Monday, August 17, 2020

बातें- मुलाकातें: 9 (दलेर मेहंदी)

मुलाकातें, जिंदगी का एक अभिन्न अंग होती हैं. हर मुलाकात कोई न कोई याद देकर जाती है. कुछ यादें मीठी होती हैं, कुछ फीकी, कुछ कड़वी तो कुछ उबाऊ... आज जिस मुलाकात की बात करने जा रहा हूँ, यह आखिरी किस्म की थी.



दलेर मेहंदी... नाम तो सुना ही होगा. हो सकता है आज मीका, बादशाह, अरजित जैसे गायकों की लोकप्रियता के बीच इनका नाम याद करने में आपको थोड़ा दिमाग पर जोर डालना पड़े, लेकिन अगर आप बोलो तारा रा रा, हो जाएगी बल्ले-बल्ले दार जी रब-रब दार जी रे जैसे सुपरहिट साॅन्ग्स को याद करेंगे तो आपको यह भी याद आ जाएगा कि पंजाबी पाॅप को इंटरनेशनल लेवल पर ले जाने वाले सिंगर्स में दलेर का नाम टाॅप के तीन-चार में तो लिया ही जा सकता है. वह तो बुरा हो कबूतरबाजी का, जिसमें उनका नाम उछला तो उनके हरे-भरे कैरियर पर जैसे ग्रहण सा लग गया. वर्ना तो वह ऐसा वक्त था, जब गायकी के क्षेत्र में उनकी तूती बोलती थी. वह भी ऐसे दौर में, जब बादशाह की तरह पेड लाइक्स हासिल करने की सुविधा नहीं थी. उसके बावजूद दिलेर दिलों पर राज करते थे. अब भी करते हैं, लेकिन संगीत से ज्यादा अपने ग्रीन ड्राइव, फूड फाॅर लाइफ जैसे सामाजिक कामों के जरिए...
बहरहाल, मुलाकात की बात चल रही थी. दलेर से भी हमारी मुलाकात उनके महरौली, दिल्ली स्थित कार्यालय में होना तय हुआ. उस समय किसी का इंटरव्यू करने जाने से पहले, उसके बारे में होमवर्क करने का रिवाज था, जिसे हम भी फाॅलो करते थे. दलेर के बारे में पता चला कि वह बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं, तो तय हुआ कि सवालों की भाषा और प्रकृति सामान्य ही रखी जाए. एक से भले दो में यकीन करते हुए मैं अपने साथ, अपने एक मित्र को भी ले गया. जिन्हें गूढ़ विषयों पर ज्ञान हासिल करने और मौका-बेमौका उस ज्ञान का वमन करने में बहुत मजा आता था. मैंने उन्हें आगाह कर दिया था कि यहाँ इस तरह की बातें मत करना.
सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू हुआ. दलेर जी मेरे सवालों के जवाब देते रहे. लेकिन मैंने हर जवाब के साथ यह महसूस किया कि उन्हें उत्तर देने के लिए काफी सोचना पड़ रहा है. दरअसल उन दिनों नवभारत टाइम्स में चल रहा मेरा सपना काॅलम ही ऐसा था कि इसमें पीआर एजेंसियों के तैयार किए रेडीमेड जवाबों से काम नहीं चल सकता था.
उनकी असहजता के महसूस करते हुए मैंने अपने सवालों को सरलतम बनाए रखा और उन्होंने मुश्किल से ही सही, पर उनके अच्छे दिलचस्प जवाब भी दिए. लेकिन, मेरे ज्ञानी मित्र बार-बार उनसे दार्शनिक किस्म के सवाल पूछ-पूछ कर उन्हें और भी असहज बना देते थे. मेरे बार-बार इशारा करने और फुसफुसाने का उन पर कोई असर नहीं हो रहा था. आखिर में एक सवाल ऐसा आया, जिससे उन्होंने काफी हलका महसूस किया और बेहद खुल गए. यह सवाल था कि आपकी दिली ख्वाहिश किया है, उन्होंने कहा कि वह एक संगीत नगरी बसाने का सपना देखते हैं, जिसमें चप्पे-चप्पे पर गीत और संगीत बिखरा हो. लोग जिधर से गुजरें, उनके कानों में संगीत की मिठास घुल जाए.
आज उनका जन्मदिन है, हम यही कामना करते हैं कि वह स्वस्थ और सक्रिय रहें और संगीत नगरी बसाने का उनका सपना जल्दी पूरा हो, ताकि हम भी उसकी सैर करने जा सकें.

interview

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