Wednesday, August 5, 2020

बातें—मुलाकातें : 6 (श्रीमती सुषमा स्वराज)

एक साल पहले, आज ही के अभाग्यशाली दिन काल के क्रूर हाथों ने देश से एक ऐसी शख्सियत को छीन लिया था, जो एक राजनेता तो थी ही, लेकिन उससे बढ़कर एक जननेता थी. जी हाँ, हम बात कर रहे हैं दिवंगत भाजपा नेत्री श्रीमती सुषमा स्वराज की, जिन्होंने अपने लगभग अर्द्धशती लंबे राजनीतिक कैरियर में अपने जुझारूपन, दयालु स्वभाव और मिलनसारिता के बल पर सबके दिलों पर राज किया. कुछ साल पहले, एक साक्षात्कार के सिलसिले में उनसे मिलना तय हुआ. उनकी मिलनसारिता और गर्मजोशी का अंदाजा तो तभी से लगना शुरू हो गया था, जब मैंने पहली बार मुलाकात का वक्त लेने के लिए उन्हें कॉल किया था.

मैं संदीप सौरभ बोल रहा हूँ...
जी संदीप जी बोलिए...
जितनी हस्तियों का मैंने इंटरव्यू किया था, उनमें वह पहली थीं, जिन्होंने इतनी विनम्रता और सम्मान के साथ मेरा नाम लिया था, तो मन को बहुत अच्छा लगा और थोड़ा अजीब भी. खैर, परिचय देने और इंटरव्यू का टॉपिक देने के बाद तुरंत वक्त मिला और मुलाकात हुई और अगले दिन मैं उनके लोधी स्टेट वाले घर पर पहुँच गया. वह तब तक एक बहुत बड़ी हस्ती बन चुकी थीं, लेकिन उनके व्यवहार से इस बड़प्पन का कहीं भी आभास नहीं मिलता था. टीवी पर उन्हें कई बार देखा था, लेकिन वास्तविक जीवन में वह स्क्रीन से भी ज्यादा ओजस्वी और गरिमामयी दिखती थीं. वह बहुत सहज भाव से मेरे सामने ही बैठ गईं और बोली कि बताइए संदीप जी, आप क्या जानना चाहते हैं. तब तक चाय के कप और पारले—जी के बिस्कुट आ चुके थे. वह बोलीं, पहले चाय पी लीजिए. फिर बात करते हैं. मैंने चाय पीते—पीते उनसे कई सवाल पूछ लिए. एक सवाल था कि आप नारी मुक्ति के बारे में क्या सोचती हैं. इस पर उनके लहजे में ऐसा जोश आया कि मैं सहम सा गया कि कहीं मैंने कोई गलती तो नहीं कर दी. उनका कहना था कि आखिर नारी को मुक्ति किससे चाहिए? अपने परिवार से, अपने बच्चों से? मैं नारी मुक्ति में नहीं, नारी शक्ति में विश्वास करती हूँ... इंटरव्यू के छपने के बाद उनका यह वाक्य कोटेशन के रूप में कई जगह छपा. बाकी इंटरव्यू आप स्वयं पढ़ सकते हैं.
आज उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि. वह एक ऐसी राजनेता थीं, जिनकी कमी हमेशा खलती रहने वाली है.

interview

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