Wednesday, April 21, 2021

बातें-मुलाकातें: 53 (शकुंतला देवी)

मानव कम्पयूटर के रूप में विख्यात शकुंतला देवी की आज आठवीं पुण्यतिथि है. वह बेशक हम लोगों के बीच नहीं हैं, लेकिन उनसे जुड़े कई किस्से अभी भी लोगों को उनकी याद दिलाते हैं. खासकर उन्हें, जो ऐसे किस्सों के किरदार भी रह चुके हैं. 



ऐसे ही एक किस्से में एक पैसिव भूमिका मेरे हिस्से में भी आई थी. शकुंतला देवी से मेरी मुलाकात बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना वाली शैली की ही थी, जिसमें न मुझे उनसे मिलना था और न ही कोई बात करनी थी.. हुआ यह कि मेरे एक मित्र हैं राजेश मित्तल जो वर्तमान में संडे नवभारत टाइम्स के संपादक हैं और उस समय नभाटा की फीचर टीम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे, मैं नियमित रूप से उनसे मिलता रहता था. 


एक दिन मैं राजेश से  मिलने से  नभाटा पहुँच गया तो पता चला कि उन्होंने शकुंतला देवी से मिलने का वक्त लिया.हुआ है.वह मुझसे बोले कि तुम भी साथ चलो तो तुम्हारा भी मिलना हो जाएगा. मुलाकात का वक्त था, दोपहर के एक बजे. हम ठीक वक्त पर बंगाली मार्केट, दिल्ली स्थित उनके ऑफिस पहुँच गए.


रिसेप्शन पर एक लड़की मौजूद थी. राजेश ने उसे अपना परिचय दिया तो वह अंदर गई और लोटकर हमें थोड़ा रुकने को कहा. पाँच मिनट बीत जाने के बाद हमें बेचैनी होने लगी और जब इंतजार करते-करते दस मिनट बीत गए तो हमने उसे याद दिलाया कि मैडम को एक बार फिर जाकर बताए कि हम इंतजार कर रहे हैं.


इस बार वह वापस आई तो उसने कहा कि जाइए, मैडम आपको बुला रही हैं. हम लोग जैसे ही उनके रूम में पहुँचे, उन्होंने हमारी क्लास लेनी शुरू कर दी कि जब आपको एक बजे का टाइम दिया था तो आप दस मिनट देर से क्यों आए. राजेश ने उन्हें बताया कि हम तो एक बजे से ही रिसेप्शन पर वेट कर रहे थे. आपकी रिसेप्शनिस्ट ने ही हमें रुकने के लिए कहा था. 

इस पर उनका जवाब था कि आपको मैने बुलाया था, तो आप उसके कहने पर बाहर क्यों रुके. 


हम अपना पक्ष रख रहे थे कि वह थीं कि सुनने को ही तैयार नहीं हो रही थीं. ऐसा लगता था कि जैसे हमें नीचा दिखाकर उन्हें बहुत संतुष्टि मिल रही हो. मैंने धीरे से राजेश से कहा कि इसका इंटरव्यू मत करो, यह इस  लायक नहीं है कि इसे इतना महत्व दिया जाए. अब आलम यह था कि वह बोले जा रही थीं ओर मैं राजेश को बार-बार इशारा कर रहा था कि छोड़ो इसे, हमें यहाँ से चलना चाहिए.


कुछ देर तक बक चुकने के बाद जब वह थक गईं तो बोली कि पूछिए, आप क्या पूछना चाहते हैं. पर तब तक हम उनके बारे में इतना जान चुके थे कि और ज्यादा जानने की जरूरत ही नहीं रह गई थी.. और हम उनका इंटरव्यू किए बिना ही चले आए.


2020 में उनकी लाइफ पर शकुंतला नाम की एक मूवी आई, जिसमें उनके व्यक्तित्व के अनेक पहलुओं में एक पहलू यह भी शामिल था कि वे दूसरों को, खासकर पुरुषों को, तकलीफ पहुँचाकर बहुत सुकून महसूस करती थीं. यह जानकर मुझे उस मुलाकात की याद आ गई.


कहते हैं कि इंसान के जाने के बाद उसकी बुराइयां भी उसके साथ चली जाती हैं. इसलिए हमें सिर्फ उसे उसकी अच्छाईयों के लिए ही याद करना चाहिए. उनमें भी बहुत सी अच्छाइयां भी थीं. जैसे कि 1977 में उन्होंने होमोसेक्सुअलिटी जैसे विषय पर तब एक किताब लिखी, जब तरह के विषयों पर चर्चा अच्छा नहीं माना जाता था. इस किताब के लिए उन्हें काफी आलोचना का भी सामना करना पड़ा. लेकिन, 1982 में जब अपनी फास्ट कैलकुलेशन के लिए उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया गया तो वे देश का सिर गर्व से ऊंचा कराने वाली एक नायिका के रूप में जानी गईं. एक और दिलचस्प बात, जो उनके बारे में बहुत ज्यादा लोग नहीं जानते, उन्होंने 1980 में लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था. जानते हैं किसके खिलाफ? तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के खिलाफ. वह आंध्र प्रदेश के मेडक लोस क्षेत्र से चुनाव लड़ी थीं. उनका कहना था कि वे नहीं चाहतीं कि क्षेत्र की जनता श्रीमती गाँधी के द्वारा और बेवकूफ बने. वे जीती तो नहीं, लेकिन उन्हें छह हजार से ज्यादा वोट मिले और वे नौवें स्थान पर रहीं. नंबरों के अलावा एस्ट्रोलॉजी और कुकिंग में भी उनकी काफी रुचि थी और उन्होेंने इन तीनों विषयों पर दर्जनों किताबें लिखीं. 


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