जो सिर्फ परिचित होते हैं, उनके बारे में लिखना आसान होता है, क्योंकि उनसे जुड़ी डिटेल्स बहुत ज्यादा नहीं होतीं. लेकिन, जो आपके दिल के करीब होते हैं उनके बारे में संस्मरण लिखना बड़ी टेढ़ी खीर होता है, क्योंकि आपके पास साझा करने के लिए इतने सारे पल होते हैं कि आप तय नहीं कर पाते कि क्या लिखें क्या न लिखें. ऊपर से सामने वाले के रूठ जाने का डर कि पता नहीं कौन सी बात का खुलासा उसे नाराज कर दे.
फिर भी मैं कोशिश करता हूँ कि कम से कम शब्दों में ज्यादा से ज्यादा अनुभव बाँट सकूँ. नंदना सेन का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है. वह इंटरनेशनल लेवल की अभिनेत्री हैं, जिन्होंने गौतम घोष की गुड़िया, बोक्षू द मिथ, फाॅरेस्ट, परफेक्ट मिसमैच, आॅटोग्राफ, सिड्यूसिंग मारिया, रंगरसिया जैसी कई ऐसी फिल्मों में काम किया है, जो देश-विदेश के अनेक फिल्म फेस्टिवलों में सराही गई हैं. हिंदी फिल्मों के दर्शक उन्हें ब्लैक, मैरीगोल्ड, माइ वाइफ्स मर्डरर, स्ट्रेंजर्स, टैंगो चार्ली, प्रिंस जैसी फिल्मों के माध्यम से याद कर सकते हैं, जिनमें नंदना ने नायिका/ सहनायिका की भूमिकाएं निभाई हैं.
नंदना को मैंने पहली बार सीरी फोर्ट सभागार में देखा थी, जहाँ इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल चल रहा था और वह अपनी फिल्म बोक्षू द मिथ की स्क्रीनिंग के सिलसिले में दिल्ली आई थीं. फिल्म बहुत अच्छी थी और नंदना का काम भी. उस दिन फेस्टिवल का आखिरी दिन था, नंदना की एक प्रेस काॅन्फ्रेंस थी. आॅरेंज येलो साड़ी में वह गजब ढा रही थी. मैं उस दिन उनसे बात नहीं कर पाया. फेस्टिवल का आॅफिशियल होस्ट था, होटल अशोका. अगले दिन मैंने वहाँ फोन किया और नंदना से बात कराने के लिए कहा. जब फोन नंदना से कनेक्ट हुआ तो मैंने अपना परिचय देते हुए इंटरव्यू के लिए समय देने के लिए कहा. नंदना ने कहा कि आप अपने कुछ प्रीवियस पब्लिश्ड इंटरव्यू लेते आइएगा. मैं उन दिनों दिल्ली में रहना छोड़ चुका था, बस काम के हिसाब से आता-जाता रहता था. इसलिए उनकी यह फरमाइश पूरा कर पाना संभव नहीं था. मैंने अपनी विवशता जताई तो उन्होंने कहा कि फिर तो मुश्किल होगा. पर मैंने किसी तरह उन्हें राजी कर लिया और उन्होंने बताया कि वह होटल से चेकआउट कर रही हैं. उन्होंने मुझे अगले दिन सुबह-सुबह मयूर विहार स्थित अपनी बहन के घर बुला लिया.
सर्दियों के दिन थे, यह नंदना कल की प्रेस काॅन्फ्रेंस वाली ग्लैमरस नंदना से एक दम अलग थी. पर उनका नैसर्गिक सौंदर्य भी कुछ कम प्रभावशाली नहीं था. वह घर की कैज्युअल ड्रेस पहने थी और सर्दी से बचने के लिए एक शाॅल लपेट रखा था. मैंने डिक्टाफोन आॅन कर दिया और फिर सवाल-जवाब का जो सिलसिला शुरू हुआ वह तकरीबन एक घंटा चला. बीच-बीच में उन्हें हिंदी बोलने में दिक्कत महसूस होती तो वे अंग्रेजी में जवाब देने लगतीं, जिससे हमारी बातचीत पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था. इंटरव्यू के दौरान पूरे समय उनका पैट डाॅगी भौंक-भौंक कर अपनी मौजूदगी का एहसास कराता रहा गोया कह रहा हो कि भाई मेरा भी इंटरव्यू रिकाॅर्ड करते रहो. इंटरव्यू के बाद वह किचन में गईं और ब्रेकफास्ट के लिए स्प्राउट्स ले आईं. मैंने उनसे कहा कि मैं अब तक पचास से ज्यादा इंटरव्यू कर चुका हूँ, लेकिन यह पहली बार था, जब किसी ने प्रूफ लाने को कहा. नंदना ने हैरानी से कहा कि आप इतने इंटरव्यू कर चुके हैं. कितनी उम्र है आपकी? मैंने बताया तो वह बोलीं कि देखकर नहीं लगता. ऐसा लगता है कि जैसे काॅलेज से पासआउट करके आए हैं.
मैंने उन्हें टीज करते हुए पूछा कि 'इज दिस ए कम्प्लीमेंट आॅर कम्प्लेंट?'
'दिस इज ए फैक्ट !' पहले मेरे सवाल से वह चौंकी, लेकिन जिस बिजली की तेजी से उन्होंने एक सेकेंड से भी कम में इतना शानदार जवाब भी सोच लिया, उसने मुझे उनकी हाजिर जवाबी का कायल कर दिया.
बातचीत के दौरान मैंने उन्हें अपनी लिखी, उनकी फिल्म सेड्यूसिंग मारिया की समीक्षा दिखाई. वह बोलीं कि क्या मैं इसे अपने पास रख सकती हूँ. मैंने कहा, बिल्कुल...यह मैं आप ही के लिए लाया था. उनके लिए मैं एक और चीज लेकर गया था, वह था जेड स्टोन का बना एक छोटा सा जालीदार हाथी, जिसके भीतर एक और छोटा हाथी बंद था.
यह लीजिए, एक छोटा सा गिफ्ट. मैंने उन्हें वह हाथी देते हुए कहा. तो नंदना ने बताया कि उन्हें ऐसे आइटम बहुत अच्छे लगते हैं, जिनमें इस तरह एक के भीतर दूसरा आइटम होता है और वह इसे हमेशा अपने पास रखेंगी.
मैंने उनसे पूछा कि उनका बर्थडे कब आता है. उन्होंने कहा कि 19 अगस्त को. मैंने कहा कि और एक दिन बाद होता तो राजीव गाँधी जी का और आपका जन्मदिन एक ही होता. वह बोलीं कि 19 अगस्त को बिल क्लिंटन का भी जन्मदिन है.
मैंने कहा कि ठीक है, क्लिंटन को तो मैं विश कर नहीं सकता, पर अगर आप अपना फोन नंबर देंगी तो आपको जरूर विश किया करूंगा. उन्होंने मेरे से डायरी ली और अपना नंबर, अमेरिका का पता और ई-मेल आईडी सब लिख दिया. कुछ देर और इधर-उधर की बातें हुईं और मैंने उनसे विदा ली.
यह हमारी पहली और अब तक की आखिरी मुलाकात थी. लेकिन, इसके बाद से हमारी ऐसी दोस्ती शुरू हुई, जो आज भी बरकरार है. कई बार गिले-शिकवे और मान-मनव्वल के वाकये भी हुए हैं, सुख-दुःख की बातें एक-दूसरे के साथ शेयर की हैं. सच तो यह है कि यह नंदना की विनम्रता और अपनापन ही है, जो हमारी दोस्ती बदस्तूर जारी है.
बीतें सालों से उनसे नियमित रूप से मैसेज और ई-मेल के जरिए बात होती है. वह राइटिंग, फेमिली, सोशल काॅजेज में बिजी होने के बावजूद वक्त निकालकर हमेशा जवाब देती हैं. इतने सालों में हमारी मित्रता के अनुभव इतने ज्यादा हैं कि यहाँ साझा कर पाना ना तो मुमकिन है और न ही मुनासिब. लेकिन एक बात जरूर बताना चाहूँगा कि नंदना को मेरी कविताएं बहुत अच्छी लगती हैं.
एक बार उनकी तारीफ से उत्साहित होकर मैंने उनसे कहा कि अगर आपको मेरी कविताएं इतनी ही अच्छी लगती है तो मैं आपके हर बर्थडे पर एक कविता गिफ्ट कर दिया करूंगा तो उनका जवाब था कि यह अच्छी बात है, लेकिन इसके लिए बर्थडे तक इंतजार कराना जरूरी है क्या? उनके इस जवाब ने मुझे लाजवाब कर दिया...
आज नंदना का बर्थडे है. उन्हें दिली मुबारकबाद और एक स्वस्थ, सक्रिय, खुशियों और उपलब्धियों भरे जीवन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं.
बढ़िया बातचीत। लिखा भी सुंदर।
ReplyDeletethank you
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