Friday, February 12, 2021

बातें-मुलाकातेंः 43 (रजत कपूर)

पत्रकारिता करते हुए आप हमेशा अपने मकसद में कामयाब होते नहीं रह सकते. लेकिन जब नाकामी की वजह आपका अहमकानापन हो तो बात कुछ ज्यादा ही कचोटती है.


मुझे भी इसका अनुभव हुआ है, जिसके लिए मैं आज भी अफसोस करता हूँ. बात तब की है जब रजित कपूर दूरदर्शन के धारावाहिक व्योमकेश बख्शी से एक बड़े स्टार बन चुके थे और श्याम बेनेगल की सूरज का सातवां घोड़ा से हिंदी फिल्मों में भी एक जाना-पहचाना चेहरा बन गए थे. इसी फिल्म के लिए उन्हें अपने बेहतरीन अभिनय के लिए नेशनल अवार्ड मिला था, तो उनका नाम और भी व्यापक स्तर पर मशहूर हुआ. सारी कहानी इसी नाम के इर्दगिर्द घूमती है. अमूमन हम हिंदी मीडिया वाले विदेशी नामों को लेकर एकमत नहीं हो पाते कि इसे कैसे लिखा जाए, जैसे कि गोर्वाच्योफ और गोर्बाच्योब के कन्फ्यूजियन से हमारी पत्रकार मित्रमंडली इतना तंग आ गई थी कि उन्हें गड़बड़चो... बोलने लग गई थी. लेकिन, रजित कपूर तो एक देशी नाम था फिर भी हिंदी के दर्शक और अखबार उन्हें रजत कपूर ही समझते-बोलते और लिखते थे. उन्हें भी क्यों दोष दिया जाए, जब दूरदर्शन पर धारावाहिक के क्रेडिट्स तक में भी उनका नाम रजत कपूर ही लिखा होता था.
एक राष्ट्रीय दैनिक में छपे समाचार से पता चला कि रजत (असल मे रजित) कपूर अपना नेशनल अवार्ड लेने दिल्ली आए थे.. यह खबर फिल्म बीट देख रहे एक वरिष्ठ पत्रकार ने लिखी थी, जो आजकल एक बड़े अखबार के समूह संपादक हैं. उन्होंने खबर में लिखा था कि अभिनेता रजत कपूर ने निर्देशन के क्षे़त्र में भी हाथ आजमाया है और उनके वृत्तचित्र तराना को सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री का पुरस्कार मिला है.
मैंने पता निकाला कि वे कनिष्क होटल में रुके हैं. हमने होटल कॉल किया और रजत जी से मिलने का समय ले लिया. कुछ देर बाद मैं होटल जा पहुँचा और रिसेप्शन पर उनके बारे में पूछा. थोड़ी ही देर में रजत कपूर (भेजा फ्राई फेम) रिसेप्शन पर आ गए और रिसेप्शनिस्ट से कुछ पूछा. उसने मेरी ओर इशारा कर दिया. रजत ने मुझसे हाथ मिलाया और वहीं लॉबी में बैठकर मुझसे बातचीत करने लगे. मैं उन्हें पहचानने की कोशिश कर रहा था कि ये रजत कपूर तो नहीं लग रहे. फिर लगा कि कई लोग पर्दे पर और रीयल लाइफ में काफी अलग दिखते हैं,
शायद यह भी इसी वजह से हुआ हो. लेकिन, दो तीन सवालों के बाद ही हम दोनों को एहसास हो गया कि यह सही जगह पर गलत आदमी का मामला है. उन्होंने मुझसे पूछा भी कि कहीं आप गलत आदमी का इंटरव्यू तो नहीं कर रहे, मैं चाहकर भी स्वीकार नहीं कर पाया कि मैं गलती कर रहा हूँ और इंटरव्यू जारी रखा. हालांकि मेरा अब इंटरव्यू में बिल्कुल मन नहीं लग रहा था, क्योंकि जिस शख्स का इंटरव्यू मैं करने आया था, मेरे सामने वह नहीं था और जिसका इंटरव्यू मैं कर रहा था, वह न जाने कौन था. हालांकि बातचीत से इतना तो पता लग ही गया था यह रजत कपूर भी एक्टर-डायरेक्टर थे और थिएटर करते थे. बेमन से किए गए इस इंटरव्यू का वही हश्र हुआ, जो अपेक्षित था. मैंने न उसे लिखा और न छपने दिया.
अब आप समझ गए होंगे कि मैं किस रजत कपूर की बात कर रहा हूँ.. आज वह पैरेलल-कम-कमर्शियल सिनेमा में एक जाना-पहचाना नाम बन चुके हैं और शायद पहले वाले रजत सॉरी रजित कपूर से ज्यादा व्यस्त होंगे. जब भी मैं उनकी कोई फिल्म देखता हूँ, मुझे उनके साथ मुझसे अनजाने में हुई नाइंसाफी याद आ जाती है. हालांकि मैं अगर इंटरव्यू लिखकर दे भी देता तो मेरा सपना कॉलम की शर्तों के मुताबिक इसका छपना मुश्किल ही था, लेकिन कम से कम मुझे तो अपना काम करना चाहिए था. इस पूरे प्रकरण में एक दिलासा देने वाली यह बात जरूर हुई कि उन दिनों इंडिया का पहला एडल्ट टीवी चैनल 21 प्लस लॉन्च किए जाने की खबरें थीं तो इस पर मैंने एक परिचर्चा प्लान कर रखी थी. मैंने रजत कपूर से एक निर्देशक की हैसियत से उनके विचार पूछ लिये थे. जब परिचर्चा लिखकर दी तो उनके विचार भी उसके अंतर्गत छप गए. लेकिन मेरे गिल्ट को कम करने के लिए यह नाकाफी ही था.
दो-तीन साल पहले व्योमकेश वाले रजित कपूर को एक कार्यक्रम में नागपुर बुलाया गया था. सोचा कि उनसे जाकर यह अनुभव साझा करूँ, फिर लगा कि यह एक और बेवकूफी होगी, इसलिए इस इरादे को तभी किनारे कर दिया.
आज रजत के जन्मदिन पर अपनी इस मूर्खता के लिए क्षमाप्रार्थना के साथ उन्हें असंख्य शुभकामनाएं...

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