Wednesday, November 4, 2020

बातें—मुलाकातें: 28 (इरफान)

यह कहना गैरवाजिब नहीं होगा कि इरफान कार्टूनिस्टों की सबसे समृद्ध पीढ़ी, जिसमें काक, राजेन्द्र पुरी, राजेन्द्र धोड़पकर, सुधीर दर, सुधीर तैलंग, सुशील कालरा, अजित नैनन जैसे नामचीन कार्टूनिस्ट शुमार थे, की नुमाइंदगी करने वाले, वर्तमान में सबसे सक्रिय, कार्टूनिस्ट हैं, जो आज भी हर महीने सौ से ज्यादा कार्टून बनाते हैं. तो गलत होगा. वैसे तो राजेन्द्र धोड़पकर जी और काक साहब से भी मेरे बहुत आत्मीय और अच्छे ताल्लुकात रहे, लेकिन जो अनौपचारिक रिश्ता इरफान के साथ था. वह किसी दूसरे कार्टूनिस्ट के साथ नहीं रहा.



इरफान को मैं जानता तो तब से था, जब धर्मयुग में ढब्बू जी की जगह उनके किरदार गप्पन ने ली. लेकिन पहचान दिल्ली आने के बाद हुई, जब मैं पत्रकारिता में पढ़ रहा था और मैंने कार्टून पत्रकारिता को अपने रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए चुना. इसमें मुझे नवभारत टाइम्स में छपने वाले इरफान और जनसत्ता में छपने वाले धोड़पकर जी के कार्टूनों का तुलनात्मक अध्ययन करना था. इरफान से मुलाकात हुई तो दोस्ती भी हो गई. जब मैं अपने असाइनमेंट्स देने नभाटा जाता तो फीचर वाले केबिन में देर तक उनके साथ गपशप चलती रहती.

उन दिनों वक्त की कोई कमी तो थी नहीं,  तो कई बार हम दिल्ली की सड़कों पर खाक छानने निकल पड़ते थे. इसी घुमक्कड़ी में मुझे एक दिन पता चला कि इरफान को गाने का, खासकर मुकेश के गाए गानों का, भी शौक है. उन्होंने रोहिणी में घूमते हुए मुझे बहुत सारे गाने सुनाए, जिनमें अराउंड वर्ल्ड का जोशे जवानी हाय रे हाय और रजनीगंधा का कई बार तुमको यूँ भी देखा है अभी तक याद है... मुकेश के गाने गाने का शौक मुझे इरफान से ही लगा था. इरफान म्यूजिक कैसेट्स का रिव्यू भी करते थे, वह भी कार्टून बनाने वाले अंदाज में... उफ ये मोहब्बत की कैसेट का रिव्यू करते हुए उन्होंने इसके दामन जला दिया गाने का जिक्र इस अंदाज में किया कि इसमें दामन जला दिया इतनी बार दोहराया गया है कि सुनने वाले का दिल जलने लगता है.

उनके ये पंच, उनके कार्टूनों में तो नियमित रूप से मिलते ही रहते थे. सेंसर बोर्ड पर बनाया उनका एक कार्टून मुझे अभी तक याद है, जिसमें उन्होंने सेंसर अधिकारी को अपने अधीनस्थ को निर्देश देते हुए दिखाया था कि 'इसमें पूं पूं   जगह टूं टूं और पूं पूं की जगह चूं चूं डाल दो.

कहते हैं कि कभीकभी इंसान की जुबान पर सरस्वती विराजती है. एक दिन मैं इरफान के घर गया. उन्होंने एक बात कही कि जो हमारे घर आता है, वह जीवन में इतना आगे बढ़ जाता है कि फिर कभी वह दोबारा हमारे घर नहीं पाता, तुम भी देखना काफी तरक्की करोगे.

उसके कुछ ही महीने बाद मुझे पत्रकारिता में हमारे मार्गदर्शक और संरक्षक अच्युतानंदमिश्र जी ने लोकमत समाचार में फीचर पेज संभालने के लिए नागपुर बुला लिया. बेशक बहुत ज्यादा तरक्की तो नहीं थी ये, पर इतनी जरूर थी कि फिर कभी इरफान के घर वापस जाने का मौका नहीं मिल पाया.

तीनचार साल पहले इरफान अच्युता जी के साथ नागपुर आए थे तो सेंटर पॉइंट होटल में उनसे मुलाकात हुईं. पुराने यार मिले तो पुरानी यादें ताजा हुईं. इन्हीं में से एक बात यह भी थी. मैंने इरफान से कहा कि मुझे एक बार फिर तुम्हारे घर आना पड़ेगा, कृपा रुक गई है. शायद फिर से तरक्की की राह मिल जाए.

हालांकि दिल्ली हर साल जाना होता है, लेकिन कभी इरफान के घर जाने का मौका नहीं मिल पाता. इस बार देखते हैं...

बहुत से कार्टूनिस्टों की लाइनों में धार होती है और बहुत सारे कार्टूनिस्टों के लफ्जों में... लेकिन इरफान उन खुशकिस्मत कार्टूनिस्टों में से एक हैं, जिन्हें कुदरत ने दोनो ही चीजों में तीखेपन की सौगात दी है. आज उनका जन्मदिन है, इस मौके पर हार्दिक बधाई और शुभकामना कि उनकी धार यूँ ही बरकरार रहे. 

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