Thursday, April 8, 2021

बातें-मुलाकातें: 52 (शरण रानी)

सरोदवादिका शरण रानी का नाम आम लोगों के लिए बहुत ज्यादा जाना-पहचाना न भी हो, लेकिन संगीत के रसिकों की नजरों में उन्हें वही स्थान व सम्मान प्राप्त है, जो पं. रविशंकर, पं. भीमसेन जोशी जैसे संगीत दिग्गजों को मिला हुआ है. 


शरण रानी से मेरी मुलाकात तब हुई थी, जब मैं दैनिक भास्कर के फीचर विभाग में था और धर्म-संस्कृति पृष्ठ के लिए अलग-अलग क्षेत्रों की प्रसिद्ध हस्तियों के छोटे-छोटे साक्षात्कार लिया करता था. आकार में 200-250 शब्दों तक सीमित होने की वजह से ये इंटरव्यू अधिकतर फोन पर ही निपट जाते थे. लेकिन, जब मैंने शरण रानी को कॉल किया तो वे बोली कि फोन पर क्या इंटरव्यू करेंगे. आ ही जाइए, हमें भी अच्छा लगेगा और आपको भी. उनकी इस विनम्रता से अभिभूत होकर मैंने उनसे पूछा कि यह तो और भी अच्छा रहेगा. आप बताएं कि मैं कब आ सकता हूँ. उन्होंने अगले दिन दोपहर में बुला लिया.

निर्धारित समय पर मैं उनके घर पर जा पहुँचा, तो उन्होंने बड़े स्नेह से मेरा स्वागत किया. उस समय उनकी उम्र करीब 73 साल की रही होगी. लेकिन उनकी चुस्ती-फुर्ती और चेहरे की आभा देखकर लगता ही नहीं था कि वे इतनी ज्यादा उम्रदराज हो सकती हैं.

बहरहाल, इंटरव्यू हुआ. इंटरव्यू के बाद उन्होंने चाय मँगा ली. चाय पीते-पीते मुझे खुराफात सूझी और मैंने उनसे कहा कि मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूँ, हालांकि इसका इस इंटरव्यू से कोई संबंध नहीं है. फिर भी मैं अपनी जानकारी के लिए पूछना चाहता था.

दरअसल, जब मैंने कुछ साल पहले उस्ताद अमजद अली खाँ का इंटरव्यू किया था तो मेरे एक मित्र ने बताया था कि सरोद को लेकर उनके और शरण रानी बकलीवाल के बीच शीत युद्ध छिड़ा रहता है. उस्ताद का कहना है कि सरोद उनके पुरखों की देन है, जबकि शरण रानी ने एक पूरी किताब लिखकर यह साबित किया है कि यह भारत में हजारों साल से मौजूद रहा है.

मैंने शरण रानी से यही सवाल पूछा कि सरोद की जड़ें कहाँ हैं. इस सवाल के जवाब में वे बोलीं कि एक मिनट रुकिए और वे अंदर गईं तो उनके हाथ में एक बड़ी सी किताब थी, द डिवाइन सरोदः इटस ओरिजिन, एंटिक्विटी एंड डेवलपमेंट. उन्होंने मुझे इसका एक-एक पृष्ठ दिखलाना शुरू किया, जिसमें अनेक प्राचीन भारतीय मूर्तिशिल्पों में सरोद बजाते कलाकार दिखाई दे रहे थे. उन्होंने फिर मुझे समझाया कि उस्ताद का यह कहना कि सरोद उनके पुरखे लेकर आए थे, तथ्यों और साक्ष्यों के विपरीत है. प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या, मैंने उनकी बात से सहमति जताई और इस ज्ञानवर्द्धन के लिए उनका धन्यवाद कर उनसे विदा ली. 

संस्मरण खत्म करने से पहले शरण जी के बारे में कुछ और बातें जो हमें जान लेनी चाहिए, वो ये हैं कि उन्हें साज बजाने का नहीं बल्कि इकट्ठा करने का भी काफी शौक रहा. उनके निजी संग्रह में 15 वीं से 19वीं सदी के 379 वाद्ययंत्र थे, जिन्हें उन्होंने दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय को दान कर दिया था. वर्तमान में ये वहाँ एक गैलरी में स्थायी रूप से प्रदर्शित किए गए हैं, जिसे शरण रानी बकलवाल गैलरी ऑफ म्यूजिकल इन्स्ट्रुमेंट्स नाम दिया गया है.

उस्ताद अलाउद्दीन खान और उनके पुत्र अली अकबर खान से सरोद सीखने वाली शरण रानी ने पं.अच्छन महाराज से कथक और नभ कुमार सिन्हा से मणिपुरी नृत्य की भी शिक्षा ली थी. करीब छह दशकों तक सरोद के माध्यम से श्रोताओं के हृदय को झंकृत करने वाली शरण रानी यूनेस्को के लिए रिकॉर्ड कराने वाले शुरुआती संगीतज्ञों में से एक थीं. पं. जवाहरलाल नेहरू उन्हें भारत की सांस्कृतिक दूत मानते थे. गुरु-शिष्य परंपरा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने संगीत सीखने के इच्छुक अनेक विद्यार्थियों को अपने घर में रखकर संगीत सिखाया और वे कभी इसके लिए किसी से कोई फीस नहीं लेती थीं.

2004 में भारत सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय कलाकार की उपाधि प्रदान की, जिसे पाने वाली वह पहली महिला संगीतज्ञ थीं.  

आज उनकी 13वीं पुण्यतिथि है. अपने 80 वें जन्मदिन से एक ही दिन पहले इस संसार को विदा कहने वाली शरण रानी की धुनें आज भी असंख्य संगीत प्रेमियों के दिल को झंकृत कर रही हैं. इस अवसर पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि...


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