Thursday, April 4, 2013

दावे हैं, दावों का क्या


विज्ञापनों की दुनिया में वादों, दावों और छलावों में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है. लेकिन, जब मकसद सिर्फ बेचना हो, तो इस बेचने के लिए खरीदार को फुसलाने के लिए उसे किसी भी तरह से गुमराह किया जा सकता है. और यह कोई आज
से नहीं हो रहा है, सदियों से हो रहा है. चाहे वह पानी मिले दूध को ‘पियोर’ बताकर बेच रहा ग्वाला हो, या सड़े फलों को ‘फिरेश’ बताने वाला रेहड़ीवाला. चाहे घटिया कपड़े को ‘लाइफलोंग’ कहकर बेचता कपड़ेवाला हो या एक लीटर घी को एक किलो कहकर तोलता लाला. जो भी बेच रहा है, उसे बेचने के लिए झूठ बोलने में जरा भी हिचक, शर्म या डर नहीं है.

इससे बेहतर ला दो तो मूंछे मुंड़ा दूँ, ऐसा सुरमा जिसे आंखों में लगाकर दिन में तारे नजर आ जाएं, इस तेल को लगाने से गंजे सिर पर बालों की फसल लहलहाने लगेगी, यह बाम 36 तरह के दर्दों से छुटकारा दिलाता है...होश संभालने से लेकर अब तक हम ऐसे सैकड़ों दावों और वादों को फुटपाथ और बस-ट्रेनों में सामान बेचने वालों से सुनते बड़े हुए हैं. पर हमने न किसी को मूंछे मुंडाते देखा है, न किसी को यह पुष्टि करते कि उसे फलां सुरमा लगाने से दिन में तारे दिखाई देने  लगे हैं, 36 तरह के दर्द से छुटकारा दिलाने वाला बाम 37 वां दर्द पैदा कर जाता है, गंजेपन का तेल लगाते-लगाते सिर की बजाए हथेलियों पर बाल उग आते हैं...लेकिन, दावे करने वालों के माथे पर शिकन तक नहीं आती. उनका काम बदस्तूर जारी रहता है. कभी-कभी कोई शिकायत लेकर उनसे लड़ने भी पहुंच जाए तो ये उल्टे उसी की गलती बताते हैं और उसे एक और ‘शीशी’ थमाकर फिर से झांसे में ले लेते हैं.

इलीट नजरिए से यह भदेस बाजार है, छोटे लोगों की छोटी-छोटी मक्कारियां हैं. लेकिन, इन्हीं छोटे मक्कारों ने अरबों-खरबों के टर्नओवर वाले ‘बड़े’ कारोबारियों को राह दिखाई है. इसीलिए अजीब नहीं लगता, जब कोई टूथपेस्ट दांतों की सारी समस्याओं से छुटकारा दिलाने की बात करता है या कोई क्रीम सांवले लोगों को गोरेपन का वरदान देती नजर आती है, या कोई एनर्जी फूड नाटे बच्चों की लंबाई को साल में दो फुट बढ़ाता है तो दूसरा उसे स्मार्ट बनाता है.



रात को बारह बजे के बाद से सुबह करीब आठ बजे के दरम्यां दो दर्जन से ज्यादा चैनलों पर टेली शॉपिंग में प्रचारित उत्पादों ने तो दावों की सारी हदें ही पार कर दी हैं. ये आपको मोटापे, छोटे कद,डायबिटीज, इनफर्टिलिटी, बड़े-छोटे स्तनों, नपुंसकता जैसी शारीरिक व्याधियों से ही नहीं, बल्कि बुरी नजर, दुर्भाग्य और प्रेतात्माओं जैसी परालौकिक चीजों तक से छुटकारा दिलाने का दम भरते हैं. और इन दावों में विश्वसनीयता का परिमाण बढ़ाने के लिए ये टेलीविजन और फिल्मों के कुछ फुसर्तिया सितारों को भी भाड़े पर ले आते हैं.

ऐसा नहीं इन झूठे वादों-दावों पर किसी की नजर नहीं जाती. समय-समय पर इनके खिलाफ शिकायतें भी हुई हैं और कार्रवाईयां भी. कई बड़ी कंपनियों को एएसआई (एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया) के आदेश पर अपने विज्ञापनों को वापस लेना पड़ा है. पिछले साल नवंबर में नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी के कुछ स्टुडेंट्स ने झूठे दावे करने के लिए दस एमएनसीज के खिलाफ केस दायर किया था. इसके दो ही हफ्तों के भीतर, फूड सेफ्टी स्टैंडड्र्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने भी 38 कंपनियों को नोटिस भेजा था, जिनके विज्ञापन भ्रामक पाए गए थे. उनका कहना है कि झूठे दावों वाले विज्ञापन न सिर्फ अनैतिक हैं, बल्कि अनेक कंज्यूमर राइट्स का वॉयलेशन भी करते हैं. ऐसे ही कई मामले इंडीविज्युअल्स द्वारा की गई पहलकदमियों के भी सामने आए हैं.

लेकिन, ऐसे छलिया विज्ञापनों की तादाद अभी भी इतनी ज्यादा है कि कोई भी कदम अपर्याप्त ही प्रतीत होता है. इनके पक्षधरों का कहना है कि एक ओपेन मार्केट इकोनॉमी में कम्पटीशन इतना ज्यादा है कि अपने प्रोडक्ट को बेचने के लिए बढ़ा-चढ़ाकर दावे करने ही पड़ते हैं और आज का उपभोक्ता कोई बेवकूफ नहीं है, उसे इस बात की पूरी जानकारी है कि किसी चीज के असर की क्या लिमिटेशंस हैं.

तो क्या यह माना जाए कि सिर्फ झूठ के सहारे ही उत्पाद को बेचा जा सकता है? या फिर यह विद्या सिर्फ एक बार ही काम करती है? इस बारे में बहुत यकीनी तौर पर कुछ कह पाना बहुत मुश्किल है. क्योंकि इस बारे में यूनिवर्सल ट्रुथ जैसी कोई चीज लागू नहीं होती. कई बार अनुभव हमारा अगला कदम निर्धारित करता है, जिसके आधार पर हम किसी चीज हो दोबारा खरीदने या न खरीदने का फैसला लेते हैं, तो कई बार हमारी मासूम उम्मीदें हमारी समझदारी पर भारी पड़ जाती हैं और हम एक ही चीज को ठगे जाने के बावजूद लंबे अर्से तक बार-बार खरीदते रहते हैं. पर यह तय है कि लॉन्ग टर्म में ‘पहले इस्तेमाल करें, फिर विश्वास करें’ का फंडा ही ज्यादा कारगर साबित होता है. इसी चीज को ब्रांड वैल्यू कहते हैं, जब विज्ञापनों में किए गए दावों से ज्यादा हमारे खुद के या परिचितों के अनुभव हमें किसी खास ब्रांड के खास उत्पाद को खरीदने-आजमाने के लिए प्रेरित करते हैं. गारंटी तो सभी देते हैं, लेकिन हमारे लिए हमारी संतुष्टि किसी भी गारंटी या वारंटी से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है.

एक पुरानी कहावत है कि सच जितनी देर में बिस्तर से उतर कर अपने जूते पहन रहा होता है, झूठ उतनी देर में दुनिया का सफर तय कर आता है. लेकिन, कामयाबियों का इतिहास यह भी कहता  है कि झूठ अपने इस सफर में इतना थक चुका होता है कि दोबारा कहीं जाने के काबिल नहीं रहता और सच धीरे-धीरे ही सही, मगर चलता रहता है.

चलते-चलते
एक बार एक आदमी को अपना बंगला बेचने की जरूरत आन पड़ी. अच्छे दाम मिलें, इस उम्मीद के साथ उसने एक विज्ञापन एजेंसी की सेवाएं लीं. जब एजेंसी ने उसका विज्ञापन तैयार करके अप्रूवल के लिए उसके पास भेजा तो  विज्ञापन
में उसके बंगले की इतनी तारीफ की गई थी कि उसने बंगला बेचने का अपना
इरादा ही बदल दिया.


संदीप अग्रवाल

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