मेरे किए सर्वाधिक विचित्र साक्षात्कारों में से एक है, शिखा स्वरूप का. यह एक ऐसा साक्षात्कार है, जो होते—होते रह गया था और न होते—होते हो गया. इस बारे में आगे बढ़़ने से पहले जो शिखा स्वरूप को नहीं जानते, उनकी जानकारी के लिए बता देना जरूरी लग रहा है कि दूरदर्शन के रंगीन होने के बाद रामायण, महाभारत जैसे धारावाहिकों ने इनमें एक और रंग जोड़ दिया था, सुनहरा. इसी स्वर्णिम दौर में धूम मचा देने वाले धारावाहिकों में से एक था, नीरजा गुलेरी का चंद्रकांता. और चंद्रकाता में शीर्षक भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री शिखा स्वरूप ही थीं. हालांकि मॉडलिंग और फैशन शो की दुनिया में उनका काफी नाम था. इस दौर में उन्होंने 400 से ज्यादा फैशन शो में हिस्सा लिया था. करीब दो दर्जन फिल्मों और धारावाहिकों में भी वे लीड रोल में नजर आईं, लेकिन जो स्टारडम उन्हें चंद्रकांता ने दिया, वह ऐतिहासिक था.
1988 में आॅल इंडिया पिस्टल शूटिंग
चैंपियनशिप में गोल्ड मैडल जीतने वाली और इसी साल शबनम पटेल के साथ मिस इंडिया इंटरनेशनल
टाइटिल साझा करने वाली वाली शिखा स्वरूप ने 1991 में एक बार फिर यह टाइटिल अपने नाम
किया. इसके अलावा नेशनल लेवल पर बैडमिंटन खेल चुकी हैं, लेकिन कुछ सेहत संबंधी दिक्कतों
के कारण वह खेलों में कैरियर जारी नहीं रख सकीं.
बहरहाल, अब हम मूल विषय पर आते हैं.
शिखा स्वरूप का मूल घर दिल्ली में ही था, इसलिए वे बीच—बीच में दिल्ली
आती रहती थीं. एक बार उनके आने का पता चला तो मैंने उन्हें कॉल किया और बताया कि मैं
उनका इंटरव्यू करना चाहता हूँ. तब ग्लैमर की दुनिया में अखबारों की काफी इज्जत और अहमियत
हुआ करती थी और नवभारत टाइम्स भी देश के लीडिंग हिंदी अखबारों में से एक था. उन्होंने
कहा कि कल प्रगति मैदान में मेरा एक फैशन शो है, आप वहीं आ जाइए.
अगले दिन मैं तय वक्त पर प्रगति मैदान
में उस हॉल में पहुँच गया. जहाँ उनका शो चल रहा था. अब चूंकि वह शो आमंत्रितों के लिए
था, इसलिए मुझे भीतर जाने की इजाजत नहीं मिली. मेरी कम उम्र और दुबले—पतले शरीर
की वजह से वहाँ कोई मानने को राजी नहीं हुआ कि मुझे शिखा स्वरूप ने बुलाया था. गेट
पर खड़े गार्ड्स ने आॅर्गेनाइजर्स में से एक को बुलाया और मुझसे कहा कि इनसे बात कर
लो. उस बंदे को भी मेरी बात समझ में नहीं आई तो मैंने एक स्लिप पर अपना नाम लिखकर उन्हें
दिया कि आप शिखा जी को दे दीजिए तो उसे लगा कि मैं शिखा का आॅटोग्राफ लेने आया हूँ.
उसने पर्ची जेब में रखा ली और बोला कि शो खत्म होने का वेट करिए, उसके बाद ही मिलवा
सकते हैं.
मेरा धैर्य जवाब दे गया और मैं 'बड़े
बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले...' वाले अंदाज में वहाँ से वापस आ गया. गुस्सा
तो शिखा पर भी बहुत आ रहा था कि अगर उसने मुझे वहाँ बुलाया था तो गेट पर बता देना चाहिए
था कि मुझे अंदर आने दिया जाए. अगले दिन सुबह—सुबह इस बात की शिकायत करने के लिए मैंने उन्हें
फोन किया तो वह मेरा नाम सुनते ही खुद ही शिकायत करने लगीं कि उन्होंने मेरा इंतजार
किया और मैं वहाँ नहीं पहुँचा. मैंने उन्हें सारी बात समझायी तो उन्होंने इसके लिए
अफसोस जाहिर किया. उसी दिन वे वापस मुंबई जाने वाली थीं और दिल्ली आने के अगले प्रोग्राम
का कुछ पता नहीं था. तो यह तय हुआ कि फोन पर ही इंटरव्यू कर लिया जाए.
इंटरव्यू शुरू हुआ, बड़ा लंबा चला.
मेरा सपना की बातचीत खत्म हुई तो मैंने सोचा कि साथ—साथ एक सामान्य
इंटरव्यू भी कर लिया जाए. मैं पूछता गया और वह बताती गईं. मैंने महसूस किया कि कई सवालों
के जवाब वे बहुत बेफिक्री से दे रही थीं, जिनके छपने पर उन्हें असुविधा हो सकती थी.
मैंने इंटरव्यू के बाद शिखा से कहा भी कि आप बहुत ईमानदार हैं. उन्होंने पूछा कि कैसे?
तो मैंने उन्हें उनके एक—दो जवाबों का उदाहरण दिया. वह बोलीं कि आप लिखते समय ध्यान रख लीजिएगा
कि कुछ गलत न छप जाए. मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि वह चिंता न करें. फिर मैंने उनसे
कहा कि आप अपने फोटो भिजवा सकती हैं क्या? वह बोलीं कि एड्रेस लिखवा दीजिए, मैं कूरियर
करवा देती हूँ. मैं एड्रेस लिखाने लगा तो वह इतना लंबा था कि शिखा लिखते—लिखते थक
गईं और बोलीं कि बाप रे, ये पता है या चिट्ठी.
खैर, दोनों इंटरव्यू हाजिर हैं. आप
चाहें तो पढ़ सकते हैं और आज शिखा के जन्मदिन पर उन्हें बधाई और शुभकामनाएं भी दे सकते
हैं.
interview
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