Tuesday, December 8, 2020

बातें—मुलाकातें: 34 (शत्रुघ्न सिन्हा)

शत्रुघ्न सिन्हा जी से मेरा संबंध काफी लंबा रहा है. बहुत निकटता तो नहीं, लेकिन अनौपचारिकता बहुत थी इसमें. उनके साथ यादों का पिटारा इतना बड़ा है कि उनका विस्तार से परिचय देने की कोई गुंजाइश नहीं है... वैसे भी उनका परिचय देने की जरूरत ही क्या है? शायद ही कुछ ऐसा हो, जो उनके बारे में लोगों को न पता हो. फिर भी उनके साथ मुझे जो महूसस हुआ, वह यहाँ साझा जरूर करना चाहूंगा.



शत्रुघ्न सिन्हा, एक ऐसी स्टार शख्सियत , जिसे फिल्म इंडस्ट्री का सबसे फायरी एक्टर और राजनीति का सबसे मुंहफट पाॅलिटिशियन माना जाता रहा है. लेकिन, रीयल लाइफ में वह एक ऐसे इंसान है, जिसमें विनम्रता, धैर्य और मिलनसारिता कूट-कूट कर भरी है. वह नाम के शत्रु हैं, लेकिन असल में बहुत अच्छे मित्र हैं. सिन्हा की...बीइंग ए जर्नलिस्ट, मैं अब तक जिन 60-70 सेलिब्रिटीज से मिला हूँ, उनमें किसी के व्यवहार से इतना प्रभावित नहीं हुआ, जितना कि शत्रु साहब के. इंटरव्यू के सिलसिले में मेरी दो बार उनसे लंबी मुलाकात हुई है और करीब एक दर्जन बार फोन पर बातचीत हुई है...और हर बार उनका रिस्पाॅन्स बहुत गर्मजोशी भरा रहा है. न कोई ईगो, न कोई खीझ... मेरे हर कड़वे से कड़वे सवाल का जवाब उन्होंने बहुत सब्र के साथ दिया है.
हमारी पहली मुलाकात उन दिनों हुई, जब वह भाजपा से राज्यसभा सांसद थे और दिल्ली के सफदरजंग एन्क्लेव इलाके में रहते थे. मैंने इंटरव्यू के लिए उन्हें कॉल किया तो उनके तत्कालीन सचिव प्रदीप माथुर ने फोन उठाया. बिना किसी विलंब के उन्होंने मेरी सिन्हा साहब से बात करा दी.स्क्रीन पर सुनी आवाज को पहली बार रीयल में सुनना वाकई एक शानदार अनुभव था. उन्होंने मुझे अगले दिन बारह बजे आने का समय दे दिया.
अगले दिन जब मैं उनके घर पहुंचा तो माथुर जी से पता चला कि वे तैयार हो रहे थे, क्योंकि रात भर वहां लाइट गायब थी और साहब सुबह तक सो नहीं पाए थे. मैं इंतजार करने लगा और माथुर जी के साथ ही गुफ्तगू करने लगा. करीब दो घंटे बाद शत्रु जी का आगमन हुआ और उन्होंने आते ही देरी के लिए क्षमा मांगी. मैंने हँसते हुए कहा कि कोई बात नहीं आप तो वैसे ही लेटलतीफी के लिए मशहूर रहे हैं...
‘मशहूर नहीं, बदनाम कहिए...’ एक जोरदार अट्टहास के साथ उनका जवाब मिला, और फिर उन्होंने कहा कि आप दो घंटे से इंतजार कर रहे हैं और आपने खाना तो खाया नहीं होगा. इसलिए जब तक आप खाना नहीं खाएंगे मैं आपको इंटरव्यू नहीं दूंगा. मैंने तब तक एक उसूल बनाया हुआ था कि जिसके यहां इंटरव्यू के लिए जाता था, उसकी चाय तक नहीं पीता था ताकि सवालों की तल्खी कहीं मंद न हो जाए. यह पहली बार था, जब उनके अपनत्व भरे आग्रह के आगे मैं इंकार नहीं कर पाया.
खाने के बाद लंबी बातचीत हुई, जिसमें काफी कुछ आप यहाँ दिए गए इंटरव्यूज में पढ़ सकते हैं. बाकी जो नहीं छपा, उसमें से सब तो नहीं, फिर भी जितना मुमकिन और मुनासिब है, उसे पेश करने की कोशिश करूंगा.
उन्होंने अपने लिए फीकी ब्लैक कॉफी मंगाई तो मैंने पूछा कि आप बिना चीनी की कॉफी पीते हैं, फिर भी आपके स्वभाव में इतनी मिठास कैसे है तो उन्होंने हँसते हुए बताया कि ज्यादा मीठा कड़वाहट पैदा करता है, इसलिए मैं ब्लैक कॉफी पीता हूँ ताकि मिठास बैलेंस रहे.
मैं उनके बारे में काफी होमवर्क करके गया था, इसलिए सवाल—जवाब के बीच कई ऐसे सवाल थे, जो काफी आक्रामक और विचलित करने वाले थे. जैसे कि मैंने उनसे पूछा कि आप एक अभिनेता के तौर पर खुद को कितने मार्क देंगे, तो उनका कहना था कि ये तो वही बात हुई कि वकील भी मैं, जज भी मैं और जल्लाद भी मैं... ये तो आप लोग तय करेंगे. इस पर मैंने उनसे कहा कि बतौर एक अभिनेता, हर अभिनेता जिंदगी में कोई न कोई लैंडमार्क रोल जरूर करता है, जैसे कि अमरीश पुरी ने मोगंबो या अमजद ने गब्बर का किया. लेकिन, आपके खाते में कोई ऐसा यादगार रोल दर्ज नहीं है. इस पर उन्होंने चिढ़कर जवाब दिया कि यह एक्टर की नहीं, बल्कि किरदार की कामयाबी है. अगर मोगंबो का रोल परेश रावल ने या फिर मुकरी ने किया होता तो यह उतना ही हिट होता.
जब भी उनसे मिला या बात की, मैंने हर बार यही महसूस किया कि शत्रु जी हर सवाल का जवाब बहुत शांति के साथ देते थे. अगर कोई सवाल उन्हें नागवारा भी गुजरता तो भड़कने के बजाय उनका यहीं कहना होता था कि आप अच्छे आदमी हैं, जो यह पूछ रहे हैं.
बीच में उन्होंने यह कहा कि उन्होंने आज तक कोई फिल्म अधूरी नहीं छोड़ी. मैंने कहा कि मैंने भी सिर्फ एक ही फिल्म के बारे में सुना है. उन्होंने पूछा कि कौन सी तो मैंने यार मेरी जिंदगी की याद दिलाई. वह बोले कि वह मेरी वजह से बंद नहीं हुई तो मैंने पूछा कि क्या अमित जी की वजह से तो उनका जवाब था कि मैं ऐसा नहीं कहूंगा. फिर उन्होंने फिल्म के प्रोड्यूसर की मौकापरस्ती की कहानी बताई.
बातचीत के दौरान उन्होंने अमिताभ से अपनी मित्रता का एक रोचक किस्सा भी साझा किया, जिसमें वे और पूनम जी कुली की दुर्घटना के बाद अस्पताल में भरती अमित जी को देखने गए थे. उस समय तेजी बच्चन जी ने पूनम सिन्हा को आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुमने इस पति को पाने के लिए बहुत तपस्या की है. इस पर अमिताभ खांसते हुए बोले कि ऐसे पति के लिए तपस्या करने की क्या जरूरत थी.
शत्रु जी मुझे मेरी धीमी आवाज के कारण अपने पास बुला लेते थे और कहते थे कि आप दिलीप कुमार की तरह बात करते हैं, इसलिए मेरे पास आ जाइए ताकि मैं आपको ठीक से सुन सकूं. जैसे ही मेरी आवाज धीमी होती, वह तुरंत टोकते—नहीं देवदास बिल्कुल नहीं. एक दिन फोन पर मैंने उनसे कहा कि मैं देवदास बोल रहा हूँ तो उन्हें हँसी आ गई और कहा कि बोलिए देवदास जी. फिर उन्होंने समझाया कि मैं उनकी बात का बुरा न मानूं. वह यह सिर्फ इसलिए कहते हैं ताकि मेरी धीमी आवाज की वजह से सामने वाले को यह न लगे कि मुझमें आत्मविश्वास की कमी है. वह कहते थे कि आपमें बहुत विनम्रता व धैर्य है, मैं आपका बहुत उज्जवल भविष्य देख रहा हूँ.
वह अक्सर मुझे कहते थे कि मुझे अगर फिल्म पर इंटरव्यू करना है तो मुंबई आऊं. यह क्या कि शत्रुघ्न सिन्हा दिल्ली में आसानी से मिल गया तो कर लिया फिल्मी इंटरव्यू. एक बार मैंने कहा कि आसानी से नहीं मिले आप, पूरे छह महीने ट्राई किया है. इस पर उन्होंने कहा कि अरे नहीं, आपको तो मैं हमेशा बुलाता हूँ. वाकई इसमें कोई शक नहीं कि मुझे जब भी उनसे बात करने की जरूरत हुई, वह हमेशा मेरे लिए उपलब्ध रहे.
लेकिन कई फिल्मों का सीक्वल उतना अच्छा नहीं होता, जितना कि मूल फिल्म होती है. मेरे नागपुर आने के बाद, दिल्ली से जुड़े बहुत से लोगों से सम्पर्क टूट गया, उनमें शत्रु साहब भी थे.
हालांकि वह साल में एक—दो बार नागपुर आते रहते थे, लेकिन मिलने की न तो कोई वजह होती थी और न बहाना, इसलिए मैं हमेशा उनसे मिलने में एक संकोच सा महूसस करता रहा.
पिछले साल वे एक राजनीतिक कार्यक्रम के लिए नागपुर आए तो मेरे हमनाम मित्र संदीप अग्रवाल जी बोले कि चलो, आपको आपके पुराने मित्र से मिलवाते हैं. मैं जानता था कि इतने सालों बाद मिलने पर पहले जैसी गर्मजोशी य बेतकल्लुफी की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. फिर भी लगा कि एक बार मिल तो लेना चाहिए, देखते हैं कि शत्रु साहब मुझे पहचानते हैं या नहीं. और मैं उनके साथ होटल रेडिसन जा पहुँचा.
वहाँ सालों बाद अपने फेवरेट इंसान और एक्टर को देखकर एक अजीब सी अनुभूति हुई. उनके व्यक्तित्व का तेज और व्यवहार की गर्मजोशी की जगह एक तरह की अरुचि और चिड़चिड़ेपन ने ले ली थी. वक्त वाकई बहुत बेरहम होता था. एक समय जिस शेर की दहाड़ से पूरा जंगल गूंज उठता था, आज वह बेहद थका—थका नजर आ रहा था. हाथ मिलाने के बाद, मैंने उनके इंटरव्यूज की फोटो कॉपीज उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा कि ये लीजिए आपके लिए.
'क्या है ये?' उन्होंने लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाने की बजाए, भौंहे उठाते हए पूछा.
'कुछ पुरानी यादें...'
'दिखाइए...'
मैंने रोल किए हुए पेपर खोले तो उन्हें समझ में आया. उन्होंने वे कागज लेकर मेरा शुक्रिया अदा किया और उन्हें अपने सहायक को रखने के लिए देते हुए मुझसे पूछा कि आप क्या प्रोग्राम की कवरेज के लिए नागुपर आए हैं. मैंने उन्हें बताया कि मैं कई साल से यहीं रहता हूँ.
इसके बाद हम कुछ देर वहाँ बैठने के बाद उनके साथ—साथ नीचे आ गए और वहीं से विदा ली. इस दौरान जो कुछ भी महसूस हुआ, उसे यहाँ दोहराने का कोई मतलब नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि इससे काफी मुगालते कम हुए. पर यह भी सच है कि इसका मुझे कोई मलाल नहीं है. समय के साथ—साथ बहुत सारी चीजें बदल जाती हैं. जितना अपनामन, मान—सम्मान और सहयोग उनकी ओर से मुझे मिला, वह अभूतपूर्व है. इसके लिए मैं उनका शुक्रगुजार हूँ.
आज उनके 75वें जन्मदिन के अवसर पर अनगिनत बधाईयां और उनके उत्तम स्वास्थ्य, दीर्घ जीवन और सभी स्वप्नों के पूरा होने के लिए हार्दिक शुभकामनाएं.

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