Sunday, August 16, 2020

बातें-मुलाकातें: 8 ( क्रिकेटर चेतन चैहान)


अभी कुछ देर पहले चेतन जी के निधन का दुःखद समाचार मिला, और उनसे हुई मुलाकातों की यादें ताजा हो आईं.

पत्रकारिता में कई बार हमें बहुत मुगालते हो जाते हैं. अगर कुछ लोग हमें सम्मान और महत्व देते हैं तो हम इसे उनकी भलमनसाहत से ज्यादा अपनी खूबी मान बैठते हैं और इस चक्कर में बहुत से लोगों को गलत समझ बैठते हैं.

चित्र में ये शामिल हो सकता है: Raja Mane, बाहर

बात उन दिनों की है, जब मैं दैनिक भास्कर के पत्रिका विभाग में था. हम लोग साप्ताहिक परिशिष्ट रसरंग में एक काॅलम दिया करते थे, इक्के पर इक्का. इसमें किसी भी क्षेत्र के एक व्यक्ति से उसी क्षेत्र के दूसरे व्यक्ति पर, जो कि उसका मित्र, समकक्ष, सीनियर या प्रतिद्वंद्वी कोई भी हो सकता था, एक आलेख लिखने के लिए बोलते थे. अब सब लोग लेखक तो होते नहीं, कुछ से मिलकर हम उनसे सवाल करते थे और उनके जवाबों के आधार पर उनके नाम से लेख लिख दिया करते थे.
इसी क्रम में मैंने सुझाव दिया कि एक लीजेंड क्रिकेटर चेतन चैहान से दूसरे लीजेंड क्रिकेटर कपिल देव के बारे में लिखवाया जाए. उन दिनों वे हमारे संसदीय क्षेत्र अमरोहा से भाजपा के साँसद थे. इस सुझाव के पीछे मेरा यह भी विचार था कि इंटरव्यू के बहाने चेतन जी से परिचय हो जाएगा.
बहरहाल, चेतन जी को फोन कर मैंने उन्हें इस काॅलम के बारे में बताया और उनसे समय माँगा. उन्होंने अगले दिन दिल्ली के शकरपुर इलाके में स्थित उनके आॅफिस में आने के लिए कहा. हम उन दिनों लक्ष्मीनगर में रहते थे, जो शकरपुर के एकदम सामने ही पड़ता है, सो मैं अपने रूममेट और मित्र के साथ तयशुदा वक्त पर उनके आॅफिस पहुँच गया. वह हमें सीढ़ियों पर मिल गए. मैंने अपना परिचय दिया तो वह बोले कि अच्छा हुआ, आप आ गए. हमारे एक परिचित की डेथ हो गई है और अभी मैं निगमबोध घाट जा रहा हूँ, तो आज तो बात नहीं हो पाएगी. आप कल इसी वक्त आ जाइए.
अगले दिन हम दोनों एक बार फिर उनके आॅफिस में थे. मैंने उन्हें बताया कि हम आपके संसदीय क्षेत्र से ही हैं. लेकिन इस बात के प्रति उनकी उदासीनता देखकर बहुत निराशा हुई. उन्होंने कहा कि बताइए, किस बारे में बात करनी है. मैंने कहा कि आपका कपिल देव जी के साथ एक लंबा सफर रहा है. उनके बारे में ही बताइए.
इनके लिए कुछ ले आओ, चेतन जी ने अपने कर्मचारी को आदेश दिया और वह चाय के दो कप और एक प्लेट में बिस्किट रख गया. इसके बाद मैं सवाल पूछता गया, वे बोलते गए और मेरा मित्र नोट्स बनाता गया. चाय और बिस्कुट वैसे ही रखे रहे. न उन्होंने लेने के लिए कहा और न हमने उन्हें हाथ लगाया.
करीब आधा घंटे की बातचीत के बाद इंटरव्यू खत्म हुआ. हम उठ खड़े हुए.
अरे आपने तो कुछ लिया ही नहीं, शायद उनका ध्यान पहली बार चाय की तरफ गया.
‘आपने कहा भी तो नहीं’ मैं मन ही मन बोला, लेकिन उनसे यही कहा कि बातचीत के बीच में ध्यान हीं नहीं गया कि चाय रखी है.
वह हमें सीढ़ियों तक छोड़ने आए और फिर एक और धमाका किया. बोले कि इसक अच्छा पेमेंट दिलवाना, कभी दस-पाँच हजार का पेमेंट लगवा दो.
इस काॅलम के लिए इस तरह की यह पहली माँग थी तो मैं अचंभित रह गया. इसके लिए अभी तक किसी को भी भुगतान नहीं किया गया था. लेखकों को एक आर्टिकल के चार-पाँच सौ रुपए से ज्यादा नहीं मिला करते थे. खुद मेरी पूरे महीने की सेलरी ही छह हजार रुपए थी, इसलिए सिर्फ बातचीत के लिए यह मुझे एक बहुत बड़ी रकम लगी. फिर भी मैंने कहा कि मैं अपने एडिटर से बात करूंगा कि जो बेस्ट पेमेंट हो सकता है, वह लगवा दें.
इस दोनों मुलाकातों को लेकर मैं एक लंबे समय तक क्षोभ से भरा रहा और उन्हें गलत समझता रहा. कई लोकल कार्यक्रमों में उनसे आमना-सामना हुआ, लेकिन पिछली बेरुखी को याद करके कभी उनसे बात करने में हमेशा एक संकोच सा ही महसूस होता रहा.
पर यह भी सच है कि हमारे इलाके में उनकी जो लोकप्रियता थी, और जिस तरह से वह लोगों के सुख-दुःख में भागीदारी किया करते थे, उसे देखकर यही लगता था कि वह बेहद मिलनसार किस्म के व्यक्ति हैं. वैसे भी जिस से भी चेतन जी की चर्चा होती, वह उनकी तारीफ ही करता.
फिर जैसे-जैसे जीवन और सोच में परिपक्वता और व्यावहारिकता बढ़ी तो यह एहसास हुआ कि मैंने उन्हें लेकर जबर्दस्ती के पूर्वाग्रह पाल रखे हैं. और फिर मैंने पाया कि यह व्यक्ति बेहद स्पष्ट है और राजनेताओं वाली लागलपेट, छद्म-शिष्टता और छलकपट से दूर, मूलतः एक सरल स्वभाव वाला खिलाड़ी है. इस प्रकार उनके बारे में मेरी राय सकारात्मक होने लगी तो फिर मैंने उन्हें पसंद करना शुरू कर दिया.
विश्वास करना कठिन है कि आज वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन दुर्भाग्य से यह एक कठोर सत्य है, जिसे स्वीकार करना होगा. आइए उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें और उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करें.

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