Sunday, October 25, 2020

कुछ खत, कुछ खताएं... (1)

 कटे अल्फाजों वाली इबारत 

रवीना से न मेरी कभी बात हुई है न मुलाकात, फिर भी आज जिक्र छेड़ने की दो वजह हैं. एक तो बचपन में उनसे जुड़ी एक प्यारी सी याद और दूसरा उनका जन्मदिन. पहले याद को याद करते हैं. बचपन से ही मुझे न्यूजपेपर, मैगजीन और बुक्स पढ़ने का बहुत शौक रहा, क्योंकि हमारे घर में तीनों ही चीजें भरपूर मात्रा में पाई जाती थीं. इन्हीं मैगजींस में से एक थी फिल्म पत्रिका माधुरी. यह फिल्मों पर आने वाली ऐसी हिंदी पत्रिका थी, जिसमें बहुत सारी चीजें बहुत अलहदा किस्म की होती थीं. इसलिए मैं इसे रेगुलरली पढ़ता था, बिना कोई इश्यू मिस किए.

इसमें फिल्मी कलाकारों के इंटरव्यू भी होते थे. जिनके अंत में उनका पोस्टल एड्रेस लिखा होता था. मैं अक्सर उस एड्रेस पर उन्हें पोस्टकार्ड पर कुछ न कुछ लिखकर भेजा करता था. ज्यादातर उत्तर नहीं देते थे, लेकिन देने वालों की संख्या भी इतनी तो थी कि मैं कभी हतोत्साहित नहीं हुआ.
ऐसे ही एक अंक में रवीना का इंटरव्यू छपा. उस समय रवीना की डेब्यू फिल्म पत्थर के फूल आने वाली थी, जिसमें वे सलमान के अपोजिट थीं. मुझे रवीना का ताजगी से भरपूर सौंदर्य और बातों की ईमानदारी बहुत अच्छी लगी और मैंने एक पोस्टकार्ड पर एक कार्टून बनाकर उसके डायलाॅग बाॅक्स में सिर्फ चार शब्द लिखे ‘आई विश यू आॅन द टाॅप’ और इसे रवीना के पोस्टल एड्रेस पर भेज दिया.
जवाब की न मुझे उम्मीद थी और न इंतजार, फिर भी कुछ दिनों बाद एक लिफाफे की शक्ल में उनका जवाब आया तो मैं सरप्राइज्ड रह गया. उसमें सिर्फ एक फोटो था. फोटो भी ऐसा, जिसे देखकर लगता था, जैसे उन्होंने अपने निजी एलबम से निकालकर भेजा दिया हो. वर्ना तो इससे पहले जिन सितारों के फोटो मुझे मिले थे, वह देखने से ही प्रोफेशनल फोटोग्राफर्स द्वारा खींचे गए लगते थे. लेकिन इस फोटो के साथ ऐसा कुछ नहीं था.
फोटो की बैक पर देखा. रवीना ने कुछ लिखकर काटा हुआ था, जिसके नीचे मेरे लिए तीन पंक्तियां और उनके सिग्नेचर मौजूद थे. मैंने बहुत कोशिश की, कल्पनाओं के घोड़े दौड़ाए लेकिन आज तक जान नहीं पाया कि उन्होंने पहली लाइन में ऐसा क्या लिखा होगा, जिसे लिखकर काटने की जरूरत पड़ी. वो भी इस बुरी तरह से कि एक भी अक्षर न पढ़ा जा सके.
मैंने उनके टाॅप पर पहुँचने की कामना की थी, लेकिन इस विश के पूरा होने के लिए मुझे और रवीना को बहुत इंतजार करना पड़ा.
पहली ही फिल्म पत्थर के फूल की नाकामी ने उनके रास्ते को बहुत कठिन बना दिया, बावजूद इसके कि उनके साथ एक मजबूत फिल्मी बैकग्राउंड थी. आपको भी पता होगा कि उनके पिता रवि टंडन अपने वक्त के कामयाब फिल्मकार रहे हैं.
रवीना ऐसी अभिनेत्री थीं, जिन्हें उस समय के टाॅप कलाकारों के अपोजिट की जाने वाली फिल्में भी कामयाबी का स्वाद नहीं चखवा पा रही थीं. लेकिन तीन साल बाद उनकी तकदीर ने पलटी खाई और मोहरा के आइटम साॅन्ग ‘तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त...’ ने उन्हें फिल्म दीवानों के दिल की धड़कन बना दिया... लेकिन, इसके अगले ही साल कल्पना लाजमी की मैरिटल वाॅयलेंस पर आधारित फिल्म दमन के लिए उन्होंने राष्ट्रीय पुरस्कार जीत कर अपनी ‘चीज’ वाली छवि के एकदम विपरीत खुद को एक बेहद सक्षम अभिनेत्री के रूप में स्थापित कर दिया. और तमाम कमर्शियल फिल्मों करते हुए भी सत्ता, अग्निवर्षा, शूल जैसी अलग किस्म की फिल्मों के जरिए इसे कायम रखे रहीं.
आज रवीना का जन्मदिन है, इस मौके पर उन्हें हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं. सालों बीत चुके हैं, पर मेरी जिज्ञासा अभी भी बनी हुई है. कभी उनसे मुलाकात हो पाई तो पूछूँगा जरूर कि उन्होंने उस कटी लाइन में क्या लिखा था.
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