Wednesday, December 23, 2020

बातें—मुलाकातें: 36 (कनुप्रिया विमल—सहगल)

कुल लोग कम समय के लिए आपके जीवन में आते हैं, लेकिन ऐसी छाप छोड़कर जाते हैं कि हमेशा वे आपकी यादों में बने रहते हैं. कनुप्रिया ऐसी ही एक लड़की थी... बेहद सरल स्वभाव, साफ दिल और बेबाकी भरी बातें करने वाली लड़की. सुप्रसिद्ध साहित्यकार गगाप्रसाद विमल जी की बेटी कनु से मेरी मुलाकात तब हुई थी, जब उसने अभिनय में अपना कैरियर शुरू किया था और मैंने पत्रकारिता में. मैंने टाइम्स आॅफ इंडिया में उसके बारे में एक छोटा सा आइटम पढ़ा. लगा कि इसके बारे में तो और भी काफी कुछ लिखा जा सकता है. अपने स्रोतों से उसका नंबर तलाशा और कॉल कर दिया.


जैसी कि अपेक्षा थी, उसने तुरंत इंटरव्यू देने के लिए बुला लिया. मैं जब उसके घर पहुंचा तो वहाँ बेहद पारिवारिक किस्म का माहौल था. उसके मम्मी—पापा (डॉ. विमल) घर भी ही थे. उन्होंने बिना किसी बनावट के सहज—स्वाभाविक ढंग से मेरा स्वागत किया और फिर कनु और मेरी एक लंबी बातचीत हुई. बहुत सारी निजी और पेशागत चीजों के बारे में.


इंटरव्यू छपा तो मैंने उसे बताया...वह बोली कि पेपर तो मैंने मंगा लिया था, लेकिन आप जरूर आइएगा. गया तो इस बार उसने चाकलेट से स्वागत किया. फिर तो उसके घर आना—जाना शुरू हो गया और हम अच्छे दोस्त बन गए. सब लोग मुझे घर का ही एक सदस्य मानने लग गए थे. वह जब भी परेशान होती, मुझे फोन लगा लेती और अपने दिन भर का हाल सुनाती. कई बार तो वह देर रात को फोन करके मुझे जगा देती और कहती कि मैंने उससे कहा था कि जब भी जरूरत हो, फोन कर लेना. उसका कहना होता था कि मुझे गुस्सा नहीं करना चाहिए. अगर मैंने गुस्सा किया तो वह मुझे डंडे से मारेगी. उसकी ऐसी बचपने वाली बातें सुनकर मुझे गुस्सा आ भी रहा होता था तो उसकी जगह हँसी आ जाती थी.

चूंकि वह ग्लैमर की दुनिया में नई थी, इसलिए इस पेशे की छद्मता और चालाकी उसके व्यवहार में प्रवेश नहीं कर पाई थी. वह किसी भी कलाकार के बारे में बेहद मुखर होकर कुछ भी बोल देती थी. मैं उसकी ज्यादातर बातों को गॉसिप समझकर गंभीरता से नहीं लेता था. जैसे कि उसने एक बार बताया था कि शाहरूख् खान ने किस तरह विवेक वासवानी को 'उपकृत' कर फिल्म इंडस्ट्री में अच्छे बैनरों में जगह बनाई तो मुझे बिल्कुल यकीन नहीं आया था, क्योंकि मैं विवेक वासवानी को इतना सक्षम नहीं मानता था. लेकिन, एक बात माननी पड़ेगी. फिल्म पत्रकार होते हुए भी सितारों को लेकर जो समझ मुझमें नहीं थी, वह उसमें काफी गहरी थी.

उन दिनों चंद्रचूड़ सिंह और अरशद वारसी की, एबीसीएल की द्वारा निर्मित, तेरे मेरे सपने रिलीज हुई थी. कनुप्रिया ने मुझसे पूछा कि दोनों में आपको कौन लगता है कि आगे जाएगा? मैंने मन ही मन दोनों की तुलना करके बताया कि चंद्रचूड़ सिंह स्मार्ट हैं, सुंदर है तो उनका भविष्य ज्यदा अच्छा होगा. लेकिन उसका कहना था कि चंद्रचूड़ में स्टार मैटेरियल नहीं है. अरशद वारसी लंबी रेस का घोड़ा है...और देखिए, उसका आकलन ही सही साबित हुआ.

करीब एक साल बाद मुझे खामोश नाम के एक टीवी सीरियल की स्क्रिप्ट लिखने का मौका मिला, जो कबीर कौशिक (सहर, चमकू, मैक्सिमम, हम तुम और घोस्ट के डायरेक्टर) डीडी नेशनल के लिए बना रहे थे. मुझे लगा कि कनुप्रिया को इस सीरियल से जोड़ा जा सकता है. मैंने उसे बताया और उसके हिसाब से एक कैरेक्टर स्क्रिप्ट में जोड़ दिया. मेरे एक दोस्त, राहुल देव, पहले से ही उसमें टाइटिल रोल प्ले कर रहे थे. कुछ एपिसोड की स्क्रिप्ट लिखने के बाद पता चला कि डीडी की लालफीताशाही की वजह से सीरियल की योजना परवान नहीं चढ़ पाई है. इस तरह उसके लिए कुछ करने का मेरा इरादा धरा का धरा रह गया. इसके बाद कुछ दिक्कतों की वजह से दिल्ली छोड़नी पड़ी तो बहुत सारे लोगों का साथ भी छूट गया.

करीब एक साल बाद मुझे खामोश नाम के एक टीवी सीरियल की स्क्रिप्ट लिखने का मौका मिला, जो कबीर कौशिक (सहर, चमकू, मैक्सिमम, हम तुम और घोस्ट के डायरेक्टर) डीडी नेशनल के लिए बना रहे थे. मुझे लगा कि कनुप्रिय को इस सीरियल से जोड़ा जा सकता है. मैंने उसे बताया और उसके हिसाब से एक कैरेक्टर स्क्रिप्ट में जोड़ दिया. मेरे एक दोस्त, राहुल देव, पहले से ही उसमें टाइटिल रोल प्ले कर रहे थे. कुछ एपिसोड की स्क्रिप्ट लिखने के बाद पता चला कि डीडी की लालफीताशाही की वजह से सीरियल की योजना परवान नहीं चढ़ पाई है. इस तरह उसके लिए कुछ करने का मेरा इरादा धरा का धरा रह गया. इसके बाद कुछ दिक्कतों की वजह से दिल्ली छोड़नी पड़ी तो बहुत सारे लोगों का साथ भी छूट गया.

कुछ साल बाद डॉ. विमल से एक फिल्म फेस्टिवल के मौके पर मुलाकात हुई तो उन्होंने बताया कि कनु की शादी हो गई है और उसको एक बेटा है. मैंने उन्हें बधाई दी और सोचा कि उनसे कनु का नंबर लेकर उसे भी विश कर दूँ. फिर लगा कि सब कुछ जैसा है, वैसे ही चलता रहे; यही ज्यादा बेहतर होगा.

करीब दो साल पहले डीडी पर फोर्थ एम्पायर प्रोग्राम देखते हुए एंकर की सूरत कनुप्रिया से मिलती—जुलती लगी. बाद में क्रेडिट्स देखकर पता चला कि वह कनुप्रिया ही है. बस सरनेम विमल की जगह सहगल हो चुका था. बहुत अच्छा लगा...पिछली बहुत सारी बातों की यादें ताजा हो आईं. सोचा कि अबकी बार दिल्ली जाना हुआ तो उन सबसे मिलूंगा. लेकिन यह न हो सका और अब कभी हो भी न पाएगा, क्योंकि पिछले वर्ष 23 दिसंबर को श्रीलंका में हुई एक सड़क दुर्घटना में नियति के क्रूर हाथों ने सबको हमसे छीन लिया. डॉ. विमल को, कनुप्रिया को और उसके मासूम बेटे को... अमिट स्मृतियों के साथ सभी को भावभीनी श्रद्धांजलि!

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