Sunday, December 6, 2020

बातें—मुलाकातें: 32(शेखर कपूर)

शेखर कपूर एक ऐसे प्रतिभाशाली निर्देशक हैं, जिन्हें हम मासूम जैसी संवेदनशील फिल्म के लिए भी याद कर सकते हैं और मि. इंडिया जैसी विशुद्ध मनोरंजक फिल्म के लिए भी. बैंडिट क्वीन और एलिजाबेथ व एलिजाबेथ : द गोल्डन एज जैसी अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त फिल्मों के लिए भी सराह सकते हैं और टाइम मशीन व पानी जैसी महत्वाकांक्षी फिल्मों के लिए भी, जिन्हें वे दशकों से बनाना चाहते हैं, लेकिन नहीं बना पा रहे हैं. अगर तारीफ न करनी हो तो जोशीले जैसी बेहूदा फिल्म के लिए कोस भी सकते हैं. लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि वे एक बेहद साहसी व प्रतिभाशाली निर्देशक और संवेदनशील अभिनेता हैं. यह एक अलग बात है कि पिछले कई सालों से वे काम से ज्यादा विवादों और अपने बेबाक ट्वीट्स की वजह से खबरों में रहते हैं. उन्होंने जितनी मूवीज डायरेक्ट की हैं, उससे ज्यादा कुछ इस हिस्सा डायरेक्ट करके बीच में छोड़ी हैं, क्योंकि एक डायरेक्टर को जितनी क्रिएटिव लिबर्टी का अधिकार है, वह उससे कोई कम्प्रोमाइज नहीं करना चाहते. 



मेरी उनसे मुलाकात इंटरनेशल फिल्म फेस्टिवल में बैंडिट क्वीन के मौके पर हुई थी. उनकी फिल्म का प्रीमियर था. उस समय वेबसीरीज का कॉन्सेप्ट नहीं था और सेंसर बोर्ड की कैंची की धार कुछ ज्यादा ही तेज हुआ करती थी. इसके बावजूद फिल्म में शारीरिक व शाब्दिक हिंसा भरपूर थी और नग्न दृश्य भी. जो उस समय के दर्शकों के लिए वाकई एक अभूतपूर्व अनुभव था. 

फिल्म के बाद शेखर की प्रेस कॉन्फ्रेंस थी. मैंने इसलिए फिल्म को कुछ ज्यादा ही ध्यान से देखा कि कहीं कोई ऐसी चीज मिले, जिसके आधार पर उन्हें घेरा जा सके. और मैंने एक ऐसी गलती पकड़ ही ली. 

फिल्म के तुरंत बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस शुरू हुई. सब लोग फिल्म से संबंधित रूटीनी सवाल पूछते रहे. मैं शां​ति से बैठा रहा और उन्हें इससे भी ज्यादा शांति से सवालों के जवाब देते हुए देखता रहा. कॉन्फ्रेंस खत्म होने के बाद मैं उनके पास पहुँचा और उन्हें अपना परिचय देते हुए बोला कि मुझे उनसे कुछ बात करनी है. उन्होंने मेरी ओर हाथ बढ़ाया और बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाते हुए बोले कि पूछिए, क्या पूछना है. 

मैंने कहा कि मुझे प्रेस कॉन्फ्रेंस में सबके सामने यह बात पूछना ठीक नहीं लगा, लेकिन मेरा सवाल यह है कि इस फिल्म में आपने फूलन देवी के बेहमई गांव पर हमले वाले सीन में डेट टैग तो 14 फरवरी 1981 का लगाया है, लेकिन गांव में पोस्टर मेरा करम, मेरा धरम मूवी का लगा है, जो 1987 में रिलीज हुई थी. 

कोई और डायरेक्टर होता तो या तो बगले झांकने लगता, या फिर सवाल का जवाब दिए बिना बचकर निकलने की कोशिश करता. लेकिन शेखर कपूर मुस्कराए और बिना वक्त गंवाए मुझे बधाई दी कि आपका आॅब्जर्वेशन बड़ा माइन्यूट है. फिर उन्होंने बताया कि जिस समय शूटिंग चल रही थी, हमने लड़के को मेरा गांव मेरा देश फिल्म का पोस्टर लाने के लिए भेजा था. वह गलती से इस फिल्म का पोस्टर ले आया, क्योंकि वो भी धर्मेन्द्र की फिल्म थी और ये भी. इसलिए हमें लगा कि शूटिंग को रोकने के बजाए, इसी का यूज कर लेते हैं. 

मैंने उनसे पूछा कि आप कहाँ रुके हुए हैं, मैं आपका इंटरव्यू करना चाहता हूँ. तो उन्होंने बताया कि उनके पैरेंट्स दिल्ली में ही रहते हैं महारानी बाग में. वे वहीं रुके हैं. उन्होंने मुझे अपना फोन नंबर दिया और कहा कि कल आ जाइए, फोन करके. अगले दिन जब मैंने उन्हें फोन किया ​तो उन्होंने बताया कि वे अभी बॉम्बे जा रहे हैं. पर नेक्स्ट टाइम इंटरव्यू जरूर कर लेंगे. इसके बाद मैंने कई बार उनके घर पर कॉल किया, लेकिन वह नेक्स्ट टाइम कभी नहीं आया. 

आज उनके 75 वें जन्मदिन पर ढेर सारी बधाईयां. इस उम्र में भी वे बेहद ​सक्रिय हैं और आज भी कई बड़ी लेखकीय व निर्देशकीय ​परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं. उनके सपने पूरे हों तथा हमें कुछ और बेहतरीन चीजें देखने को मिलें, यही हमारी हार्दिक शुभकामना है.

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