भले ही अंग्रेजों ने करीब दो सौ साल हमें गुलाम बनाकर रखा हो, लेकिन आजादी मिलने के बाद देश में जो गिनती के अंग्रेज बचे हैं, उन्हें लेकर हम बड़ी करुणा से भरे रहते हैं. पता नहीं यह उनके गोरे रंग का आकर्षण होता है या हिंदुस्तान में उनकी मौजूदा स्थिति, अक्सर हम अंग्रेजों को देखकर उनके बारे में एक अजीब किस्म की सहानुभूति ही महसूस करते हैं, गोया जंगल का राजा शेर किसी पिंजरे में कैद हो.
एक पत्रकार के रूप में मेरा वास्ता दो अंग्रेजों से पड़ा है और दोनों के ही तजुर्बे बड़े मुख्तलिफ किस्म के रहे हैं. लेकिन आज मैं एक ही अंग्रेज की बात करूंगा. यह हैं बैरी जाॅन...
बैरी जाॅन भारतीय रंगमंच में एक दबदबे वाली जगह रखते हैं और शाहरुख जैसे स्टार और मनोज वाजपेयी जैसे कलाकार, उनके सेलिब्रिटी चेलों में शुमार हैं. उनसे मेरी पहली मुलाकात एनएसडी की एक वर्कशाॅप के दौरान हुई थी, लेकिन तब कोई बात नहीं हो पाई थी. लेकिन असली मुठभेड़ हुई इसके कुछ साल बाद जब मैंने दैनिक भास्कर का फीचर डिपार्टमेंट जाॅइन कर लिया था.
हम चर्चित लोगों के संस्मरण लिया करते थे. मैंने जाॅन का नाम सुझाया और संपादक की मंजूरी मिलने के बाद उनके आॅफिस में फोन लगा दिया. तब तक वे इमागो नाम का एक एक्टिंग स्कूल खोल चुके थे.
उनके सहायक ने फोन उठाया और मेरा संदेश जाॅन तक पहुँचाया. फोन पर बातचीत हुई. तो पता चला कि जाॅन को हिंदी समझने में तकलीफ होती थी और मुझे अंग्रेजी में. लिहाजा तय हुआ कि मैं अपने सवाल ई-मेल कर दूँगा, जिन्हें पढ़कर जाॅन मेल से ही अपने जवाब भेज देंगे.
यहाँ तक तो सब ठीक था. गड़बड़ तब हुई, जब हमारे आॅफिस का इंटरनेट ठप्प पड़ गया. अब जाॅन के जवाब लेने के लिए साइबर कैफे जाना पड़ता, इसलिए मैंने सोचा कि एक बार फोन करके उनके सहायक से पूछ लेता हूँ कि जवाब मेल किए हैं या नहीं, जिससे समय और पैसा खराब न हो. मैंने फोन लगाया और उससे पूछा कि जवाब मेल किए हैं या नहीं... उसने पता नहीं क्या समझा, सीधे जाॅन से फोन कनेक्ट कर दिया. जाॅन ने मेरा सवाल सुनते ही मुझे लताड़ते हुए अंग्रेजी में लेक्चर पेलना शुरू कर दिया, अच्छी बात यह थी कि मुझे बोली हुई अंग्रेजी, खासकर अंग्रेजों की बोली हुई, ज्यादा नहीं समझती थी, इसलिए न ज्यादा बेइज्जती महसूस हुई और न ही बहुत गुस्सा आया. लेकिन, इतना तो समझ में आ ही गया था कि जाॅन मुझसे कह रहे थे कि यह मेरी रिस्पाॅन्सिबिलिटी थी कि मैं फोन करने के बजाए पहले अपना मेल चेक करता. मुझे उम्मीद न थी कि उस मासूम से दिखने वाले शख्स के भीतर इतना ज्यादा ईगो भरा होगा.
खैर, इंटरव्यू तो मैंने अनुवाद करके पब्लिश करवा दिया था, लेकिन जाॅन के इस व्यवहार की वजह से मेरा मन लंबे समय तक उनके प्रति नाराजगी से भरा रहा. अब कभी-कभार जब जाॅन किसी फिल्म में नजर आते हैं, तो मुझे बरबस ही वो वाकया याद आ जाता है, जिसके बाद मैंने जाॅन को जानवर कहना शुरू कर दिया था.
interview

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