Friday, September 14, 2012

पिक्चर अभी बाकी है !

कौतुहल मनोरंजन की किसी भी विधा की एक सामान्य शर्त है, जो देखने-पढ़ने वाले की रुचि उसमें बनाए रखती है. बीती सदी के अंत तक विज्ञापन अमूमन इससे बचते ही रहे हैं. लेकिन, अब ऐसा नहीं है. बीते कुछ सालों में विज्ञापनों ने कौतुहल को अपनाकर रचनात्मकता और रोचकता, दोनों को नए आयाम दिए हैं. पुराने दौर के विज्ञापन जहाँ एक ही ट्रैक पर सालों-साल चलते रहते थे. अब वे नित नई-नई कहानियां कहते नजर आ रहे हैं. कई बार ये कहानियां एकदम स्वतंत्र होती हैं, तो कई बार एक-दूसरे से संबद्ध. लेकिन, हर बार हम यह पाते हैं कि एक प्रोडक्ट का अपने आप में मुकम्मल लगने वाला विज्ञापन, अक्सर आगे के लिए कुछ और कहने की गुंजाइश छोड़ता हुआ खत्म होता है.

उदाहरण के लिए, हम पैरागान चप्पल के विज्ञापन को ही लेते हैं. इसके पहले भाग में एक सरकारी आफिस में अपना काम करवाने के लिए चक्कर काटने वाला युवक अधिकारी से शिकायत करता है कि चक्कर काटते-काटते उसकी चप्पल घिस गई हैं, तो वह उसे पैरागान की चप्पल पहनने की सलाह देता है और दर्शकों को अपनी ढिठाई से हतप्रभ कर देता है. सालों से यही विज्ञापन हमें गुदगुदाता आ रहा था, लेकिन कुछ महीनों से इसका अगला हिस्सा हम यह देख रहे हैं कि फाइल लेकर आते युवक को देखकर वही अधिकारी टेबल्स के बीच में छिप जाता है और उसकी झूठी बीमारी का बहाना सुनकर युवक को हम यह कहते सुनते हैं कि कोई बात नहीं, वह कल फिर आ जाएगा. और अधिकारी इस बात पर अफसोस जाहिर करता है कि उसने युवक को पैरागान चप्पल पहनने की सलाह दी थी.


इसी तरह ड्यूलक्स पेंट का रास्कल रेड विज्ञापन पहले पार्ट में एक लड़की के खब्ती बाप को उसके साथ आए लड़के को देख कर इरीटेट होते हुए  दिखाया गया है तो अगले पार्ट में वह उसके साथ बड़ी आत्मीयता से बतियाता हुआ नजर आता है.एक और विज्ञापन नोकिया का दिखाओ अपना स्टैंडर्डहै, जिसमें कालेज में नायिका का वीडियो बनाने की कोशिश कर रहे एक शोहदे को नायक उसके गांव से भी ज्यादा बड़ी मेमोरी वाला फोन दिखाकर लज्जित करता है, और इसके अगले पार्ट में वही नायक है, वही नायिका और वही शोहदा, लेकिन लोकेशन बदल गई है, अब यह एक शादी के माहौल में घट रहा है. ऐसे ही कैडबरीज के नायिका को घर छोड़ने का शुभ काम करने जा रहे नायक, वाले विज्ञापन के इसके अगले पार्ट में उसे नायिका के साथ चाकलेट शेयर कर वक्त गुजारते देखा जा सकता है तो वहीं एयरटेल के जो मेरा है वो तेरा है...को उसी के जिंदगी में हरेक दोस्त जरूरी होता हैके नेशनल क्रेज बन जाने वाले स्लोगन की अगली कड़ी के रूप में देखा जा सकता है. आजकल इसी जमात में एक और विज्ञापन शामिल हुआ है, जिसमें पिछली कड़ी में मच्छर की बजाए जवानी के दिनों का फोटो खोजकर लाने वाला बूढ़ा पति, किसी परिचित के घर से मच्छर लाके पत्नी से लगाई शर्त जीतने की कोशिश करता है.

इन  विज्ञापनों में जो बदलाव है, वह लंबे समय से चल रही एकरसता को तोड़ने के लिए है. लेकिन, कई बार बदलाव को नई सूचना देने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि मैक्स न्यूयार्क लाइफ का विज्ञापन. इसके पहले भाग में ग्राहक के पास बैठे इंश्योरेंस एजेंट के भीतर का शैतान उसे झूठ बोलकर ग्राहक को फंसाने के लिए उकसाता है, लेकिन वह सच बोलने पर आमादा है. वहीं इसके पार्ट-2 वाले विज्ञापन का इस्तेमाल ग्राहक को यह बताने के लिए किया गया है, कि मैक्स न्यूयार्क लाइफ अब न्यूयार्क टैगहटाकर मैक्स लाइफ बन गया है. लेकिन, नाम बदल जाने के बावजूद अपने ग्राहकों के लिए उसकी प्रतिबद्धता नहीं बदली है. 

जरूर नहीं कि बदलाव और नएपन के लिए किसी एक विज्ञापन की ही कहानी को आगे बढ़ाया जाए. बहुत सारे ऐसे विज्ञापन भी हैं, जो एक ही समय में एक ही थीम पर अलग-अलग कहानियों के साथ अलग-अलग तरह का प्रभाव छोड़ रहे हैं. कहीं ये गुदगुदाते हैं, कहीं हैरान कर जाते हैं, कहीं प्रेरणा बनते नजर आते हैं तो कहीं भावनाओं के समंदर में ले जाते हैं. कैडबरीज, टाइड, आइडिया, अमूल माचो, टाटा स्काई, मैगी, पेप्सी, कोकाकोला और थम्सअप कोल्ड ड्रिंक...ऐसे अनेक उत्पाद हैं, जो अपने विज्ञापनों  में निरंतर विविधता को अपना रहे हैं. 

नई-नई कहानियों वाले विज्ञापन हों, या सीक्वल, मकसद दोनों का एक है...अपने उत्पाद का प्रचार लेकिन मनोरंजक तरीके से, ताकि टारगेट को कुछ सेकेंड तक बांधकर रखा जा सके. वर्ना उसके हाथ में थमे रिमोट के बटन दबना शुरू हो जाने में सेकेंड भी नहीं लगता.  

वैसे भी अधूरी पिक्चर किसे पसंद है? 
संदीप अग्रवाल


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