मीता वशिष्ठ, को कमर्शियल फिल्मों के दर्शक अगर चाँदनी, दिल से, ताल, फिर मिलेंगे, अलादीन जैसी फिल्मों के जरिए जानते हैं तो पैरेलल सिनेमा के दर्शक कस्बा, सिद्धेश्वरी, दृष्टि, खयाल गाथा, द्रोहकाल जैसी फिल्मों के लिए पहचानते हैं. फिल्मों के अलावा भी वे स्पेस सिटी सिग्मा, स्वाभिमान, कहानी घर—घर की, भारत एक खोज, जोधा अकबर, मि.योगी, पचपन खंभे लाल दीवारे जैसे धारावाहिकों में अपने सशक्त अभिनय का लोहा मनवा चुकी हैं.
मीता एक धारावाहिक की शूटिंग के सिलसिले में दिल्ली आई हुई थीं.
पता चला कि वे इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में ठहरी हुई हैं. मैंने उन्हें फोन किया और
इंटरव्यू के लिए वक्त माँगा. उन्होंने बिना किसी हील हुज्जत के मुझे आईआईसी बुला लिया.
उस दिन मेरे साथ थे मेरे रूम मेट राजीव रंजन, जो अभी एनडीटीवी में
एसोसिएट एडिटर हैं. हम जब आईआईसी पहुँचे तो मीता बोलीं कि वे श्रीराम सेंटर जा रही
हैं, हम उनके साथ ही टैक्सी में चलें.रास्ते में बात हो जाएगी.
हमें तो इंटरव्यू करना था, कहीं भी सही. चलती गाड़ी के इंटरव्यू
के बारे में अभी तक सिर्फ फिल्म पत्रिकाओं में भी पढ़ा था. आज अनुभव भी हो जाएगा, ये
सोचकर मैं उनके साथ बैठ गया. अब राजीव आगे की ड्राइवर वाली सीट पर और मैं और मीता पीछे
वाली सीट पर.
आगे बढ़ने से पहले एक उपकथा साझा करता हूँ. मुझे बैठते ही फिल्म
पत्रिका माधुरी में छपा मैंने डॉ. प्रवीणा भारद्वाज द्वारा लिया गया अनिल कपूर का एक
इंटरव्यू याद आया, जो उन्होंने अनिल कपूर की शूटिंग के लिए जाती हुई कार में लिया
था. उसमें अनिल कपूर एक सवाल पर ऐसा बिदके कि उन्हें गाड़ी से उतरने के लिए बोल दिया.
डॉ. भारद्वाज ने लिखा था कि उन्हें भी फिल्मस्टारों की गाड़ी में बैठने का कोई शौक
नहीं था, लेकिन अनिल कपूर को अपने इस व्यवहार के बारे में जरूर सोचना चाहिए.
तो मैंने उस घटना को याद करते हुए यही तय किया कि कोई ऐसा सवाल न पूछूं जो उस अनुभव को दोहराने की वजह बने.
उन दिनों मेरा सपना के लिए सवाल पूछते हुए मैं अक्सर मेल सेलिब्रिटीज से उनके सेक्स से संबंधित सपनों(ड्रीम्स) के बारे में और फीमेल सेलिब्रिटीज से उनकी शादी को लेकर उनके सपनों (एक्सपेक्टेशंस) के बारे में पूछा करता था. मीता के मामले में मुझसे यह चूक हुई कि निजी जीवन के बारे में कोई जानकारी नहीं हासिल की मैंने, हालांकि उनकी रील लाइफ के बारे में पर्याप्त जानकारी थी. मैंने उनसे इस बारे में सवाल कर लिया और सवाल पूछते हुए एक और मूर्खता यह की कि उस समय अंग्रेजी बोलना आता नहीं था, फिर भी यह जानने के लिए कि वे अपनी शादी को लेकर क्या सपना देखती हैं, उनसे अंग्रेजी में कहा कि 'आई होप, यू आर स्टिल अनमैरिड...' सुनते ही वो तमक गईं और बोली कि 'व्हाई डू यू होप सो?'
राजीव रंजन जो बार—बार पीछे मुड़कर देख रहे थे, मीता को गुस्से में देखकर वह भी सहम गए. मैं भी समझ गया कि कुछ तो गड़बड़ हो गई है. फिर जैसे—तैसे मैंने मीता को समझाया कि मेरा मंतव्य यह नहीं था. और गाड़ी से उतारे जाने की नौबत नहीं आई, एक फिर इंटरव्यू पटरी पर आ गया.
श्रीराम
सेंटर पहुँचते—पहुँचते इंटरव्यू भी समाप्त हो चला था. गाड़ी से उतरकर हमने मीता से विदा ली.
राजीव ने मुझसे शिकायत की आप कैसे—कैसे सवाल करते हैं, देखा नहीं वह गुस्सा हो गई थी. फिर राजीव ने यह भी बताया कि मीता की शादी अनूप सिंह नाम के एक फिल्ममेकर से हुई है. अब शिकायत करने की बारी मेरी थी कि क्या वह यह बात पहले नहीं बता सकता था.
अगले दिन मैंने इंडिया इंटरनेशनल में मैंने मीता को कॉल किया और कहा कि मुझे उनसे मिलकर बहुत अच्छा लगा.
'मुझे भी...' उनका जवाब था.
'एक बात कहूँ, आप बुरा तो नहीं मानेंगी?'
'बोलिए...'
'मैंने सुना था आप बहुत घमंडी हैं, लेकिन आपसे मिलकर बिल्कुल भी ऐसा नहीं लगा.' मेरे इतना कहते ही मीता इतनी जोर से खिलखिलाकर हँसी कि उस हँसी की खनक आज भी मेरे जहन से नहीं मिटी है.
कुछ महीने बाद, मीता से एक बार फिर मुलाकात हुई. मौका था गोविंद निहलानी की फिल्म तक्षक का मुहूर्त और जगह थी, मुंबई का नटराज स्टुडियो, जहाँ मैं ओमपुरी के बुलावे पर गया था, वह किस्सा फिर कभी, अभी तो बताने की बात यह है कि दूसरे कई कलाकारों के अलावा मीता भी वहाँ मौजूद थीं. मैंने उनके पास आकर उन्हें हैलो किया और पूछा कि आपने पहचाना मुझे?
'बिल्कुल, कैसे हो?' उन्होंने पूछा. उनकी बड़ी—बड़ी आँखों में पहचान लिए जाने की चमक दिखी तो मुझे काफी अच्छा लगा.
आज मीता का जन्मदिन है, इस मौके पर उन्हें बहुत—बहुत शुभकामनाएं.
Interview
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