Friday, October 23, 2020

बातें—मुलाकातें : 25 (मार्क टल्ली)

एक दौर था, जब खबरों के लिए देश की जनता अखबारों के अलावा सिर्फ टीवी के समाचार बुलेटिन और आकाशवाणी की खबरों पर निर्भर रहा करती थी. दोनों पर सरकार का नियंत्रण था तो यह माना जाता था कि इन पर आने वाली खबरों पर भी सरकार का नियंत्रण रहता है. ऐसे में दो ही नाम लोगों की जुबां पर रहते थे एक तो बीबीसी और दूसरे मार्क ट्रुली... जिनके बारे में माना जाता था कि यहाँ खबर सबसे पहले आती है और सबसे भरोसेमंद होती है.



मार्क ट्रुली संभवत: देश के पहले ऐसेकॉरेसपॉन्डेंट थे, जिन्हें एक स्टार का दर्जा हासिल था. नवभारत टाइम्स के तत्कालीन फीचर प्रभारी विनोद  भारद्वाज जी से, मेरा सपना के लिए मार्क का इंटरव्यू करने की इजाजत लेकर मैंने मार्क को फोन किया. उन्होंने अगले दिन का वक्त दे दिया.

अगले दिन जब मैं खोजतेखोजते मार्क के निजामुद्दीन ईस्ट स्थित बंगले पर पहुँचा तो वहाँ नेम प्लेट पर हिंदी में मार्क टल्ली लिखा देखकर शॉक लगा. आज तक उनका नाम मार्क ट्रुली ही सुनतेपढ़ते आए थे. लेकिन उनका घर था तो नाम गलत होने की संभावना के बराबर थी. वैसे जानकारी के लिए बता दूँ कि उनका पूरा नाम सर विलियम मार्क टल्ली है.

बहरहाल, अंदर पहुँचा तो मार्क से मुलाकात हुई.  करीब तीन दशकों तक भारत में बीबीसी के पयार्य रहे मार्क टल्ली सेवानिवृत्त हो चुके थे और एक फ्रीलांस ब्रॉडकास्टर के तौर पर मीडिया से जुड़े थे.

एक स्टार पत्रकार होने के नाते उनमें काफी एटिट्यूड होगा, सोचा तो यही था लेकिन आशंका के विपरीत उनका व्यवहार बेहद सौम्य, ​मिलनसारिता से भरपूर था और चेहरा काफी हँसमुख शर्मीला.

उन्होंने कहा कि आप तो बहुत यंग हैं. मैंने कहा कि आप फिक्र करें, मैं उम्र में कम हूँ, लेकिन आपको निराशा नहीं होगी. तो उन्होंने झेंपते हुए कहा कि वे शिकायत नहीं तारीफ कर रहे थे.

इंटरव्यू शुरू हुआ. बहुत सारे सवालजवाब हुए. ​वे ब्रिटिश होते हुए भी किसी भी आम भारतीय जितनी ही भारतीयता से भरपूर थे.

उस समय इंडिया वर्सेज भारत का जुमला पैदा नहीं हुआ था, इसलिए जब उन्होंने कहा कि उनक ख्वाहिश हिंदुस्तान को फिर से भारत के रूप में देखने की है तो मैं चकित हुआ कि दोनों में फर्क क्या है. उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत से उनका आशय ऐसे देश से है, जो पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करते हुए अपनी संस्कृति पर गर्व करे और इतना प्रगति करे कि उसे किसी भी चीज के लिए दूसरों की ओर देखना पड़े, बल्कि दूसरे उसकी ओर देखें.

उनकी बहुत सारी बातों ने मुझे चकित किया, जैसे कि जवानी के दिनों में एक तरफ तो हर समय सेक्स और शराब के बारे में सोचते रहते थे और दूसरी तरफ एक पादरी बनने का सपना भी देखते थे. जो उनके शौकों की वजह से साकार नहीं हो पाया.

मैंने जब उनसे पूछा कि क्या उनके सपनों में भी सेक्स होता है तो उन्होंने कुछ कहने के लिए मुंह खोला फिर एकाएक संभल कर बोले कि मैं इस बारे में कुछ नहीं बताऊंगा, तुम पत्रकार लोग बहुत बदमाश होते हो.

खैर, उनके साथ एक बेहतरीन और बेहद संजीदा इंटरव्यू करने के बाद मुझे वह खुशी हासिल हुई जो बहुत कम लोगों के साथ हुई है. इंटरव्यू लिखकर जब मैं नवभारत टाइम्स ले गया तो वहाँ भी उनका सरनेम देखकर सबको बहुत हैरानी हुई कि कहीं मैंने गलती से ट्रुली को टल्ली तो नहीं लिख दिया. लेकिन, जब मैंने उनकी नेमप्लेट का हवाला दिया तो फिर उन्होंने भी इसे टल्ली ही छापा. शायद यह पहली बार था, जब किसी अखबार ने हिंदी में उनका नाम सही छापा था.

इंटरव्यू छपा, काफी सराहा गया. मार्क को बताने के लिए फोन किया तो उनकी पार्टनर ने फोन उठाया. उन्होंने कहा कि मार्क तो आउट आॅफ टाउन हैं, लेकिन जब उन्हें इंटरव्यू के बारे में बताया तो वह बोलीं कि मार्क रात को वापस आ जाएंगे. उन्होंने कहा कि उन्हें पता चल गया था और उन्होंने पेपर मंगा कर रख लिया था.

मार्क से दूसरी मुलाकात कुछ दिनों बाद हुई. इस बार मेरे साथ मेरे सहपाठी और अभिन्न मित्र अखिलेश शर्मा, जो अभी एनडीटीवी में पॉलिटिकल हेड हैं, भी थे. हम दोनों रेडियो के लिए यंगतरंग नाम की एक मैगजीन प्लान कर रहे थे. हम इसे विविध भारती को देना चाहते थे, लेकिन वहाँ पहले से युवमंच चल रहा था. इसलिए हमने सोचा कि मार्क से मिलकर देखते हैं, जो तब तक टाइम्स के एफएम चैनल से जुड़ चुके थे. हमें लगा कि शायद वे वहाँ इसे फिट करवा दें. मार्क का समय लेकर हम एक बार फिर उनके घर जा धमके. पहले की तरह इस बार भी वे बहुत प्यार और सहयोग भाव से पेश आए. मैगजीन की चर्चा चली, हमने उन्हें कॉन्सेप्ट नोट दिखाया तो उन्होंने बड़ी ईमानदारी से कहा कि आपके सारे आइडिया अलगअलग तो अच्छे हैं, लेकिन एक साथ बहुत हौचपौच हो रहा है. टाइम्स एफएम पर इसकी शुरुआत की गुंजाइश से उन्होंने इंकार कर दिया और बताया कि उनके सारे आॅपेशन बहुत मनीमाइंडेड होते हैं, इसलिए हमें आकाशवाणी पर ही कोशिश करनी चाहिए.

उनसे विदा लेकर हम मायूसी के साथ बाहर आ गए और यंग तरंग का आगे बढ़ाने का आइडिया वहीं ड्रॉप कर दिया. 

आज पद्मश्री व पद्मभूषण मार्क का 85 वां जन्मदिन है. हम उनके स्वस्थ व दीर्घ जीवन की कामना करते हैं. ऐसे दौर में, जब मीडिया की विश्वसनीयता शून्य से भी नीचे है, हम मार्क होने का महत्व समझ सकते हैं.

Image courtesy : By Chatham House - Flickr: Mark Tully, CC BY 2.0, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=28389727

Interview :



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