Friday, November 6, 2020

बातें—मुलाकातें:29 (कमल हासन)

पत्रकारिता करते हुए बहुत सारी चीजें होती हैं जो हमारे मन के मुताबिक नहीं होतीं. किसी सेलिब्रिटीज को इंटरव्यू के लिए अप्रोच करने पर उसका इंकार एक ऐसी ही स्थिति है, जो हम आसानी से स्वीकार नहीं कर पाते. राजेश खन्ना, नाना पाटेकर, राज बब्बर, करिश्मा कपूर, टीनू आनंद, कपिल देव, मेनका गाँधी जैसी बहुत सारी हस्तियाँ हैं, जिनसे मेरी इंटरव्यू के सिलसिले में बातचीत हुई, लेकिन उन्होंने अलग—अलग वजहों से इंटरव्यू देने से इंकार कर दिया. यह इंकार एक आम सी बात है, लेकिन कई बार इंकार, खासकर ऐसे शख्स का इंकार जिसके कि आप प्रशंसक भी हों, का तरीका इतना चुभने वाला होता है कि वह आपके मन में सामने वाले की पूरी छवि ही बदल देता है. . गुलजार से जुड़े अनुभव को मैंने कुछ महीने पहले ​इसी कॉलम में साझा किया था, ऐसा ही एक और एक्सपीरिएंस मुझे कमल हासन के साथ हुआ.



कमल की अभिनय प्रतिभा के बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं है. जिन्होंने उनकी पुष्पक, सदमा, नायकन, अप्पू राजा जैसी फिल्में देखी हैं, वे जानते होंगे कि एक समय उनकी टक्कर का अभिनेता दक्षिण तो क्या, पूरे देश में नहीं था. लेकिन, बतौर एक इंसान वे कैसे होंगे,इसका अंदाजा उनकी भूमिकाओं से नहीं लगाना चाहिए.

जहाँ तक मेरे निजी अनुभव का सवाल है, उनसे मेरी मुलाकात इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के दौरान ही हुई थी, जहाँ वे अक्सर इधर से उधर भागते दिख जाते थे. ऐसे ही भागते हुए कमल हासन को मैंने टोका और कहा कि मैं आपका इंटरव्यू करना चाहता हूँ. 'अब्बी' तो नहीं, उन्होंने कहा और खिसक गए. चूंकि मैं पुष्पक देखकर उनका 'जबरा फैन' बन चुका था, इसलिए बड़ा मन था कि उनका इंटरव्यू हो जाए. इसलिए मैं पीछे लगा रहा और कुछ देर बाद फिर से उन्हें थाम लिया. उन्होंने कहा कि थोड़ी देर में बात करेंगे. इसके बाद वे दिन में कई बार आते—जाते दिखे, हर बार उनके पीछे धारावाहिक हम लोग का एक मुख्य कलाकार पूँछ की तरह लटका दिखाई दे जाता था, जिसे पता नहीं कमल से क्या फायदा मिलने वाला था. उसने मुझे बार—बार कमल को टोकते देखा तो कमल से ज्यादा ऐतराज उसे हुआ और उसने मुझे धीरे से आगाह किया कि सर गुस्सा हो जाएंगे. 

कुछ देर बाद मैंने कमल हासन को फिर से याद दिलाया कि क्या अब इंटरव्यू कर सकते हैं?

'लिसन, आई एम नॉट कम्फर्टेबल विद हिंदी' कमल ने अपना गुस्सा दबातेहुए जवाब दिया. और मुझे अवाक छोड़कर आगे बढ़ गए. कुछ देर बाद, कुछ दूरी पर वे टीवी चैनलों के पत्रकारों से घिरे उनके सवालों के जवाब देते नजर आए. मुझे उसी समय एहसास हो गया कि अब हम जैसे प्रिंट के पत्रकारों को टीवी चैनलों के पत्रकारों के मुकाबले कमतर समझे जाने का दौर शुरू हो चुका है.

उस वक्त से कमल हासन को लेकर मेरे मन में ऐसी खुन्नस पैदा हुई जो सालों तक दिल से नहीं मिटी. उनके बारे में जब भी कुछ बुरा छपता, जैसे कि अमेरिकी एयरपोर्ट पर हासन को हसन समझ लिए जाने के कारण उनकी जो फजीहत हुई उससे मुझे बड़ा दिली सुकून मिला, जो कि बहुत ही अहमकाना बात थी. जब अश्विनी भावे द्वारा उन पर दुर्व्यवहार का आरोप  लगाते हुए चाची 420 छोड़ने की खबर आई तो मुझे लगा कि वाकई एक इंसान के तौर पर उनके बारे में मेरी राय गलत नहीं है.

लेकिन, अजीब बात यह थी कि इतनी नाराजगी और चिढ़ के बावजूद मुझे उनकी फिल्में और उनका काम हमेशा बहुत अच्छा लगता था. इंडियन, चाची 420, अभय, मुंबई एक्सप्रेस, मेयर साहब, विश्वरूपम, दशावतार, हे राम जैसी फिल्में मैंने थिएटर में देखी थीं और उन्हें बहुत पसंद भी किया था. 

फिर जैसे—जैसे समझदारी बढ़ती गई, ये नाराजगी कम होती गई. उनके किए अच्छे कामों पर ध्यान देना शुरू किया तो पता चला निजी जीवन में भी उन्होंने बहुत कुछ ऐसा किया है, जो सराहे जाने लायक है. खासकर कैंसर और एचआईवी से प्रभावित बच्चों की भलाई के लिए तो उन्होंने बहुत जबर्दस्त काम किया है. वे किसी भी ब्रॅन्ड एन्डोर्समेंट में शामिल न होने के लिए जाने जाते हैं. 2015 में उन्होंने पहली बार पो​तिस नामक एक टेक्स्टाइल शो रूम को एन्डोर्स किया, साथ ही यह भी घोषणा की कि ऐसे किसी भी एन्डोर्समेंट से होने वाली आमदनी को वे एचआईवी से पीड़ित बच्चों के कल्याण के लिए डोनेट करेंगे. उन्होंने कई बार विभिन्न पुरस्कारों से प्राप्त राशि ऐसे बच्चों के लिए डोनेट की है. अपने साठवें जन्मदिन पर, 2014 में उन्होंने एक पर्यावरण संस्था के साथ मिलकर मदम्बक्कम लेक की सफाई का जिम्मा उठाया. उन्हें प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वच्छ भारत अभियान के लिए भी नॉमिनेट किया गया था. पद्मश्री, पद्मभूषण जैसे अवार्डो के अलावा फिल्मों के लिए तो उन्हें इतने सम्मान मिले हैं कि​ गिनते—गिनते थक जाएंगे. 

आज कमल जी के जन्मदिन पर उन्हें ढेर सारी शुभकामनाएं. 

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