Sunday, July 12, 2020

बातें-मुलाकातें: 4 (नाम न पूछो)

एक बड़े प्रसिद्ध गायक हैं. अपने दौर में वे और भी ज्यादा प्रसिद्ध थे. जैसे शिकारी शिकार ढूंढता फिरता है, वैसे ही हम फ्री-लांस जर्नलिस्ट की तरह सेलिब्रिटीज ढूंढते हैं. ऐसे ही ढूंढते-ढूंढते पता चला कि वह गायक एक स्टारनाइट के लिए दिल्ली आए हैं, जहाँ प्रोग्राम के बाद वह होटल रंजीत में ठहरने वाले थे. मैंने होटल में फोन लगाया और बताया कि मैं आपका इंटरव्यू करना चाहता हूँ. उन्होंने सुबह-सुबह आठ बजे बुला लिया. मैंने अपने सहपाठी और उस समय रूममेट रहे पं. उमेश चतुर्वेदी जी को इस बारे में बताया और तय हुआ कि साथ ही चला जाए.

फ़ोटो का कोई वर्णन उपलब्ध नहीं है.

जब हम होटल पहुँचे तो आठ बजने में थोड़ा सा वक्त था. वे गायक होटल की लाॅबी में ही मिल गए. हमें बड़ी खुशी हुई कि ये बंदा तो वक्त का बड़ा पाबंद है और हमारे स्वागत के लिए खड़ा है. हमने उनके पास जाकर अपना परिचय दिया. उन्होंने कहा कि मैं तो अभी इनके साथ एयरपोर्ट के लिए निकल रहा हूँ. किनके साथ? यह सवाल हमारे मन में आया तो हमने उनकी दृष्टि का अनुसरण किया. उनकी सहगायिका एक टैक्सी में बैठ रही थीं. हमें बहुत अजीब लगा कि जब इस बंदे को फ्लाइट पकड़नी थी तो हमें बुलाकर हमारा वक्त क्यों जाया किया.
जवाब तुरंत ही मिल गया. उन गायक महोदय ने अपनी जेब से अपनी एक रंगीन पोस्टकार्ड साइज फोटो हमें थमा दी और बोले कि आप अपनी मर्जी से जो भी चाहे छाप दीजिएगा. हमने जब इंकार किया तो उन्होंने हमारे सामने एक और विकल्प पेश किया. बोले कि ऊपर मेरी वाइफ रूम में हैं. उन्हें पता है कि मैं किस सवाल का क्या जवाब देता हूँ, आप उनसे मिलकर इंटरव्यू कर लीजिए. अब तक मेरा धैर्य जवाब दे चुका था. मैंने इससे साफ मना कर दिया और कहा कि मैं ऐसे काम नहीं करता. उन्हें एहसास हुआ कि कुछ गड़बड़ हो गई है. उन्होंने पंडित जी से उनका नाम पूछा. चतुर्वेदी शब्द सुनते ही उनका ब्राह्मणवाद जाग उठा और उन्होंने अपनी जन्मभूमि और वह सरनेम बताया, जो वह अपने नाम के साथ शायद ही कभी इस्तेमाल करते हों. उन्हें लगा कि ब्राह्मण कुलनाम बताकर वे हमें मना लेंगे. लेकिन पं. उमेश जी तो और भी उसूलों वाले आदमी ठहरे. उन्होंने भी ऐसा करने से मना कर दिया. तब तक उनकी साथी गायिका उन्हें आवाज देने लगी थी.
वह टैक्सी की ओर बढ़ गए और उनका फोटो लेकर हम टहलते-टहलते आईएनएस आ गए, जहाँ चाय के स्टाॅल पर गर्मागर्म चाय और मठरी खाकर नाश्ता किया और उस गायक को गालियाँ देते हुए अपना गुस्सा शांत किया.
वह फोटो अभी भी मेरे पास रखा है. कभी पुरानी फाइलें देखते हुए अचानक आँखों के सामने आ जाता है तो उस घटना की याद से अब गुस्सा नहीं आता, बल्कि हँसी आती है कि उस वक्त हम कितने तुनकमिजाज हुआ करते थे. तुनकमिजाजी का ऐसा ही एक और किस्सा अगली कड़ी में...

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