इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल एक ऐसा मौका होता है, जहाँ आठ-दस दिनों में बहुत सारी फिल्मी हस्तियां एक ही जगह पर मिल जाती हैं. गोवा जाने से पहले यह आयोजन हर तीसरे साल दिल्ली के सीरीफोर्ट के आॅडिटोरियम्स में हुआ करता था. तीनो आॅडिटोरियम के बीच इतना फासला था, जिसे तय करते हुए किसी न किसी से मुलाकात हो ही जाती थी. ऐसे ही एक मौके पर मुझे पवन मल्होत्रा मिल गए. ब्राउन कलर का चमकीला ब्लेजर और व्हाइट पैंट....उस समय उनका बाघ बहादुर और नुक्कड़ की वजह से काफी नाम था... और मेरा नवभारत टाइम्स में अपने काॅलम 'मेरा सपना' की वजह से. मैंने उन्हें जाकर अपना परिचय दिया और कहा कि मैं आपका इंटरव्यू करना चाहता हूँ.
पवन ने कहा कि आप कर सकते हैं, लेकिन मैं पहले ही आपको बता देता हूँ कि मुझसे आपको अच्छी काॅपी नहीं मिलने वाली. मैं उस समय काफी मुंहफट था, बोल दिया कि आपने हँस के नीर-क्षीर विवेक के बारे में तो सुना ही होगा, तो आप सिर्फ मेरे सवालों के जवाब देते जाइए, जो काम की चीजें होंगी, मैं खुद छाँट लूँगा. उस वक्त वह चाय का कप हाथ में लिए हुए थे. उन्होंने मुझसे पूछा कि आप कुछ पीएंगे, चाय या काॅफी? मैंने विनम्रता से मना कर दिया. फिर वहीं खड़े-खड़े उनसे करीब 15 मिनट बात हुई.
उनके डराने के बावजूद इंटरव्यू काफी अच्छा रहा. कई साल बाद जब उनका नंबर मिला तो मैंने उन्हें भी इस इंटरव्यू की काॅपी व्हाट्स एप्प पर भेजी, तो उन्हें बहुत अच्छा लगा. आज उनका जन्मदिन है, अच्छी बात यह है कि वे आज भी उसी पुरानी ऊर्जा के साथ लगातार सक्रिय हैं. यह सक्रियता और ऊर्जा लगातार बनी रहे, इसी शुभकामना के साथ यह इंटरव्यू यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ. आप भी पढ़िए और उनके साथ हवा में उड़ते हुए जमीन की हरियाली का दीदार कीजिए....
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