Tuesday, January 5, 2021

बातें-मुलाकातें: 39 (ओम पुरी)

दूर के ढोल सुहावने होते हैं. लेकिन अभी जिस ढोल की मैं बात करने जा रहा हूँ, उसमें मुझे पोल ज्यादा नजर आई.



जी हाँ, यह मामला भारत के महान अभिनेता दिवंगत ओम पुरी से जुड़ा है. इसमें कोई शक नहीं कि एक अभिनेता के तौर पर उन्होंने जो मानक स्थापित किए, उन्हें छू पाना लगभग हर अभिनेता के लिए असंभवप्रायः ही है. अमिताभ जी के बाद ओम पहले ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने बिना खूबसूरत चेहरे के, सिर्फ अपनी प्रतिभा के बूते सितारा हैसियत हासिल की.
अपनी भूमिका में घुल जाने में उन्हें जैसे महारत हासिल थी, चाहे वह कॉमेडी हो, खलनायकी हो, चरित्र भूमिका हो या विद्रोही नायक, ओम हर भूमिका के साथ इस तरह आत्मसात हो जाते थे कि वे ओम से ज्यादा किरदार नजर आते थे. लेकिन, एक अच्छे इंसान के तौर पर उनके बारे में मेंरी राय खराब तो नहीं, लेकिन बहुत अच्छी भी नहीं है.
उन दिनों मैं कुछ अर्सा के लिए मुंबई घूमने गया था. नवभारत टाइम्स में मेरा कॉलम उन दिनों शबाब पर था. मुंबई पहुँचा तो लगा कि अब तो समुंदर करीब है, बहुत सारे कलाकारों से बात करने का मौका मिलेगा. लेकिन, यह गलतफहमी जल्दी ही दूर भी हो गई. उल्टे दिल्ली में सितारों को थामना बहुत आसान था. खैर, बात ओम पुरी की हो रही थी. मैंने टेलीफोन डायरेक्टरी में उनका नंबर ढूंढकर कॉल लगाया. हैलो सुनते ही समझ में आ गया कि फोन उन्होंने ही उठाया था. मैंने अपना परिचय दिया और कहा कि मैं दिल्ली से आया हुआ हूँ, फिल्म जर्नलिस्ट हूँ और आपका एक छोटा सा इंटरव्यू करना चाहता हूँ.
उन्होंने कहा कि कल सुबह 11 बजे नटराज स्टुडियो आ जाइए. निहलानी की फिल्म का मुहूर्त है, वहीं बात कर लेंगे. मेरे यह पूछने पर कि नटराज स्टुडियो कहा हैं, उन्होंने उलाहना दिया कि कैसे फिल्म जर्नलिस्ट हैं आप, नटराज स्टुडियो भी नहीं मालूम. मैंने कहा कि मैं दिल्ली में रहता हूँ तो उन्हें याद आ गया और बोले कि अरे हाँ, आप तो दिल्ली में रहते हैं. ऐसा कीजिए कि आप अंधेरी ईस्ट में उतर जाइएगा. वहीं से ऑटो पकड़ लीजिएगा. वह साढ़े तीन रूपए लेगा ओर आपको नटराज स्टुडियो छोड़ देगा.
अगले दिन ठीक पौन ग्यारह बजे मैं अपने एक स्थानीय मित्र के साथ नटराज स्टुडियो पहुँच गया. गोविंद निहलानी की इस मूवी का नाम था तक्षक. मुहूर्त के लिए कलाकारों का आना शुरू हो चुका था. अमरीश पुरी, अजय देवगन, तब्बू, राहुल बोस, ए.के.हंगल, डैनी, पंकज कपूर जैसे कई सितारे वहाँ आए हुए थे. लेकिन मेरी आँखें तो ओम पुरी को तलाश रही थीं. जब तक वह आए, तब तक आशीष विद्यार्थी, मीता वशिष्ठ जैसे पुराने वाकिफकारों के साथ फिर से मुलाकात कर ली.
मुहूर्त सम्पन्न हुआ. जैसे ही ओम पुरी नजर आए, मैं उनके पास पहुँचा और अपना परिचय देते हुए उनसे इंटरव्यू के बारे में पूछा. वह बिना कोई जवाब दिए आगे बढ़ गए. मुझे लगा कि शायद वह भूल गए होंगे, फिर से उनके पा जाकर उन्हें याद दिलाया कि आपने ही मुझे यहाँ इंटरव्यू के लिए बुलाया था.उन्होंने मुझे देखा, लेकिन शायद उन्हें शक्ल से मैं पत्रकार नहीं लगा और वे बिना कोई जवाब दिए फिर से दूसरी ओर बढ़ गए.
इसी दौरान मैंने एक चीज नोटिस की कि अंग्रेजी की एक सेलेब्रिटी और सोशलाइट राइटर उनके इर्दगिर्द मंडरा रही थी. वह कभी उनकी पीठ सहलाती, कभ सिर पर धौल जमा देती... मैं समझ नहीं पा रहा था कि वह मुझसे भाग रहे हैं, या उस लेखिका से. ईमानदारी की बात तो यही है कि ओम पुरी ने अपने व्यवहार से उस दिन मुझे बहुत निराश किया और मेरे नाकाम वेंचर्स में एक नाम ओम पुरी का भी जुड़ गया.
हमारे समाज में किसी के मरने के बाद उसकी निंदा न करने का चलन है, लेकिन 2017 में ओम पुरी की संदेहास्पद मृत्यु के बाद उनके कारनामों के बारे में जिस तरह से कई दिनों तक पढ़ने को मिलता रहा, उससे यही पता चला कि वे वाकई बहुत पहुँची हुई चीज थे.
बहरहाल, आज ओम की पुण्यतिथि है. इस मौके पर उनकी अच्छाईयों और ईमानदार स्वीकरोक्तियों के याद करते हुए उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि. एक अभिनेता के तौर पर वह भारतीय सिनेमा की एक ऐसी धरोहर थे, जिसे खोने का सिर्फ अफसोस ही किया जा सकता है.

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