गरीबी और लाचारगी को अगर कोई चेहरा दिया जाए तो वह या तो ए.के.हंगल जैसा होगा, या फिर सत्येन कप्पू जैसा. दोनों में बुनियादी फर्क यह था कि ए.के.हंगल को अपने व्यक्तित्व की अभिजात्यता को अपने बेजोड़ अभिनय से दीनता का जामा पहनाने में महारत हासिल थी, तो सत्येन कप्पू एक स्वाभाविक रामू काका ही नजर आते थे. हालांकि बहुत सी फिल्मों में उन्होंने धनिकों और पुलिस अधिकारियों की भी भूमिकाएं कीं, लेकिन शोले में रामू काका की छाप उनके व्यक्तित्व पर ऐसी पड़ी कि नौकर की भूमिका में उन्हें देखकर लगता ही नहीं था कि वे अभिनय कर रहे हैं. वे करीब चार दशकों तक अभिनय में सक्रिय रहे और इस दौरान उन्होंने चार सौ के लगभग फिल्मी भूमिकाएं कीं. इंडस्ट्री में उनकी क्या अहमियत थी, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मिथुन चक्रवर्ती की सुपरहिट फिल्म घर एक मंदिर में घर के दिवंगत पिता के रूप में सिर्फ उनकी तस्वीर का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन फिल्म के क्रेडिट्स में उनका नाम बाकायदा मुख्य अभिनेताओं के साथ दिया गया था.

सत्येन कप्पू से मेरी मुलाकात मंडी हाउस में दूरदर्शन के रिसेप्शन पर हुई, जहाँ मैं रिपोर्टिंग के सिलसिले में गया हुआ था और वे किसी से मिलने आए हुए थे. मैंने उन्हें पहचान तो लिया, लेकिन फिर भी पुष्टि के लिए उनसे पूछ ही लिया कि क्या वे सत्येन कप्पू ही हैं. उनके हाँ कहने पर मैंने उन्हें अपना परिचय दिया और कहा कि मैं आपका इंटरव्यू करना चाहता हूँ. उन्होंने अगले दिन मयूर विहार बुला लिया, जहाँ वे अपने मित्र के घर पर ठहरे हुए थे.मैंने सुबह—सुबह अपने मित्र विकास मिश्र ( वर्तमान में आज तक न्यूज चैनल में प्रोड्यूसर) के साथ, जो दुर्गम और दूरस्थ स्थानों पर जाने के लिए अक्सर मेरे लिए बहुत मददगार साबित होते थे, वहाँ धावा बोल दिया. उन्होंने पूछा कि बताइए आप क्या जानना चाहते हैं, मैंने उन्हें मेरा सपना कॉलम के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि क्या आपको लगता है कि इस उम्र में मेरा कोई सपना बाकी बचा होगा. मैंने उन्हें स्पष्ट किया कि हमारा कॉलम सपनों में ड्रीम्स, डिजायर्स और एंबीशंस इन सबको शामिल करता है. ठीक है पूछिए, उनके यह कहने पर मैंने सवालों का सिलसिला शुरू कर दिया. वे बड़े धैर्य और उत्साह से जवाब देते गए.
उनकी पर्दे पर जो छवि है, उसे देखते हुए कोई कल्पना तक नहीं कर सकता कि उनके मन में किस तरह के झंझावात चल रहे हो सकते थे. बेचैनी, घुटन,भय, कसक... उनके सपनों में मुझे सब चीजों का समावेश मिला.
इन सपनों में एक बड़ा दिलचस्प सपना भी था. वह ये कि अनुपम खेर उनके सपने में आए और उन्हें गीत लिखवाने लगे. और यही नहीं वह सपने से जागे और अलसुबह उठकर उन्होंने वह गीत कलमबद्ध भी किया. इसके बाद सत्येन जी ने मुझे सस्वर वह गीत सुनाया.
आज सत्येन साहब की तेरहवीं पुण्यतिथि है. इस अवसर पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि.
interview
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