे दौर में, जब बादशाह की तरह पेड लाइक्स हासिल करने की सुविधा नहीं थी. उसके बावजूद दिलेर दिलों पर राज करते थे. अब भी करते हैं, लेकिन संगीत से ज्यादा अपने ग्रीन ड्राइव, फूड फाॅर लाइफ जैसे सामाजिक कामों के जरिए...
बहरहाल, मुलाकात की बात चल रही थी. दलेर से भी हमारी मुलाकात उनके महरौली, दिल्ली स्थित कार्यालय में होना तय हुआ. उस समय किसी का इंटरव्यू करने जाने से पहले, उसके बारे में होमवर्क करने का रिवाज था, जिसे हम भी फाॅलो करते थे. दलेर के बारे में पता चला कि वह बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं, तो तय हुआ कि सवालों की भाषा और प्रकृति सामान्य ही रखी जाए. एक से भले दो में यकीन करते हुए मैं अपने साथ, अपने एक मित्र को भी ले गया. जिन्हें गूढ़ विषयों पर ज्ञान हासिल करने और मौका-बेमौका उस ज्ञान का वमन करने में बहुत मजा आता था. मैंने उन्हें आगाह कर दिया था कि यहाँ इस तरह की बातें मत करना.
सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू हुआ. दलेर जी मेरे सवालों के जवाब देते रहे. लेकिन मैंने हर जवाब के साथ यह महसूस किया कि उन्हें उत्तर देने के लिए काफी सोचना पड़ रहा है. दरअसल उन दिनों नवभारत टाइम्स में चल रहा मेरा सपना काॅलम ही ऐसा था कि इसमें पीआर एजेंसियों के तैयार किए रेडीमेड जवाबों से काम नहीं चल सकता था.
उनकी असहजता के महसूस करते हुए मैंने अपने सवालों को सरलतम बनाए रखा और उन्होंने मुश्किल से ही सही, पर उनके अच्छे दिलचस्प जवाब भी दिए. लेकिन, मेरे ज्ञानी मित्र बार-बार उनसे दार्शनिक किस्म के सवाल पूछ-पूछ कर उन्हें और भी असहज बना देते थे. मेरे बार-बार इशारा करने और फुसफुसाने का उन पर कोई असर नहीं हो रहा था. आखिर में एक सवाल ऐसा आया, जिससे उन्होंने काफी हलका महसूस किया और बेहद खुल गए. यह सवाल था कि आपकी दिली ख्वाहिश किया है, उन्होंने कहा कि वह एक संगीत नगरी बसाने का सपना देखते हैं, जिसमें चप्पे-चप्पे पर गीत और संगीत बिखरा हो. लोग जिधर से गुजरें, उनके कानों में संगीत की मिठास घुल जाए.
आज उनका जन्मदिन है, हम यही कामना करते हैं कि वह स्वस्थ और सक्रिय रहें और संगीत नगरी बसाने का उनका सपना जल्दी पूरा हो, ताकि हम भी उसकी सैर करने जा सकें.

interview

Sunday, August 16, 2020

बातें-मुलाकातें: 8 ( क्रिकेटर चेतन चैहान)


अभी कुछ देर पहले चेतन जी के निधन का दुःखद समाचार मिला, और उनसे हुई मुलाकातों की यादें ताजा हो आईं.

पत्रकारिता में कई बार हमें बहुत मुगालते हो जाते हैं. अगर कुछ लोग हमें सम्मान और महत्व देते हैं तो हम इसे उनकी भलमनसाहत से ज्यादा अपनी खूबी मान बैठते हैं और इस चक्कर में बहुत से लोगों को गलत समझ बैठते हैं.

चित्र में ये शामिल हो सकता है: Raja Mane, बाहर

बात उन दिनों की है, जब मैं दैनिक भास्कर के पत्रिका विभाग में था. हम लोग साप्ताहिक परिशिष्ट रसरंग में एक काॅलम दिया करते थे, इक्के पर इक्का. इसमें किसी भी क्षेत्र के एक व्यक्ति से उसी क्षेत्र के दूसरे व्यक्ति पर, जो कि उसका मित्र, समकक्ष, सीनियर या प्रतिद्वंद्वी कोई भी हो सकता था, एक आलेख लिखने के लिए बोलते थे. अब सब लोग लेखक तो होते नहीं, कुछ से मिलकर हम उनसे सवाल करते थे और उनके जवाबों के आधार पर उनके नाम से लेख लिख दिया करते थे.
इसी क्रम में मैंने सुझाव दिया कि एक लीजेंड क्रिकेटर चेतन चैहान से दूसरे लीजेंड क्रिकेटर कपिल देव के बारे में लिखवाया जाए. उन दिनों वे हमारे संसदीय क्षेत्र अमरोहा से भाजपा के साँसद थे. इस सुझाव के पीछे मेरा यह भी विचार था कि इंटरव्यू के बहाने चेतन जी से परिचय हो जाएगा.
बहरहाल, चेतन जी को फोन कर मैंने उन्हें इस काॅलम के बारे में बताया और उनसे समय माँगा. उन्होंने अगले दिन दिल्ली के शकरपुर इलाके में स्थित उनके आॅफिस में आने के लिए कहा. हम उन दिनों लक्ष्मीनगर में रहते थे, जो शकरपुर के एकदम सामने ही पड़ता है, सो मैं अपने रूममेट और मित्र के साथ तयशुदा वक्त पर उनके आॅफिस पहुँच गया. वह हमें सीढ़ियों पर मिल गए. मैंने अपना परिचय दिया तो वह बोले कि अच्छा हुआ, आप आ गए. हमारे एक परिचित की डेथ हो गई है और अभी मैं निगमबोध घाट जा रहा हूँ, तो आज तो बात नहीं हो पाएगी. आप कल इसी वक्त आ जाइए.
अगले दिन हम दोनों एक बार फिर उनके आॅफिस में थे. मैंने उन्हें बताया कि हम आपके संसदीय क्षेत्र से ही हैं. लेकिन इस बात के प्रति उनकी उदासीनता देखकर बहुत निराशा हुई. उन्होंने कहा कि बताइए, किस बारे में बात करनी है. मैंने कहा कि आपका कपिल देव जी के साथ एक लंबा सफर रहा है. उनके बारे में ही बताइए.
इनके लिए कुछ ले आओ, चेतन जी ने अपने कर्मचारी को आदेश दिया और वह चाय के दो कप और एक प्लेट में बिस्किट रख गया. इसके बाद मैं सवाल पूछता गया, वे बोलते गए और मेरा मित्र नोट्स बनाता गया. चाय और बिस्कुट वैसे ही रखे रहे. न उन्होंने लेने के लिए कहा और न हमने उन्हें हाथ लगाया.
करीब आधा घंटे की बातचीत के बाद इंटरव्यू खत्म हुआ. हम उठ खड़े हुए.
अरे आपने तो कुछ लिया ही नहीं, शायद उनका ध्यान पहली बार चाय की तरफ गया.
‘आपने कहा भी तो नहीं’ मैं मन ही मन बोला, लेकिन उनसे यही कहा कि बातचीत के बीच में ध्यान हीं नहीं गया कि चाय रखी है.
वह हमें सीढ़ियों तक छोड़ने आए और फिर एक और धमाका किया. बोले कि इसक अच्छा पेमेंट दिलवाना, कभी दस-पाँच हजार का पेमेंट लगवा दो.
इस काॅलम के लिए इस तरह की यह पहली माँग थी तो मैं अचंभित रह गया. इसके लिए अभी तक किसी को भी भुगतान नहीं किया गया था. लेखकों को एक आर्टिकल के चार-पाँच सौ रुपए से ज्यादा नहीं मिला करते थे. खुद मेरी पूरे महीने की सेलरी ही छह हजार रुपए थी, इसलिए सिर्फ बातचीत के लिए यह मुझे एक बहुत बड़ी रकम लगी. फिर भी मैंने कहा कि मैं अपने एडिटर से बात करूंगा कि जो बेस्ट पेमेंट हो सकता है, वह लगवा दें.
इस दोनों मुलाकातों को लेकर मैं एक लंबे समय तक क्षोभ से भरा रहा और उन्हें गलत समझता रहा. कई लोकल कार्यक्रमों में उनसे आमना-सामना हुआ, लेकिन पिछली बेरुखी को याद करके कभी उनसे बात करने में हमेशा एक संकोच सा ही महसूस होता रहा.
पर यह भी सच है कि हमारे इलाके में उनकी जो लोकप्रियता थी, और जिस तरह से वह लोगों के सुख-दुःख में भागीदारी किया करते थे, उसे देखकर यही लगता था कि वह बेहद मिलनसार किस्म के व्यक्ति हैं. वैसे भी जिस से भी चेतन जी की चर्चा होती, वह उनकी तारीफ ही करता.
फिर जैसे-जैसे जीवन और सोच में परिपक्वता और व्यावहारिकता बढ़ी तो यह एहसास हुआ कि मैंने उन्हें लेकर जबर्दस्ती के पूर्वाग्रह पाल रखे हैं. और फिर मैंने पाया कि यह व्यक्ति बेहद स्पष्ट है और राजनेताओं वाली लागलपेट, छद्म-शिष्टता और छलकपट से दूर, मूलतः एक सरल स्वभाव वाला खिलाड़ी है. इस प्रकार उनके बारे में मेरी राय सकारात्मक होने लगी तो फिर मैंने उन्हें पसंद करना शुरू कर दिया.
विश्वास करना कठिन है कि आज वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन दुर्भाग्य से यह एक कठोर सत्य है, जिसे स्वीकार करना होगा. आइए उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें और उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करें.

Saturday, August 8, 2020

बातें—मुलाकातें : 7 (गीतकार संदीप नाथ )

किसी से रूबरू हुए बिना भी अच्छी दोस्ती हो सकती है. हिंदी फिल्मों के जाने—माने गीतकार संदीप नाथ इसकी एक बेहतरीन मिसाल हैं, जिनसे मेरी मित्रता करीब ​पंद्रह साल पुरानी है. हमारे एक साझा मित्र हैं, कुमार अतुल जो कि अमर उजाला के देहरादून संस्करण में समाचार संपादक हैं. उन्होंने एक बार संदीप नाथ के बारे में बताया और कहा कि तुम्हें संदीप से बात करनी चाहिए, क्योंकि तुम्हारे नाम ही नहीं और भी कई चीजें आपस में मिलती हैं.

ये चीजें थीं, हमारे मूल निवास, वे बिजनौर में पले—बढ़े और पढ़े हैं और मैं बिजनौर से करीब 50 किलोमीटर दूर के कस्बे मंडी धनौरा में. वे भी स्थापित कवि हैं और मैं शौकिया, वे पत्रकार रह चुके हैं, मैं पत्रकारिता कर रहा हूँ... वगैरह—वगैरह. जाहिर है कि मन में उत्सुकता होनी ही थी.
बिना झिझक के अतुल भाई के दिए नंबर पर कॉल लगा दिया और पहली बार में जितना गर्मजोशी भरा रिस्पॉन्स मिला, उसने हमारी मित्रता के दरवाजे खोल दिए. इसके बार के डेढ़ दशकों में हमारी सैकड़ों बार फोन पर बातें हुईं और वह भी काफी—काफी देर. लेकिन, बार—बार मुलाकातों का योग बनते—बनते रह जाता. और यह योग बिना करीब एक साल पहले. जब संदीप नागपुर महानगर निगम के एक कार्यक्रम में बतौर ​विशिष्ट अतिथि नागपुर आए थे.

चित्र में ये शामिल हो सकता है: Sandeep Nath, बाहर
आगे बढ़ने से पहले कुछ बातें संदीप नाथ के बारे में... ​कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ (पेज 3), सिकंदर ओ सिकंदर ( फैशन), यूं शबनमी पहले नहीं थी चाँदनी (सांवरिया) जैसे मधुर गीतों और आशिकी 2 के 'सुन रहा है ना तू...' जैसे सुपर—डुपर हिट गीत के रचनाकार संदीप की कविता और गजलों के आधा दर्जन से ज्यादा संकलन प्रकाशित हो चुके हैं. उन्होंने डीएनए में गाँधी नाम की एक सोशल सैटायर मूवी का निर्माण—निर्देशन भी किया है और हाल ही में एक गायक के तौर पर अपनी नई पारी का आगाज किया है सूफी गाने रंगरेज से, जिसका वीडियो यूट्यूब पर धूम मचा रहा है और इसे दो लाख बारह हजार से ज्यादा बार देखा जा चुका है,
(आप भी https://www.youtube.com/watch?v=BNOnvhQHvjs पर विजिट करके देख सकते हैं, लाइक कीजिए और शेयर कीजिए. ).
अब मुलाकात पर लौटते हैं. संदीप नाथ नागपुर में हैं, यह बात मुझे अचानक ही तब पता चली, जब मैं यह कार्यक्रम कवर करने गया और मंच पर अतिथियों के परिचय में उनका नाम भी पुकारा गया. सुनकर बहुत गुस्सा आया कि भाई नागपुर में हैं और मुझे बताना भी जरूरी नहीं समझा. सोचा कि अब मैं भी बात नहीं करूंगा. लेकिन फिर ख्याल आया कि मन में गुस्सा रखने की बजाए, फोन करके शिकायत करना ज्यादा बेहतर है.
कार्यक्रम खत्म होने के बाद उन्हें फोन लगाया और जितना गिला कर सकता था, जम के किया. इस पर संदीप ने इतनी बार अफसोस प्रकट किया कि मुझे अपने गुस्से पर गुस्सा आने लगा और एक सबक भी सीखने को मिला कि हमें कभी भी ईगो को रिश्तों के आड़े नहीं आने देना चाहिए. अगर मैं इस बात को दिल से लगाता तो खामख्वाह एक अच्छा—भला आत्मीय रिश्ता औपचारिक रिश्ते में बदल जाता.
बहरहाल, मिलने के लिए शाम का वक्त तय हुआ और मैं अपने एक और हमनाम मित्र संदीप अग्रवाल जी, जो कि एक प्रतिष्ठित व्यवसायी, जननेता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, के साथ संदीप नाथ से मिलने जा पहुँचा. संदीप अभी रास्ते में ही थे. हम होटल की लॉबी में इंतजार करने लगे. कुछ देर बाद उनका आगमन हुआ. साथ में एक व्यक्ति और था. लिफ्ट में जब हम उनके साथ ऊपर रूम में जा रहे थे तो मैंने मजाक किया कि आज पहली बार मैं तीन संदीप को एक साथ देख रहा हूँ तो उन्होंने बताया कि उनके साथ वाले सज्जन का नाम भी संदीप ही है.
वह चौथे संदीप थे, मराठी अभिनेता संदीप कुलकर्णी. (डोम्बिली फास्ट और श्वास फेम). इस ​इत्तेफाक से हम सब बहुत आनंदित हुए. इसके बाद संदीप के रूम में अगले दो घंटों में गिले—शिकवों और मनव्वलों के एक और दौर के बाद अलग—अलग मुद्दों पर ढेर सारी बातें हुईं, जिनका यहाँ जिक्र करना संभव नहीं है. लेकिन जिस बात का जिक्र सबसे ज्यादा जरूरी है वह यह है कि आज संदीप नाथ का जन्मदिन है. इस मौके पर उन्हें ढेर सारी बधाई और एक उज्जवल भविष्य व सफलता की हार्दिक शुभकामनाएं.

Wednesday, August 5, 2020

बातें—मुलाकातें : 6 (श्रीमती सुषमा स्वराज)

एक साल पहले, आज ही के अभाग्यशाली दिन काल के क्रूर हाथों ने देश से एक ऐसी शख्सियत को छीन लिया था, जो एक राजनेता तो थी ही, लेकिन उससे बढ़कर एक जननेता थी. जी हाँ, हम बात कर रहे हैं दिवंगत भाजपा नेत्री श्रीमती सुषमा स्वराज की, जिन्होंने अपने लगभग अर्द्धशती लंबे राजनीतिक कैरियर में अपने जुझारूपन, दयालु स्वभाव और मिलनसारिता के बल पर सबके दिलों पर राज किया. कुछ साल पहले, एक साक्षात्कार के सिलसिले में उनसे मिलना तय हुआ. उनकी मिलनसारिता और गर्मजोशी का अंदाजा तो तभी से लगना शुरू हो गया था, जब मैंने पहली बार मुलाकात का वक्त लेने के लिए उन्हें कॉल किया था.

मैं संदीप सौरभ बोल रहा हूँ...
जी संदीप जी बोलिए...
जितनी हस्तियों का मैंने इंटरव्यू किया था, उनमें वह पहली थीं, जिन्होंने इतनी विनम्रता और सम्मान के साथ मेरा नाम लिया था, तो मन को बहुत अच्छा लगा और थोड़ा अजीब भी. खैर, परिचय देने और इंटरव्यू का टॉपिक देने के बाद तुरंत वक्त मिला और मुलाकात हुई और अगले दिन मैं उनके लोधी स्टेट वाले घर पर पहुँच गया. वह तब तक एक बहुत बड़ी हस्ती बन चुकी थीं, लेकिन उनके व्यवहार से इस बड़प्पन का कहीं भी आभास नहीं मिलता था. टीवी पर उन्हें कई बार देखा था, लेकिन वास्तविक जीवन में वह स्क्रीन से भी ज्यादा ओजस्वी और गरिमामयी दिखती थीं. वह बहुत सहज भाव से मेरे सामने ही बैठ गईं और बोली कि बताइए संदीप जी, आप क्या जानना चाहते हैं. तब तक चाय के कप और पारले—जी के बिस्कुट आ चुके थे. वह बोलीं, पहले चाय पी लीजिए. फिर बात करते हैं. मैंने चाय पीते—पीते उनसे कई सवाल पूछ लिए. एक सवाल था कि आप नारी मुक्ति के बारे में क्या सोचती हैं. इस पर उनके लहजे में ऐसा जोश आया कि मैं सहम सा गया कि कहीं मैंने कोई गलती तो नहीं कर दी. उनका कहना था कि आखिर नारी को मुक्ति किससे चाहिए? अपने परिवार से, अपने बच्चों से? मैं नारी मुक्ति में नहीं, नारी शक्ति में विश्वास करती हूँ... इंटरव्यू के छपने के बाद उनका यह वाक्य कोटेशन के रूप में कई जगह छपा. बाकी इंटरव्यू आप स्वयं पढ़ सकते हैं.
आज उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि. वह एक ऐसी राजनेता थीं, जिनकी कमी हमेशा खलती रहने वाली है.

interview